गौर विवि के 17 कर्मचारियों के पक्ष में श्रम न्यायालय ने सुनाया फैसला
विषयान्तर्गत है की डॉ हरिसिंह गौर विवि में कई बर्षो से कलेक्टर एवं कमिश्नर दर पर कार्य कर रहे 17 कर्मचारियों ने नौकरी में रहते हुए दिनांक 11/10/2017 में अपने पद का वर्गीकरण से सम्बंधित प्रकरण को केंद्रीय सहायक श्रम आयुक्त जबलपुर कार्यालय में दर्ज करबाया जिस पर श्रम आयुक्त ने दिनांक 18/10/2017 को विवि के कुलसचिव को नोटिस जारी कर दिया, लेकिन विवि प्रशासन द्वारा जानबूझकर नोटिस को अनदेखा कर नियम बिरुद्ध तरीके से इन सभी कर्मचारियों को ओउटसोर्से कर्मचारी मानकर दिनांक 25/10/2017 को समस्त बिभाग अध्यक्षों को नोटिस देकर इन कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गयी जिस पर कर्मचारियों ने विश्वविद्यालय कामगार यूनियन के माध्यम से श्रम न्यायालय जबलपुर में पहले से प्रकरण चलते रहने पर कर्मचारियों की सेवा में परिवर्तन करने पर धारा 33A एक्ट का उल्लंघन करने का प्रकरण विश्वविद्यालय प्रशासन के बिरुद्ध दर्ज करवाया जिसमे केंद्रीय श्रम न्यायालय,जबलपुर ने पांच बर्ष बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद दिनांक 09/11/2022 को कर्मचारियों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा की कर्मचारियों ने विवि में अपने नौकरी से सम्बंधित आरटीआई से प्राप्त जो भी दस्ताबेज कोर्ट में प्रस्तुत किये है उससे सिद्ध होता है की इन कर्मचारियों की नियुक्ति विवि के सक्षम प्रशासनिक स्वीकृति से हुयी है न की किसी ओउटसोर्से एजेंसी से और इनके मासिक कार्य का भुगतान सीधे विश्वविद्यालय द्वारा इनके बैंक खाते में किया गया है, जबकि कोर्ट में विवि प्रशासन के अधिबक्ता द्वारा पेस किये गए साक्ष्यों में ये सिद्ध नहीं कर पाए की इन कर्मचारियो की नियुक्ति किस ओउटसोर्से एजेन्सी के माध्यम से हुयी थी l कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद एवं साक्ष्यों के आधार पर अपना निर्णय देते हुए कहा की विवि में इन सभी कर्मचारियो की नियुक्ति दैनिक वेतन भोगी व् मस्टर कर्मचारियो के रूप में हुयी थी और इनका प्रकरण केंद्रीय श्रम आयुक्त कार्यालय में पहले से चलते रहने पर भी विवि प्रशासन दवारा नियम बिरुद्ध तरीके से इनकी सेवा में परिवर्तन कर इनकी सेवाएं समाप्त कर दी गयी जो की विवि प्रशासन द्वारा श्रम अधिनियम के अंतर्गत धारा 33A का उल्लंघन किया गया है कोर्ट ने इस फैसले की कॉपी आगामी कार्यबाही हेतु श्रम रोजगार मंत्रालय भारत सरकार को भी भेज दिया है l
पूर्व कर्मचारी धर्मेंद्र रजक बताया ने कहा की विवि प्रशासन को अपनी गलती सुधारते हुए हम सभी कर्मचारियों को बापिस सेवा में लेना चाहिए l विवि प्रशासन कर्मचारियों के ऐसे कई मामलो में कोर्ट केसो में फिजूल के करोङो रूपए खर्च करके भी सफल नहीं हो पायी है, जिससे विवि को भारी वित्तीय हानि हो रही है इस पर भी विश्वविद्यालय प्रशासन जानबूझकर नियमबिरुद्ध तरीका अपनाकर राष्ट्र स्तर पर विश्वविद्यालय की छवि ख़राब कर रही है
निम्न कर्मचारियों के पक्ष में कोर्ट ने फैसला सुनाया है : दीपक दुबे, धर्मेंद्र रजक, चंद्रमणी सिंह, अमित नहरिया, प्रीती रजक, अजय कन्नोजिया, संतोष नामदेव, रवि पटेल, सोनू बोहत,राजेंद्र सिंह ठाकुर, गौरव सिंह राजपूत, अमित साहू, विवेक सेन, अभिषेक मिश्रा, संदीप तिवारी l
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