आशुतोष राणा की बुंदेली बौछार में भीगते हम .......◾ ग्राउंड रिपोर्ट / ब्रजेश राजपूत

आशुतोष राणा की बुंदेली बौछार में भीगते हम .......

◾ ग्राउंड रिपोर्ट / ब्रजेश राजपूत


भोपाल के श्यामला हिल्स के उस आदिवासी संग्रहालय में आयोजन यूं तो हमारे सचिन चौधरी की बुंदेली बौछार के बुंदेली समागम का ही था पर दिन भर मौसम खुला रहने के बाद शाम को फिर लौट कर आयी बेमौसम की बारिश से लगा कि अब कार्यक्रम हो नहीं पाएगा क्योंकि देखने सुनने वाले श्रोता ही नहीं आ पायेगे मगर यकीन मानिये धुआंधार बारिश के साथ साथ हो रही कार्यक्रम में देरी के बाद भी लोगों का आना जारी था और गेट पर खडे हम लोगों से सवाल एक ही क्या राना जी का कार्यक्रम शुरू हो गया। अभी नहीं, कहते ही उनके चेहरे पर संतोष का भाव आता और वो सभागार की तरफ भागते। 
उधर अंदर हाल खचाखच भरता जा रहा था और आशुतोष राना बारिश के कारण लगातार लेट हो रहे थे। हैरानी इस बात की थी कि राना को सुनने की चाह रखने वालों में बुजुर्ग, हम जैसे राना के अनेक हमउम्र साथी, महिलाएं और बडी संख्या में नयी पीढ़ी के वो नौजवान भी थे जिन्होंने राना के सीरियल और फिल्में तो कम देखी होंगी मगर सोशल मीडिया पर उनके वीडियो देखकर दीवाने हो चुके थे।
खैर आशुतोष आये दरवाजे से लेकर सभागार के मंच तक उनके साथ चलने वाले प्रशंसकों की भीड कोई सेल्फी खींचने को बेताब तो कोई बस ऑटोग्राफ लेना चाहता है तो कुछ तो साथ में फोटो ही खींच जाये ही इस आस में धक्का मुक्की झेल रहे थे। राना मंच पर आये और थोड़ी सी औपचारिकता के बाद ही सामने बैठे श्रोताओं के साथ अनौपचारिक हो गये। काले कुर्ता पायजामा सेंडिल और उस पर हल्के रंग के चश्मे ने समा बांध दिया था। और अब मुकाबला शुरू हुआ सचिन चौधरी की झांसी की बुंदेलखंडी और राना की सागर बुंदेली बोली के बीच। राना ने शुरुआत सागर के तीन बत्ती से की जब वो पहली बार गाडरवारा से सागर यूनिवर्सिटी में पढने गये और ज्ञानी गुरु से मिले। राना का अभिनय के साथ गुरू की कद काठी का वर्णन हंसा हंसा कर लोट पोट करने वाला रहा। गुरू की घुसी आंखें तो राना निकल कर भागती आंखों वाले। पिचके गाल वाले गुरू जब कहते हैं कि हमारी ये कद काठी पर मत जाओ चकरा घाट पर हमें नहाते देख औरतों की नजर लगी और ऐसे हो गये। वरना हम भी जबर पहलवान थे। गुरू ने राना को गुरू ज्ञान दिया  

“खाओ पियो छको मत, 
खेलो कूदों थको मत और 
लडकियों को देखो भालो तको मत” 

राना इस बात पर अपनी हंसी नहीं रोक पाये और सामने बैठे दर्शकों के साथ ठहाके लगाकर हंस पडे।
राना की यही सहजता उनके और श्रोताओं के बीच बिजली की गति से संबंध बना देती है और जब वो छोटी सी कुर्सी पर ही आलथी पालथी मार कर बैठ गये तो लोग समझ गये कि राना की चौपाल अब लंबी चलेगी।
अब बात बुंदेलखंडी की करनी थी तो राना ने अपने बुंदेली प्रेम के किस्से सुनाने शुरू कर दिये। फिल्मों में बुंदेली तो नहीं हां बिहारी या यूपी की खडी बोली डायलाग्स में चलती है। राना ने कहा कि हम तो अपनी बुंदेली के शब्द और लंबे वाक्य भी खडी बोली में मिक्स कर देते थे और लोग कहते क्या बिहारी बोली है मजा आ गया। मगर मजा तो सामने बैठे राना के चाहने वालों को तब आया जब राना ने बुंदेली में आल्हा अपने ही अंदाज में गाना शुरू किया। बाहर मूसलाधार पानी बरस रहा था और अंदर राना अपने अभिनय और भाव भंगिमा के साथ आल्हा गा रहे थे।
“भुजा बहत्त्तर फडकन लागे,                                                     
नाचन लगे मुच्छ के बाल,                                                              
कट कट बोटी गिरे खेत में,                                                  
उठ उठ रूंड करे टकरार,                                                
एक को मारे दुई मर जाये,                                         
तीसरा खौफ खाये मर जाये,                                                    
मरी के नीचे जिंदा लुक गयो,                                                    
उपर लूथ लई लटकाय।”

और संयोग देखिये बुंदेलखंड के गांवों में आल्हा बरसते पानी में ही गाया जाता है। जब खेत के काम नहीं रहते और लोग चौपालों पर आल्हा उदल के वीर रस के काव्य गाते हैं। मगर यहां तो वीर रस का काव्य राना गा रहे थे जो फिल्मों में विलेन नहीं उनके ही शब्दों में प्रति नायक बन कर पहचान बना चुके हैं। आल्हा से शुरू हुये राना ने फिर बुंदेली रेप और बुंदेली राई सुनाई।

“इमली के पेड पर चढी चिटियें,                                                          
हमसे ना बोले मतारी बिटिया,                                                         
औ नैना ना मार, “
राना के गाने का अंदाज, अभिनय और अभिव्यक्ति के बीच में आनंद चरम पर तब बढ गया जब राना ने बुंंदेली कवि जगन्नाथ सुमन की हास्य कविता..   
“ जी के राज में रइये,                                                                   
उकी उसी कहिये,                                                                  
उंट बिलैया ले गयी,                                                                                   
सौ हाजू हांजू कइये,                                                                      
गाय दुधारू चइये,                                                                          
तो दो लातें भी सइये,                                                                   
तनक चोट के बदले,                                                              
फिर घी की चुपरी खइये।”

बस फिर क्या था राना का चुटीला अंदाज हंसती आंखे, बोलता चेहरा और मंजे हुये मंचीय अभिनेता ने इस हास्य कविता के साथ सामने बैठी जनता को हंसा हंसा कर दोहरा कर दिया। मगर ऐसे कैसे हो सकता था कि मंच पर राना हो और बात आध्यात्म की ना हो तो दर्शकों की फरमाइश पर उन्होंने अपनी किताब रामराज्य के कुछ प्रसंग पढे और जिनको सुनकर हम दंग रह गये कि थोडी देर पहले हंसा हंसा कर लोट पोट करने वाले इस अभिनेता के पास इतनी गहरी भाषा, शब्दों से दृश्य रचने की कला और बेजोड भाव भी है। और कितना लिखूं इस अदभुत अभिनेता और जमीन से जुडे इंसान पर जो हम भोपाल के लोगों को कभी ना भूलने वाली शाम देकर उड गया बरसते पानी में अपनी कर्मभूमि मुंबई की ओर।

ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल






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