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यथार्थ को कला में ढालने से कहानी समकालीन बनती है : प्रो नीरज खरे

यथार्थ को कला में ढालने से कहानी समकालीन बनती है : प्रो नीरज खरे

सागर। समकालीन कहानी में यथार्थ और अखवार की ख़बर में यथार्थ में अंतर होता है, जो सीधे-सीधे कहा जाए वह सूचना या खबर है और यथार्थ को कला में ढालने से कहानी समकालीन बनती है। 90 के दशक में भूमंडलीकरण के बाद समाज में बहुत सारे परिवर्तन आए जिसने समाज को बदला और हिंदी कहानी को भी। यह बात बनारस से आए प्रोफेसर नीरज खरे ने डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग एवं वनमाली सृजन केंद्र, सागर के द्वारा आयोजित सृजन संवाद श्रृंखला के अंतर्गत समकालीन कहानी पाठ और प्रक्रिया विषय पर व्याख्यान देते हुए कही । 
इस दौरान विभाग की अक्ष्यक्ष प्रो चंदा बेन, संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी, डॉ. हिमांशु कुमार, डॉ. अफरोज बेगम, डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. लक्ष्मी पाण्डेय, डॉ. अवधेश कुमार, प्रदीप कुमार सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र छात्राएं उपस्थित रहे। संचालन डॉ. राजेंद्र यादव ने किया आभार डॉ. आशुतोष ने व्यक्त किया।
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