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कुर्सी का अहंकार है तो टेबल पर आने में देर नहीं ★ ओम नमः शिवाय मंत्र में पूरा ब्रह्मांड समाहित :पंडित प्रदीप मिश्रा★ मंत्री गोपाल भार्गव, विधायक शेलेन्द्र जैन, महापौर प्रत्याशी निधि सुनील जैन ने किया आरती पूजन


कुर्सी का अहंकार है तो टेबल पर आने में देर नहीं 

★ ओम नमः शिवाय मंत्र में पूरा ब्रह्मांड समाहित :पंडित प्रदीप मिश्रा

★ मंत्री गोपाल भार्गव, विधायक शेलेन्द्र जैन, महापौर प्रत्याशी निधि सुनील जैन ने किया आरती पूजन



सागर| पंचाक्षर मंत्र नमः शिवाय है और षडाक्षर मंत्र ओम नमः शिवाय है ।इन मंत्रों में 33 कोटि देवताओं का बल यानी पूरा ब्रह्मांड ही समाहित होता है ।ओम शब्द में ब्रह्मा, विष्णु, महेश समाहित है। नम: शब्द में शांति , तुष्टि और नमन समाहित है। तो शिवाय में आदि शक्ति जगदंबा, ब्रह्म शक्ति और सभी  देवी, देवताओं की शक्ति समाहित है। इसीलिए षडाक्षर मंत्र की शक्ति इतनी प्रबल है कि जिसने इसे जप लिया उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता ,क्योंकि उसके साथ हमेशा देवाधिदेव महादेव खड़े रहते हैं।उक्त अमृत मय ,ज्ञान मय विचार पंडित प्रदीप मिश्रा (सीहोर वाले)ने पटकुई बरारू स्थित वृंदावन धाम परिसर में बड़ी संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को ओम श्री शिव महापुराण कथा का श्रवण कराते हुए व्यक्त किए।


पटकुई बरारू वृंदावन धाम परिसर में मुख्य यजमान श्रीमती राम श्री श्याम बाबू केशरवानी एवं उनके परिजनों द्वारा आयोजित की जा रही ओम श्री शिव महापुराण कथा के चौथे दिन पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि भगवान शिव की कथा कहती है कि जीवन का सच्चा सुख भगवान के चरणों में है। जो शिव का उपासक होता है उसको कभी भय नहीं होता। भगवान  शंकर की यदि कृपा हो जाए तो किसी का दिया हुआ श्राप भी फलीभूत हो जाता है ।नल- नील श्रापित थे लेकिन वह भगवान राम के काम आ गए और उनको मिला श्राप आशीर्वाद में बदल गया।और यह देवाधिदेव रामेश्वरम की कृपा से हुआ। श्रापित भी यदि भगवान की शरणगति में पहुंच जाए तो उसे भी शंभू स्वीकार कर लेता है।


शिव को पकड़े रहो फल अवश्य मिलेगा=
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब हैंडपंप खुदवाते हैं तो भले ही वह कितना गहरा होता जाए हम तब तक खुदवाते हैं जब तक कि उसमें से पानी नहीं निकल आता ।इसका मतलब है कि हम ने हार नहीं मानी और लक्ष्य तक पहुंचने के लिए धैर्य ,मन ,लगन से उस कार्य को अंजाम दिया। इसी तरह जीवन रूपी संसार सागर में यदि शिव को पकड़े रहोगे, उसकी भक्ति में लीन रहोगे तो उसका फल अवश्य मिलेगा। हमारे शास्त्र कहते हैं कि शिव आराधना करते समय चितव्रत्ति, मन और रीढ़ की हड्डी सही होना चाहिए।

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कुर्सी का अहंकार है तो टेबल पर आने में देर नहीं =
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि पद, प्रतिष्ठा,धनसंपदा , सत्ता मिलना यह आपके कर्मों का फल है ।यह फल मिला है तो इसका सदुपयोग होना चाहिए । मन निर्मल होना चाहिए। यदि अहंकार हुआ तो धन,संपदा सत्ता और प्रतिष्ठा इन तीनों का नष्ट होना अवश्य  है।कुर्सी पर बैठने वालों को अहंकार बहुत जल्दी आता है ,लेकिन यह ज्यादा दिन तक टिकता नहीं है । अहंकारी लोग कब कुर्सी से टेबल पर आ जाए पता नहीं चलता। टेबल पर यानि फोटो और उस पर प्लास्टिक की माला । याद रखना अकड़ सबसे पहले नष्ट होती है और कोमलता सबसे बाद में ।जैसे हमारे शरीर से सबसे पहले दांत साथ छोड़ते हैं जो जीवन भर कठोर और कड़क बने रहते हैं लेकिन जीभ जो कोमल होती है हमेशा साथ रहती है।पद, प्रतिष्ठा अहंकार के रूप में नहीं सेवा के रूप में उपयोग करें।

किचन बने तो किच किच शुरु हो गई=
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि पहले घरों में रसोईघर, चौका हुआ करते थे।जिनमें माताएं रात्रि खाना के बाद पोछा लगाती थी।सुबह चाय बनाने के पहले चूल्हे पर गीला कपड़ा फेरती थी। बैठकर शांत मन से भोजन बनाती थी ।तब घर में शांति भी होती थी ,समृद्धि भी होती थी और परिवार में एकता भी होती थी। तब अन्नपूर्णा का वास होता था ।अब सब उल्टा पुल्टा हो गया है ।खड़े होकर भोजन बन रहा है। रसोईघर को किचन कहा जाने लगा है। किचन बनने लगे तो परिवार में कलह ,अशांति, किच किच  बढ़ गई है ।घर में किचन नहीं रसोई घर बनाए।रात्रि में भोजन के बाद उसमें पोछा अवश्य लगाएं और सुबह चाय बनाने से पहले चूल्हे पर गीला कपड़ा अवश्य फेरे।भोजन में भी अन्नपूर्णा की कृपा का रस बरसेगा, घर में शांति  भी रहेगी और समृद्धि भी आएगी।




आसन, माला और दीपक कभी ना बदले=
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि आप जब भी कभी पूजा-पाठ ,जप, तप करते हैं तो यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस आसन पर आप बैठे हैं वह दूसरे का ना हो, क्योंकि उसका फल फिर दूसरे को ही मिलता है। आसन हमेशा खुद का होना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रयास करें की आसन ऐसा खरीदें जिसे धोना ना पड़े। क्योंकि जिस आसन पर बैठकर आप नित्य प्रति पूजा पाठ करते हैं उसमें तप, बल, शुद्धि आ जाती है। इसी तरह दीपक और माला जितनी पुरानी होती जाती है उसमें उतना ही ईश्वरतत्व  तप, बल, आता है। हम अक्सर जोत जलाने वाले दीपक को बदल देते हैं। प्रयास करें कि दीपक जितना पुराना होता जाए उतना अच्छा। इसी तरह माला भी पुरानी होती जाए तो समझो उस में ईश्वर है। गोमुखी भी ना बदलें। पंडित मिश्रा ने कहा कि यदि तुलसी की माला है तो पूरे मनके तुलसी के होना चाहिए। माला रुद्राक्ष की  है तो मेरे मनके रुद्राक्ष के ही होना चाहिए। अपने आसन, माला और दीपक को हमेशा श्रेष्ठ रखे और बदले ना।

मंदिर में भगवान, शिवालय में भोलेनाथ बैठते हैं=

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि भगवान भोलेनाथ जहां विराजमान होते हैं उसे मंदिर नहीं शिवालय कहते हैं। मंदिर में भगवान बैठते हैं और साल में एक दो बार उत्सव के दौरान वह मंदिर से बाहर आते हैं ।मंदिर का मतलब मन के अंदर भगवान की मूर्ति को स्थापित कर लेना है। शिवालय में भगवान शिव लिंग रूप में माता पार्वती के साथ विराजमान होते हैं और प्रतिदिन प्रदोष काल में दोनों भ्रमण पर निकलते हैं और अपने भक्तों की खोज ,खबर लेते हैं । शिवालय का अर्थ होता है शिव की भक्ति में लयबद्ध हो  जाना, खो जाना है।

बेटियां दुनिया से नहीं भगवान से आशा रखें=

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जिस घर में बेटियां होती हैं उस घर के माता-पिता बड़े भाग्यशाली होते हैं। बेटियों को हमेशा परमात्मा का दिया प्रसाद समझे। यदि परमात्मा ने बेटी दी है तो उसके पिता को उसके भाग्य का देने का हिसाब किताब भी उसने पहले से बना रखा है। पंडित श्री मिश्रा ने कहा कि हमेशा ध्यान रखना कि परमात्मा ,बेटी ,संत और गौ माता के भाग्य का अवश्य देता है।पिता कितना भी गरीब हो जब बेटी की शादी आती है तो धन धान्य  की व्यवस्था कहीं ना कहीं से हो ही जाती है। इसी तरह हम कितने भी गरीब क्यों ना हो द्वार पर आई गाय और संत को कभी निराश नहीं करते। कुछ ना कुछ अवश्य दे देते हैं। यह सब परमात्मा की कृपा से ही संभव होता है। उन्होंने कहा कि बेटियों को हमेशा अपने मायके से पूछ परख की आशा लगी रहती है ।अरे जब माता सती की मायके में पूछ परख नहीं हुई थी तो फिर आश लगाओगे तो वह टूटेगी और भोलेनाथ में विश्वास रखोगे तो वह फल के रूप में प्राप्त होगा।

मंदिर की घंटी परमात्मा में मन लगाने के लिए=

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि मंदिर में जाकर हम वहां टंगी घंटी तो बजाते हैं परंतु क्यों हमें यह पता नहीं है क्यों बजाते हैं ।हम  सोचते हैं कि हम भगवान को बता रहे हैं कि हम आ गए। परमात्मा को तब ही पता चल गया था जब तुम माता के गर्भ में थे कि तुम आने वाले हो। घंटी बजाना हमें सतर्क करने का प्रमाण है ।स्कूलों में बजने वाली घंटी जिस तरह बच्चों को पढ़ाई, भोजन, छुट्टी के लिए बजाती है। उसी तरह मंदिर की घंटी बजाने का अर्थ है प्रभु के स्मरण में खो जाना।जब हम मंदिर की घंटी बजाते हैं और जिस आवाज का हम श्रवण करते हैं वह हमारे मन की शक्ति से भगवान के प्रति एकाग्रित होकर भक्ति जगाने का मार्ग प्रशस्त करता है।



मोबाइल की तरह एकाग्रता प्रभु स्मरण में लगाएं=

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जब हम मोबाइल चलाते समय दृष्टि, मन, मुस्कुराहट उसमें पूरी तरह लगा देते हैं ,कोई बुलाए तो कहते हैं, रुको! मोबाइल का पूरा काम निपटा कर ही मानते हैं। किसी की नहीं सुनते। यदि यही वृत्ति, नेत्र, मन,मुस्कान और आस्था भगवान भोलेनाथ के प्रति रखोगे, तो सफलता निश्चित है। जिस तरह गड़बड़ होने पर मोबाइल का नेटवर्क मिलना बंद हो जाता है उसी प्रकार लोभ, वासना, घमंड हो तो परमात्मा का नेटवर्क नहीं मिलता। नंबर परमात्मा का डायल करोगे तो परमात्मा मिलेगा।

शमशान को कभी मत भूलो=

जीवन रूपी संसार में व्यक्ति सिर्फ पाने की चाह रखता है। वह भूल जाता है कि मृत्यु निश्चित है। उसे खान-पान ,रहन-सहन सब याद रहता है परंतु शमशान याद नहीं रहता ।शमशान शहर से दूर नहीं बीच में बनाना चाहिए ,जिससे मनुष्य को हमेशा स्मरण रहे कि मृत्यु निश्चित है ।मृत्यु का एहसास रहेगा तो मनुष्य के मन में भगवान का वास रहेगा ।उसे प्रभु स्मरण बना रहेगा ।फिर कभी घमंड नहीं करेगा ।भगवान जब तुम्हारा हाथ पकड़ कर सफलता की सीढ़ी चढ़ा रहा हो तो घमंड नहीं करना, क्योंकि सीढ़ी चढ़ने के लिए झुकना पड़ता है । कड़क शरीर सीढ़ी से उतरने का प्रमाण है ।ध्यान रखना 11 इंद्रियों में से एक इंद्री मन है जिसे भगवान में लगाओ और सदा प्रार्थना करो कि प्रभु कष्ट देना तो आटे में नमक के समान देना जिसे सह सकू। भगवान भोलेनाथ कष्टों के निवारक है।

डमरू दल की शानदार प्रस्तुति
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कथा के अंत में भगवान श्री गणेश एवं माता पार्वती की श्रीमती राम श्री श्याम बाबू केसरवानी, पीडब्ल्यूडी मंत्री पंडित गोपाल भार्गव ,विधायक शैलेंद्र जैन ,श्रीमती अनु जैन, पूर्व विधायक श्री सुनील जैन, श्रीमती निधि जैन एवं यजमान श्री केसरवानी परिवार के सोहन ,मोहन, राजेश केसरवानी ने आरती की एवं व्यासपीठ का पूजन किया। इस दौरान शिव शक्ति डमरू दल के युवाओं द्वारा बजाई गई डमरु एवं मांजीरों से पंडाल श्रद्धा भाव से गुंजायमान हो गया। इस अवसर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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