संचालन वाणी, विचार और
कौशल का संयोजन है- डॉ ललित मोहन
सागर. 8 अप्रैल. डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के हिन्दी विभाग में ‘मंच संचालन की कला’ विषय पर विशेष एकल व्याख्यान आयोजित हुआ. मुख्य वक्ता डॉ.ललित मोहन ने मंच सञ्चालन कि बारीकियों पर विस्तार चर्चा करते हुए कहा कि मंच संचालन एक वाचिक कला है. जिसमें वाणी, भाषा, गति, विराम, उच्चारण, मानसिक दशा और विषय ज्ञान आदि सभी अनिवार्य घटकों का एक निश्चित संयोजन किया जाता है. एक संचालक किसी कार्यक्रम को अच्छा भी बना सकता है और ख़राब भी कर सकता है. संचालक के भीतर वाणी, भाषा और प्रत्युपन्नमति का सुन्दर संतुलन होना चाहिए. संचालक को वक्ता का स्थान नहीं लेना चाहिए, उसे हर समय मंच पर अपनी सीमा का ध्यान रखना होता है. मंच संचालन के लिए संचालन को पांच तत्वों का अनिवार्य ध्यान रखना चाहिए, वे इस प्रकार है, पिच, प्रेशर, पंक्चुएशन, पॉज, प्रोनन्शियेशन. उन्होंने आकाशवाणी की सेवा के दौरान वाक् कला से जुड़े अपने अनुभवों को विस्तार से साझा किया और उद्घोषक के रूप में बरती जाने वाली सावधानियों और तकनीकी पक्षों की भी जानकारी प्रदान की. व्याख्यान के अंत में उन्होंने छात्रों के प्रश्नों का भी जवाब दिया.
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कार्यक्रम की अध्यक्षता करते
हुए विभागाध्यक्ष प्रो चन्दा बेन ने इस व्याख्यान श्रृंखला को विद्यार्थियों के
लिए अत्यंत उपयोगी बताते हुए कहा कि इस तरह के व्याख्यान विद्यार्थियों के
व्यक्तित्व एवं कौशल विकास में महत्त्वपूर्ण साबित होंगे. कार्यक्रम का संचालन शोध
छात्र विकास पाठक ने किया. इस अवसर पर विभाग के शिक्षक डॉ राजेन्द्र यादव, डॉ.
आशुतोष, डॉ. हिमांशु, डॉ आशीष द्विवेदी, पी एल प्रजापति, डॉ. अफरोज, डॉ. अरविन्द,
डॉ शशि सिंह, डॉ संजय यादव, डॉ. नौनिहाल गौतम, सुजाता मिश्र, डॉ अवधेश, प्रदीप सौर
सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे.
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