न्यायिक प्रक्रिया का पुनर्मूल्यांकन समय की मांग : कुलपति प्रो. जी.एस वाजपेयी
★ विधिक विमर्श श्रृंखला के अंतर्गत व्याख्यान एवं शैक्षणिक
एमओयू पर हुए
हस्ताक्षर
सागर. 13 अप्रैल. डॉक्टर हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के विधि विभाग के तत्त्वावधान में विधिक विमर्श श्रृंखला के अंतर्गत विधि विभाग परिसर स्थित विक्रमादित्य भवन (मूट कोर्ट) में विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया गया. मुख्य अतिथि राजीव गाँधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटियाला, पंजाव के कुलपति प्रो. जी.एस वाजपेयी ने ‘इमर्जिंग विक्टिम जुरिस्प्रिडेंस एंड इट्स इम्पैक्ट ऑन क्रिमिनल लॉ’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कहा कि समय-समय पर आपराधिक कानूनों में संशोधन होते रहे हैं लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैं. पीड़ितों को न्याय प्रदान करने की व्यवस्था तो की गई है लेकिन इसका आंशिक लाभ ही मिल पाता है.
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कानूनों में पीड़ित (विक्टिम) के लिए कोई प्रवाधान न होने से कानूनी खामियों का लाभ अपराधी पक्ष को मिल जाता है. पीड़ित के अधिकार, उसकी सुरक्षा और उचित न्याय की क्रियान्वयन पद्धति में सुधार करने की आवश्यकता है. न्याय की परिभाषा को पुनः देखने और समझने की जरूरत है. वर्तमान में व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करना सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है. यह एक मूल77 अधिकार है. इसकी रक्षा होनी चाहिए. हमारे देश का अधिकांश कानून अभी भी इन्डियन पीनल कोड से संचालित हैं. भारतीय संविधान लागू होने के बाद इन कानूनों को भारतीय सन्दर्भों में देखे जाने की जरूरत है. न्याय प्रक्रिया पर गहन आलोचनात्मक चिंतन की आवश्यकता है. न्याय व्यवस्था पर समाज की आस्था को और अधिक मजबूत बनाने के लिए नए तथ्यों और सन्दर्भों के साथ पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए. पीड़ित पक्ष की न्याय प्रक्रिया में भागीदारी, न्याय व्यवस्था तक उसकी पहुँच, उसका सहयोग आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनको बहुत ही संवेदनशीलता के साथ देखे जाने की आवश्यकता है.
उन्होंने डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय और राजीव गाँधी राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, पटियाला, पंजाब के बीच हुए शैक्षणिक समझौते पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि विधि अध्ययन के क्षेत्र में यह अकादमिक समझौता मील का पत्थर साबित होगी. दोनों ही विश्वविद्यालय मिलकर विधि से सम्बंधित विविध पहलुओं पर शोध कार्य करते हुए एक नई ऊंचाई प्राप्त करेंगे.
त्वरित न्याय के
लिए कई आयामों पर कार्य करने की आवश्यकता- प्रो. नीलिमा गुप्ता
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि दुनिया के विकसित देशों की तुलना में हमें विधि के क्षेत्र में और अधिक कार्य करना है. अमेरिका, कनाडा. जापान जैसे देश कानून और न्याय व्यवस्था के मामलों में हमसे काफी आगे हैं. पीड़ित पक्ष को त्वरित न्याय मिले इसके लिए कई आयामों पर कार्य किये जाने की आवश्यकता है. हमारे देश में कन्विक्शन दर काफी कम है. पहले के जमाने में विधि की पढ़ाई को महत्त्व नहीं दिया जाता था लेकिन आज कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा नहीं है जहां कानून और इसके जानकारों की आवश्यकता न महसूस होती हो.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने विधि क्षेत्र में भी अंतर
अनुशासनिक शोध और अध्ययन के नए द्वार खोले हैं. मुझे विश्वास है कि हम इस शैक्षणिक
समझौते के तहत फैकल्टी एवं स्टूडेंट एक्सचेंज, रिसर्च कोलैबोरेशन एवं ज्वाइंट
स्टडी के माध्यम से विधि के शोध, अध्ययन एवं इसके अनुप्रयोगात्मक पहलुओं पर
गंभीरतापूर्वक कार्य कर पायेंगे.
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कार्यक्रम में स्वागत भाषण विभागाध्यक्ष प्रो. अनुपमा
कौशिक ने दिया. अतिथियों का परिचय विभाग के सहायक प्राध्यापक कृष्ण कुमार ने दिया.
संचालन डॉ अनुपमा पंडित सक्सेना ने किया और आभार ज्ञापन डॉ. रूचिरानी सिंह ने
किया. इस अवसर पर प्रो. पी. पी. सिंह, अधिष्ठाता प्रो. डी. के. नेमा, प्रभारी
वित्ताधिकारी प्रो. देवाशीष बोस, प्रो. ए.पी. मिश्रा सहित विभाग के समस्त शिक्षक,
शोधार्थी, विद्यार्थी उपस्थित रहे.
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