लोकसभा पटल पर अनुगुंजित हुई डॉ.हरि सिंह गौर को भारत रत्न से सम्मानित किये जाने की मांग
★ शून्यकाल में सांसद राजबहादुर सिंह ने पुरजोर रखी मांग
नईदिल्ली। लोकसभा पटल पर सागर सांसद राजबहादुर सिंह ने शून्यकाल के दौरान सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं विख्यात कानूनविद डॉ.हरि सिंह गौर को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने की पुरजोर मांग रखी ।
सांसद सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष मान.ओम बिरला के माध्यम से उद्बोधन में कहा कि डॉ हरिसिंह गौर एक ऐसी शख्सियत है जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है । सागर विश्वविद्यालय की स्थापना डॉ.सर हरिसिंह गौर ने सन 1946 में अपनी निजी पूंजी से की थी । यह भारत का सबसे प्राचीन तथा बड़ा विश्वविद्यालय रहा है । अपनी स्थापना के समय यह भारत का 18 वॉं तथा किसी एक व्यक्ति के दान से स्थापित होने वाला यह देश का एकमात्र विश्वविद्यालय है । उन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई से 20 लाख रुपए की धनराशि से अपनी जन्मभूमि सागर में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा वसीयत द्वारा अपनी पैतृक संपत्ति से दो करोड़ रुपए दान भी दिया था । यही नहीं बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से एक थे जो कानून, शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आंदोलन एवं संविधान निर्माण आदि में भी योगदान दिया
।
सांसद सिंह ने शिक्षा, समाज एवं राष्ट्र में किये अतुलनीय योगदान हेतु डॉ. सर हरिसिंह गौर को भारत रत्न देकर बुंदेलखंड वासियों को अनुग्रहीत किए जाने का निवेदन प्रस्तुत किया ।
डॉ.हरिसिंह गौर के लिए क्यों हो रही भारत रत्न की मांग
सागर में एक गरीब परिवार में जन्में डॉ हरिसिंह गौर ने संघर्ष और मुश्किलों में जीवन जीते हुए अपनी शिक्षा पूरी की थी. विदेश में कानून की पढ़ाई कर पूरी दुनिया में अपनी वकालत का लोहा मनवाया था. उन्होंने एक शिक्षाविद के रूप में भी ख्याति अर्जित की. वे दिल्ली यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति थे. नागपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे और देश का संविधान बनाने में अहम भूमिका निभाई. अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने अपनी पूरी कमाई लगाकर सागर विश्वविद्यालय की स्थापना 1946 में की थी. जिसे 2008 में केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया.
मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न मिलने पर मांग ने पकड़ा जोर
2014 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने के बाद सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ हरिसिंह गौर को भारत रत्न देने की मांग ने जोर पकड़ा. स्थानीय लोगों का तर्क था कि मदन मोहन मालवीय ने चंदा करके विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. लेकिन डॉ हरिसिंह गौर ने अपने जीवन की पूरी कमाई दान करके सागर विश्वविद्यालय की स्थापना आजादी के पहले की थी.
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