शिक्षक की नौकरशाही से मुक्ति आवश्यक : प्रो. जगमोहन सिंह
★ शिक्षक दक्षता के लिए मानक
आवश्यक : प्रो. नीलिमा गुप्ता
सागर। डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर में आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में शिक्षको के लिए मानक विषय पर एक दिवसीय खुली परिचर्चा टीएलसी सागर, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् नई दिल्ली एवं विद्यालयी शिक्षा विभाग, मध्यप्रदेश के सहयोग से आयोजित की गई, जिसमें एन.सी.टी.ई के पूर्व अध्यक्ष पदमश्री जगमोहन सिंह राजपूत ने बताया की वर्तमान से शिक्षकों के समक्ष सबसे बड़ा संकट नौकरशाही है. जो उनकी स्वायत्ता को समाप्त करती है. शिक्षक व्यवसाय एक सेवा है. कार्यक्रम में कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए इस परिचर्चा की आवश्यकता को रेखांकित किया और बताया कि भारत में शिक्षक का सम्मान सदैव एक सामाजिक और सांस्कृतिक मान्यता का अंग रहा है. शिक्षक पर समाज सदैव विश्वास करता है. शिक्षक के लिए कौशल मानक आवश्यक है, जिनसे वह एक गुणात्मक शिक्षण-अधिगम कर सकेगा.
परिचर्चा में भाग लेते हुए
केन्द्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक परिसंघ के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार भागी ने बताया
कि जब तक शिक्षकों की सेवा-शर्तों, कार्य-प्रणाली, प्रोन्नति, कार्य -संस्कृति में
सुधार नहीं हो जाता तब तक किसी भी प्रकार के कौशल मानक व्यावहारिक नहीं कहे जा
सकते. उन्होंने बताया कि आज सबसे ज्यादा संकटग्रस्त शिक्षक ही है.
*
*
MP : हत्यारे बेटे को आजीवन कारावास की सजा, शराब पीने मांगे थे पैसे माँ से, नही देने पर की थी हत्या
लालबहादुर शास्त्री संस्कृत
विश्वविद्यालय के प्रो. रमेश पाठक ने कहा कि आज शिक्षक से समक्ष सबसे बड़ी चुनौती
प्राचीन और आधुनिक ज्ञान के सापेक्ष स्वयं को परिभाषित करने की है. हमें पारम्परिक
गुरु भी चाहिए और आधुनिक तकनीक से सुसज्जित आचार्य भी.
कार्यक्रम में सदस्य सचिव, एनसीटीई
नई दिल्ली केसांग वाई. शेरपा,
ने
अपने उद्बोधन में कहा कि राष्ट्रीय व्यावसायिक मानक (एनपीसीटी) का पिछले एक साल से ड्राफ्ट तैयार
हो रहा है और इस खुली चर्चा के माध्यम से आगे इसके क्रियान्वन में सहायता
मिलेगी। उन्होंने कहा कि करीब
2000 सुझाव पूरे भारत से एनपीसीटी के लिए आए थे और अभी तक
14 मुक्त विमर्श इस विषय पर हो चुके है। यह दस्तावेज शिक्षक प्रशिक्षण में सहायता करने के लिए एक महत्वपूर्ण
नीति के रूप में सामने आएगा । इस सत्र में कार्यक्रम समन्वयक डॉ. संजय शर्मा
ने परिचर्चा की आवश्यकता और उद्देश्यों को बताया.
सत्र का संचालन डॉ. सतीश ने किया.
दूसरे सत्र में
ऋषभ खन्ना ने विषय प्रवर्तन करते हुए
बताया कि एनपीसीटी में बीएड और एमएड से ही शिक्षकों को
व्यावसायिक प्रशिक्षण देने की बात पर ध्यान केंद्रित किया है। उन्होंने पांच प्रमुख
कारक को समझाया जिस पर इस दस्तावेज़ का निर्माण किया जा रहा है इसमें शिक्षक प्रशिक्षण,
शिक्षक
भर्ती, शिक्षक कौशल,
शिक्षक
मूल्यांकन और शिक्षक पदोन्नति शामिल हैं। इससे हर शिक्षक अपने विकास पर ध्यान दे सकेगा।
शिक्षकों को उनकी क्षमताओं के आधार पर चार स्तरों पर रखा जाएगा जिसमें प्रगामी शिक्षक,
प्रवीण
शिक्षक, कुशल शिक्षक और प्रमुख शिक्षक की
श्रेणी शामिल की गई है। चारों स्तरों पर शिक्षकों की क्या क्षमता होनी चाहिए इस विषय
पर दस्तावेज़ में विस्तार से जानकारी दी गई है जिसे उन्होंने उसके साथ आने वाली चुनौतियां
के साथ समझाया।
*
केन्द्रीय विद्यालय में केजी-1 में प्रवेश के लिए आवेदन शुरू, अंतिम तिथि 21 मार्च
एनआरसी एनसीटी नई दिल्ली के
अध्यक्ष प्रो. बी. एल. नाटिया, ने भाषा के
साथ शिक्षकों के आत्मविश्वास को जोड़ते हुए अपनी बात रखी। उन्होंने कहाकि अंग्रेजी
न आने के कारण हीन भावना का निर्माण होता है और इससे शिक्षक के प्रदर्शन में अंतर आता
है। उन्होने भारतीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इसे बनाने की सलाह दी। शिक्षा
को व्यवसाय कहने और उसके उत्पादन विद्यार्थी पर शिक्षक की गुणवत्ता बढ़ने से होने वाले
प्रभावों को भी उन्होंने उदाहरण देते हुए समझाया।
राज्य शिक्षा केंद्र, भोपाल के
निदेशक डॉ. अतुल दनायक ने मध्य प्रदेश में शिक्षक कौशल प्रशिक्षण के लिए अभी तक हुई
गतिविधियों और कार्यशालाओं की जानकारी दी। उन्होंने निष्ठा कार्यक्रम ऑनलाइन माध्यम
से शिक्षक प्रशिक्षण के अनुभवों को बांटा जिसमें उन्होंने शिक्षकों को जरूरी संसाधन
और गुणवत्ता के साथ नेतृत्व देने की बात कही जिससे उनकी क्षमताओं का बेहतर विकास हो
सके। जामिया मिलीया इस्लामिया, नई दिल्ली के
डॉ. सज्जाद अहमद ने एनपीएसटी को तैयार करने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव लाने
की चर्चा की। उन्होने संचालित पाठ्यक्रम में तैयारी, अभ्यास
और प्रस्तुति में सुधार लाने की बात कही। मंच संचालन आफरीन खान और आभार डॉ. रश्मि जैन
ने दिया।
प्रो. अजय कुमार चौबे, दिल्ली ने अपने वक्तव्य में शिक्षा एवं शिक्षक को अत्यंत संवेन्दनशील विषय बताया । शिक्षण के तीन मॉडल के बारे में बात करते हुए उन्होंने प्रथम मॉडल में शिक्षक अपना कार्य मात्र जीवन-यापन के लिए करता है। दूसरे में वह शिक्षण को व्यावसायिक रूप में देखता है और तीसरे मॉडल में शिक्षण को सामाजिक दायित्व के रूप में करता है। शिक्षक के पास कार्य करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए तभी वह अपने कार्य को पूर्ण निष्ठा से कर पाएगा।
डॉ राकेश सिंह, नई दिल्ली ने क्लास रूम में होने वाले संवाद में भाषा की उपयोगिता
पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण में भाषा और माध्यम को स्पष्ट करने
की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने विभिन्न भाषा को हर जगह स्वीकार करने की चुनौती
और भाषा में पठनीय सामग्री उपलब्ध करने की बात भी सामने रखी और भाषा के मुद्दे पर और
संवेदनशीलता से विचार करने की बात कही।
डॉ अश्विनी, मानू हैदराबाद ने बताया
कि यह दस्तावेज़ पूरी तरह से शिक्षक प्रशिक्षण से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अध्यापकों
और शिक्षण संस्थाओं को सुविधाओं और जवाबदेही के मानक तय करने का सुझाव दिया। शिक्षकों
को चार स्तरों में वर्गीकरण करने को उन्होंने नकारात्मक प्रक्रिया बताया और कहा कि
प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा को आपस
में जोड़ने का प्रयास करना चाहिए। जो शिक्षक सेवा में हैं उनके लिए भी शिक्षण की सही
व्यवस्था नहीं हैं, इस पर भी प्रयास होने चाहिए।
डॉ. मनीष वर्मा संयुक्त सचिव शिक्षा
विभाग सागर ने कहा कि पूर्व में बनी व्यवस्थाओं में सुधार एवं नवीनीकरण की आवश्यकता
है। उन्होने एक अहम सुझाव भी सामने रखा कि बीएलएड की शिक्षा को नर्सरी से पांचवी तक
करने और
बीएड को छटवीं से बारहवीं तक करना चाहिए। इससे बीएलएड पूर्ण रूप से प्राथमिक में और
बीएड उच्च शिक्षा के लिए क्रियान्वित हो सकेगी और भविष्य में शिक्षकों की कमी भी नही
होगी। डॉ आशुतोष गोस्वामी संयुक्त सचिव शिक्षा
विभाग सागर ने कहा कि एनपीएसटी ने पहली बार
शिक्षकों को राय ली है। उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हम जिस कार्य के लिए नियुक्त
हुए है हम उसे पूरा समय दे पा रहे हैं क्योंकि शिक्षकों को सरकारी कर्मचारी होने के
नाते अन्य कामों में भी लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि यह खुली चर्चा शिक्षण परविर्तन
में सुधार की एक शुरुआत है व उन्होंने वेबपेज बनाने की जानकारी दी जिसमे सुझाव आमंत्रित
होंगे। मंच संचालन डॉ. चिट्ठी बाबू और आभार
डा. रानी दुबे ने माना।
हिमाचल प्रदेश केन्द्रीय
विश्वविद्यालय के डॉ. नवनीत शर्मा ने इस दस्तावेज़
का प्रमुख उद्देश्य प्रभावी शिक्षण को बताया जिससे अध्यापकों का स्व मूल्यांकन किया
जाएगा। यह एक शिक्षण कौशल को विकसित करने में काम आएगा। अभी तक दस्तावेज में वर्णित
चीजों को लेकर उन्होंने कई प्रश्न किए जो व्यावहारिक और प्रायोगिक तौर पर संभव नहीं
हैं। इसकी आलोचनात्मक चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि क्या यह निजी विद्यालयों तक पहुंचेगा ? इसमें
स्त्री पुरुष समानता की बात कही है पर धरातल पर यह संभव नही है। इसमें कॉन्वेंट,
मदरसा
को जोड़ा नही गया है और संप्रभुता का कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा कि यह एक प्रारंभिक
दस्तावेज़ है और आशा है कि एक नया दस्तावेज आएगा जो इन मानकों को पूर्ण करेगा।
डॉ. सारिका शर्मा कुलसचिव केन्द्रीय
विवि हरियाणा ने कहा कि जब यह दस्तावेज़ लागू होने के बाद इसे अपनाने पर भी प्रयास
होने चाहिए । शिक्षक को नई तकनीक आनी चाहिए जिससे वह विद्यार्थी को समझा सके । हमें
व्यावसायिक मानक को बढ़ाना होगा और इसको बेहतर तरीके से लागू करने की जिम्मेदारी लेनी
होगी क्योंकि नीति तो आ जाती हैं पर वह सुचारू रूप से लागू नहीं हो पाती है। डॉ. प्राचीश
जैन ने इस प्रारूप के संदर्भ में शिक्षकों के विचारों को समाहित करने का सुझाव
दिया.
अज़ीम प्रेमजी न्यास, सागर के डॉ. आलोक सिंह ने व्यावसायिक विकास पर जोर दिया ।
उन्होंने कहा कि दस्तावेज धरातल से जुड़ा हुआ होना चाहिए। परिकल्पनाओ को स्पष्ट करने
की आवश्यकता है क्योंकि एक बात को कई बार दोहराया गया है जिसे बेहतर किया जा सकता है।
सत्र की अध्यक्षता कर
रही डॉ. ऋतु यादव ने कहा कि विद्यालय शिक्षा में सुधार की आवश्यकता हैं ।
डॉ संजय शर्मा ने खुली चर्चा में
शामिल हुए समस्त वक्ताओं की बात का सारांश प्रस्तुत करते हुए अपनी बात रखी। उन्होने
कहा कि शिक्षक पैदा नही होते उन्हे प्रशिक्षण देकर शिक्षक बनाया जाता है। हमे इस दस्तावेज़ को भारतीय संदर्भ
में तैयार करने की जरूरत है.
एनसीटीई के उप सचिव डॉ. डी. के. चतुर्वेदी ने बताया कि परिषद् को 28 साल
हो चुके है, यह लगातार शिक्षकों की गुणात्मक शिक्षा के लिए काम कर रहा है । उन्होंने प्रारूप निर्माण की
विभिन्न गतिविधियों को साझा किया. सागर विश्वविद्यालय के सहयोग से आगे भी कार्य
करने की मंशा जाहिर की .
उन्होंने बताया कि एनपीसीटी में
सुझाव के लिए पोर्टल खोला गया है, जिसमे प्राप्त सभी सुझावों के आधार पर कार्य
किया जायेगा. मंच संचालन डॉ विवेक जायसवाल
ने किया और आभार कुलसचिव संतोष सहगोरा ने माना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें