वेदों के उपदेश सार्वकालिक हैं- प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी
सागर. 13 मार्च। डॉ हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर के संस्कृत विभाग के तत्त्वावधान में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान उज्जैन के सहयोग से आयोजित ‘वैदिक वांग्मय के विविध आयाम एवं प्रासंगिकता’ पर दो दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का उदघाटन हुआ. वैदिक मंगलाचरण के साथ संगोष्ठी का शुभारम्भ हुआ.
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मुख्य अतिथि केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई
दिल्ली के पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि वेदों के उपदेश
सर्वयुगीन, सार्वजनीन एवं सार्वकालिक हैं. इनकी सभी शाखाओं, सभी संहिताओं,
ब्राह्मणों, अरण्यकों, एवं उपनिषदों का अध्ययन निरपेक्ष भाव से करना चाहिए. भारतीय
मनीषा का सम्पूर्ण विश्व में जो आदरपूर्ण स्थान है वह वेदों के कारण ही है.
मैक्समूलर का वेदों के प्रचार में महत्त्वपूर्ण अवदान है.
भारतीय जनजीवन में वेदों का अप्रतिम योगदान- कुलपति प्रो.
नीलिमा गुप्ता
अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.
नीलिमा गुप्ता ने भारतीय संस्कृति, संस्कृत और वेदों के अवदान पर अपना वक्तव्य
दिया. उन्होंने कहा कि भारतीय जनजीवन में वेदों का अप्रतिम योगदान है. मानव जीवन
के आचार और विचार वेदों एवं उपनिषदों से ही लिए गये हैं. प्रत्येक व्यक्ति को जीवन
में वेदों का स्वाधय्याय अवश्य करना चाहिए.
मुख्य वक्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान नई दिल्ली के सदस्य
सचिव प्रो. सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि सभी दर्शनों एवं उसकी विभिन्न शाखाओं का
मूल उत्स वेड हैं. उन्होंने सांख्य, न्याय आदि दर्शनों का विवेचन करते हुए इसके
विकास में वेदों के अवदान को रेखांकित किया. प्रो. अमलधारी सिंह ने ऋग्वेद की शाकल
शाखा के मन्त्रों, सूक्तों एवं अन्य विषय वस्तुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. शाकल
संहिता के सूक्तों पर सूक्ष्मता से अपने विचार प्रस्तुत किये और इसकी महत्ता को भी
रेखांकित किया. विशिष्ट अतिथि कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने कहा कि वेद विद्याओं के
स्रोत हैं. ऋषियों ने अपने अंतःकरण में जिस तत्त्व का साक्षात्कार किया वह वेदवाणी
है. केवल भारतीय ही नहीं बल्कि पाश्चात्य विद्वानों ने भी वेदों की मुक्त कंठ से
प्रशंसा की है.
शोध पत्रिका ‘सागरिका’ एवं
पुस्तकों का विमोचन
इस अवसर पर अतिथियों ने
विभाग की शोध पत्रिका ‘सागरिका’ तथा विभाग के साहयक प्राध्यापक डॉ संजय कुमार
द्वारा डॉ रामजी उपाध्याय पर लिखित पुस्तक एवं डॉ बालकृष्ण शर्मा की पुस्तक ‘ध्वनि
प्रकाशे मुक्तक विमर्शः’ का विमोचन किया. डॉ. राधावालभ त्रिपाठी को सम्मान-पत्र और
सभी अतिथियों स्मृति चिन्ह भेंट किया गया. विचार संस्था द्वारा गौ-उत्पाद से
निर्मित वस्तुएं भी अतिथियों को भेंट की गईं.
कार्यक्रम में स्वागत भाषण
विभागाध्यक्ष प्रो. आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने दिया और संचालन डॉ नौनिहाल गौतम ने
किया. इस अवसर पर भाषा अध्ययनशाला के अधिष्ठाता प्रो. बी आई गुरु, डॉ अनूप कुमार
मिश्र, प्रो जे के जैन, प्रो नागेश दुबे, प्रो ए डी शर्मा, प्रो चंदा बेन, डॉ आशुतोष,
डॉ आर पी सिंह, डॉ सुरेन्द्र यादव, डॉ वंदना, डॉ लक्ष्मी पाण्डेय, डॉ हिमांशु सहित
विवि के कई शिक्षक, शोधार्थी, विद्यार्थी, शहर से पधारे गणमान्य नागरिक एवं देश
भार से आये प्रतिभागी अतिथि उपस्थित थे.
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