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अद्वैत मत या धर्म सम्प्रदाय नहीं, भारतीय संस्कृति का मूल है- श्री श्री शंकर भारती महास्वामी

 
अद्वैत मत या धर्म सम्प्रदाय नहीं, भारतीय संस्कृति का मूल है- श्री श्री शंकर भारती महास्वामी 
 

सागर. 13 फरवरी. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के पतंजलि भवन में यडतोरे श्री योगानन्देश्वर सरस्वती मठ, कृष्णराजनगर, मैसूर के मठाधिपति श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी महाराज का व्याख्यान कार्यक्रम हुआ. आचार्य शंकर द्वारा रचित महत्वपूर्ण कृतियों में से एक ‘सौन्दर्य लहरी’ पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि आमतौर लोग यह मानते हैं कि अद्वैत एक अलग धर्म या सम्प्रदाय का नाम है जबकि वास्तविकता यह है कि अनेक ज्ञान परम्पराओं की भांति यह भी एक ज्ञान परम्परा है जिसका अर्थ है ‘सुख’. आचार्य शंकर ने अद्वैत वेदान्त दर्शन के माध्यम से लोक कल्याण एवं सुख का प्रबोधन किया. उनका सिद्धांत या विचार इस मूल प्रश्न की खोज है कि मनुष्य का जन्म सफल कैसे हो सकता है. पूर्ण सुख की प्राप्ति ही जीवन का सुफल है. प्रत्येक मनुष्य को सुख चाहिए. उन्होंने कहा कि बिना तत्त्वज्ञान के पूर्ण सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती. उन्होंने आचार्य शंकर द्वारा रचित ‘सौन्दर्यलहरी’ की पारायण की बात कही. उन्होंने अनेक श्लोकों का उद्धरण लेते हुए यह बताया कि इसमें भोग और मोक्ष प्राप्ति दोनों के बारे में बात कही गई है अर्थात सांसारिक जीवन में रहते हुए हम कैसे अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और आनंद की प्राप्ति कर सकते  हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय के संस्कृत के पाठ्यक्रम में सौन्दर्यलहरी के सम्मिलित होने पर प्रसन्नता व्यक्त की.  
 
उन्होंने कहा कि समाज के हर वय के लोगों को सुख की आवश्यकता होती है. सौन्दर्यलहरी का चिंतन करने पर अद्भुत आनंद की प्राप्ति होती है. उन्होंने इसमें बताये गए श्रीविद्या तत्त्व के बारे में भी विस्तारपूर्वक बताया और कहा कि इस तरह के ग्रन्थ प्रस्तुत करके आचार्य शंकर ने पूरी मानव जाति पर उपकार करने का काम किया है. इसके पाठ से मृत्यु से भय दूर हो जाता है. देवों के जैसा ही एकात्म भाव विकसित होता है और मनुष्य का कल्याण संभव होता है. उन्होंने प्रश्नोत्तरी के रूप में उनकी पुस्तक ‘विवेकदीपनी’ के कई सन्दर्भों के माध्यम से यह बताया कि मनुष्य को अपने जीवन में गुरुवचन को सर्वोपरि रखना चाहिए. दुष्कर्मों का त्याग करना चाहिए और मित्र ऐसे बनाने चाहिए जो बुरे कार्यों में संलग्न होने से बचाए. उन्होंने कहा कि आचार शंकर के विचार हमें सत्कर्मों को करने और एक अच्छे समाज निर्माण की प्रेरणा देते हैं. उन्होंने दो वर्ष पूर्व विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अद्वैत उत्सव की भी प्रशंसा की और कहा कि आचार्य शंकर के वेदान्त पर शोध और अध्ययन देश के कई हिस्सों में किया जा रहा है और कई शोध केंद्र भी बनाए जाने की योजना चल रही है. 
 
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने स्वागत वक्तव्य देते हुए कहा कि यह एक सुखद अवसर है कि विश्वविद्यालय में ऐसे उच्च कोटि के साहित्य के मर्मज्ञ और ज्ञान प्रदान करने वाले सत्पुरुष का आगमन हुआ है. महामनीषी, दानवीर डॉ. गौर द्वारा स्थापित शिक्षा के इस मंदिर में ज्ञान के शलाका पुरुष की उपस्थिति से विश्वविद्यालय ध्येय वाक्य ‘असतो मा सद्गमय’ की दिशा में बढ़ेगा. 
 
कार्यक्रम में स्वामी जी का परिचय डॉ. किरण आर्या ने प्रस्तुत किया. संचालन डॉ. शशि कुमार सिंह ने किया. संस्कृत में हुए व्याख्यान का त्वरित अनुवाद डॉ. नौनिहाल गौतम ने किया. आभार वक्तव्य कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने किया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी, सागर शहर के विभिन्न सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संगठनों के सदस्य, गायत्री पीठ के सदस्य एवं नागरिकगण उपस्थित थे. आयोजन में जन अभियान परिषद के सदस्यों ने महती भूमिका निभाई. इस पूरे आयोजन में जिला प्रशासन का अभूतपूर्व सहयोग रहा.              
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