राष्ट्रीय अस्मिता का द्योतक: अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस★प्रो. नीलिमा गुप्ता ,कुलपति

राष्ट्रीय अस्मिता का द्योतक: अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस,
★प्रो. नीलिमा गुप्ता ,कुलपति

पूरे विश्व में 21 फरवरी अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है। किसी भी देश की राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक स्वाभिमान का प्रतीक मातृभाषा होती है। 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का संकल्प सर्वप्रथम बांग्लादेश द्वारा किया गया। यूनाइटेड नेशन्स एजूकेशनल, साइंटिफिक एंड कल्चरल आॅर्गनाइजेशन ;न्छम्ैब्व्द्ध की आमसभा ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का संकल्प नवंबर 1999 में लिया जिसे यूनाइटेड नेशन्स की आमसभा ने 2002 में इसका स्वागत किया। 16 मई, 2007 को यूनाइटेड नेशन्स ने यह संकल्प लिया कि समस्त देशों कोमातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित किया जाये। आज 21 फरवरी एक अंतर्राष्ट्रीय वार्षिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को दूसरों से आदान-प्रदान कर सकते हैं और वह हमारी भौतिक और अभौतिक सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित कर इसे शक्तिशाली बनाये रखती है। मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए सभी कदम न केवल भाषा के विविध बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए, बल्कि दुनिया भर को प्रोत्साहित कर जागरूकता विकसित करने और समझ और संवाद के आधार पर एकजुटता को प्रदर्शित करने के लिए है।
          (कुलपति : प्रो नीलिमा गुप्ता)

पूरे विश्व में हर 14 दिन में कोई एक भाषा विलुप्त हो रही है, और अपने देश भारत में भी स्थिति अच्छी नहीं है। भारत में कुल 19,500 भाषायें बोली जाती हैं जिनमें से करीब 2,900 विलुप्त होने की कगार पर हैं। सत्य तो यह है कि इन भाषाओं को मात्र 100 या इससे कम लोग बोलते हैं। मात्र 121 भाषाएँ 10,000 से अधिक लोग बोलते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि 121 भाषाओं में 99 भाषायें भारत के 3.3 प्रतिशत लोग ही बोलते हैं और बाकी 22 भाषायें भारत के 96.7 प्रतिशत लोग बोलते हैं और यही 22 भाषायें हैं जिन्हें भारत के संविधान की 8वीं अनुसूची में आधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त है। यह आंकड़ें हमें स्पष्ट बताते हैं कि हमें अपनी मातृभाषा के विस्तार के लिए पूर्ण प्रयास करने होंगे और यदि हमने ऐसा नहीं किया तो हमारी भाषा भी उसी सूची में शामिल होगी जो हर 14 दिन में विलुप्त हो रही है।

मातृभाषा उसे कहते हैं जिस भाषा को बच्चा जिंदगी में पहली बार बोलता है। बच्चा बचपन में अधिकतर अपनी माँ के पास ही रहता है, और स्वाभाविक है कि माँ जो भाषा बोलती है, बच्चा भी उसी को सीखता है और बोलता है। हर मातृभाषा की कुछ खासियत होती है और मुख्यतः वह 3 चीजों को जोड़ती है: सांस्कृतिक मूल्य, परंपरा और इतिहास। 
ज्यादातर लोगों के लिए यह मात्र एक भाषा है लेकिन बहुभाषी परिवारों में बच्चा एक साथ दो भाषा सीख सकता है,परन्तु ऐसा होने पर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक एकरूपता को प्राथमिकता दी जा सकती है। हम यह भी कह सकते हैं कि यह हमारी मूल भाषा है या हम इसे ऐसे भी परिभाषित कर सकते हैं कि एक भाषा जिससे दूसरी भाषा निकलती है उसे मातृभाषा कहा जाता है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस भाषा संबंधी और सांस्कृतिक विविधता में जागरूकता को बढ़ावा देने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए 21 फरवरी एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस उत्सव के रूप में मनाया जाता है जिससे कि भाषायी और सांस्कृतिक विविधता डनसजपसपदहनंसपेउ को बढ़ावा दे सके और उसका निरंतर विकास कर सकें। विश्व के किसी भी देश में प्राथमिक शिक्षा विदेशी भाषा में नहीं दी जाती। विश्व के परिप्रेक्ष्य में लगभग सभी उन्नत एवं विकसित देशों में वहाँ की शिक्षा, शोध कार्यों, शासन-प्रशासन की भाषा वहाँ की भाषा होती है और अपने देश में भी ऐसे ही भाव को प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि सभी कार्य मातृभाषा में हों। भारत के महापुरूषों, शिक्षाविदों जैसे विनोबा भावे, महात्मा गाँधी, पं. मदन मोहन मालवीय, डाॅ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के भी यहीं विचार थे। पूर्व में किए गए अध्ययन यहीं बताते हैं कि अपनी भाषा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण करने से चिंतन एवं विचारों में मनोवैज्ञानिकता एवं सृजनात्मकता आती है और कठिन विषय भी सुगमता से समझ में आ जाते हैं।


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इस वर्ष अपना देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, इन सपनों को साकार करने में अन्य घटकों के साथ-साथ हिंदी की भी महती भूमिका रही है। भारत में अनेक भाषाओं का समागम है, अतः देश में एकरूपता लाने के लिए पूरे देश में एक भाषा को प्रयोग में लाना चाहिए। लोकमान्य तिलक ने हिंदी के संबंध में विचारों में लिखा है -”यह तो उस आंदोलन का अंग है जिसे मैं राष्ट्रीय आंदोलन कहूँगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्वपूर्ण अंग है।“
कुछ इसी प्रकार के विचार भारतेन्दु हरिश्चंद्र के रहे हैं जिन्होंने लिखा हैः-
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।
महात्मा गाँधी ने अपने पत्र हिंदी नवजीवन में लिखा है ”इस विदेशी भाषा (अंग्रेजी) के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है, उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है।“
एक तरफ जहाँ हिंदी सिनेमा खरबों रूपयों की इंडस्ट्री है तो दूसरी तरफ देश के सर्वाधिक पठित अखबार हिंदी के हैं। यदि हम टेलीविजन की बात करें तो 2 तिहाई चैनल हिंदी के हैं और सर्वाधिक देखे जाने वाले चैनलों में हिंदी आगे है। विज्ञापन में भी हिंदी का बोलबाला है और यह भी प्रसन्नता का विषय है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी भाषा नीति को प्रोत्साहित किया गया है और एक तरफ जहाँ हम भारत में हिन्दी और मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ पूरी दुनिया में 200 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। डिजिटल इंडिया के अंतर्गत मोबाइल एप्स आदि में भी हिंदी की अपार संभावनायें हैं। गूगल का अनुमान है कि वर्ष 2024 तक भारत में अंग्रेजी की तुलना में हिंदी माध्यम से इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या कहीं अधिक होगी। पुस्तक प्रकाशक किताबों के प्रिंट वर्जन के साथ-साथ आडियो डिजिटल वर्जन भी हिंदी में प्रकाशित कर रहे हैं। आडियो किताबों का ई-वर्जन जैसी डिजिटल दुनिया ने हिंदी का एक नया संसार ही बना दिया है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने में देश भर में प्रयास हो रहा है और इसे साकार करने में हिंदी की भी एक महती भूमिका होगी इसका हमें पूर्ण विश्वास है।
आज अन्य देशों में भी हिंदी सीखने की जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। हिंदी सिनेमा, हिंदी टेलीविजन के बढ़ते प्रसार ने हिंदी सीखने की चाहत को कई गुना बढ़ा दिया है। आज पूरे विश्व में कोई योग को समझने के लिए, कोई भारतीय अध्यात्म को समझने के लिए हिंदी को सीखने का प्रयास कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर यह आवश्यक है कि मातृभाषा में आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के साथ-साथ उच्च शिक्षा में भी हिंदी भाषा प्रयोग को बढ़ावा देने के प्रयास किये जायें तथा सभी संस्थानों मेंहिंदी को प्रोत्साहित किया जाये। हिंदी ज्ञान, विज्ञान, चिंतन, परंपरा की भाषा एवं उचित माध्यम बने।भाषा का ज्ञान, ज्ञान का द्वार है। इस अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर, आइए, हम सभी संकल्प लें कि हम अपनी मातृभाषा का सम्मान करें क्योंकि:
मातृभाषा का सम्मान, देश का सम्मान है,
हमारी स्वतंत्रता वहाँ है, मातृभाषा जहाँ है।
इसी सम्मान से हम अपने देश, भारत का सम्मान बढ़ाने में और नए भारत की संरचना करने में सफल होंगे।

( लेखिका  प्रो. नीलिमा गुप्ता, 
डाॅक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की कुलपति है)

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