चित्त की क्रिया है भाषा - प्रो0 सुरेन्द्र पाठक
★ बीएचयू में अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस का आयोजन
वाराणसी। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के तत्वाधान में महामना व्याख्यान माला के तहत अंतराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर बेविनार का आयोजन संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि मानव मूल्यों के विशेषज्ञ और गुजरात विद्यापीठ के विशिष्ट प्रोफेसर सुरेन्द्र पाठक ने भाषा का महत्व बताते हुए कहा कि भाषा चित्त की क्रिया है तथा भाषा क्रियाशीलता है। भाषा का अनुभव ही बुद्धि मंे स्वीकार होता है। आपने कहा कि भाषा के मूल में भाव है तथा भाव के मूल में मौलिकता है और इसी मौलिक गुण के कारण अपनी भाषा ही प्रभावी भूमिका अदा करती है। मातृभाषा में कार्य करने में सफलता की गारंटी ज्यादा रहती है, क्योंकि शिशु गर्भ से ही मातृभाषा मंे सीखना प्रारंभ कर देता है।
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अध्यक्षता करते हुए मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र के समन्वयक प्रो0 आशाराम त्रिपाठी ने कहा कि मातृभाषा के सबसे बड़े पैरोकार महामना मालवीय जी थे। उन्होनें न्यायालय में मातृभाषा में कार्य करने के लिए जो आंदोलन किया वह अविस्मरणीय है। स्वागत भाषण डा0 रामकुमार दांगी ने दिया। संचालन डा0 संजीव सराफ तथा आभार डा0 उषा त्रिपाठी ने व्यक्त किया।
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इस अवसर पर उपसमन्वयक प्रो0 गिरिजाशंकर शास्त्री, डा0 अभिषेक त्रिपाठी, डा0 प्रीति वर्मा, डा0 विवेकानंद उपाध्याय, डा0 रमेश निर्मेष, डा0 धर्मजंग, डा0 राजीव वर्मा, डा0 रमेश लाल का विशेष सहयोग रहा।
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