कोरोना के तीसरी लहर के बीच भारत मे वैक्सीनेशन और मेरे कोरोना संक्रमण की बरसी
★ होमेन्द्र देशमुख / वीडियो जर्नलिस्ट, एबीपी न्यूज़
सुबह एक राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल के राज्य प्रमुख से बात हुई । तीन दिन पहले उनको सर्दी के साथ हल्का बुखार आया । मित्रों ने टेस्ट करवाने की सलाह दी और रैपिड एंटीजन टेस्ट में वो पॉजिटिव निकले । वो बहुत याद करते हैं पर उन्हें समझ नही आता कि उनको कहां से यह रोग लगा होगा । विश्वास ही नही होता कि उन्हें कोरोना हुआ होगा । अक्सर सभी को ऐसा ही लगता है लेकिन रैपिड और RTPCR के रिपोर्ट में कई बार फर्क भी होता है इसलिए उन्होने दूसरे दिन RTPCR करवाया ।
लेकिन 'ढाक के तीन पात' दो बड़े लहर के अनुभव के बाद भी मप्र की राजधानी भोपाल में सरकारी कोविड जांच केंद्र की रिपोर्ट तीन दिन से पहले नही आ पाती जबकि 700 रुपये में निजी लैब में वही रिपोर्ट साढ़े छः घण्टे में पीडीएफ सर्टिफिकेट के साथ आपके मोबाइल पर आ जाता है ।उनको दोनो वैक्सीन के डोज़ समय पर लग चुके हैं ।
खैर , बात वैक्सीन की आ गई ।
16 जनवरी 2021 से देश भर में कोविड के वैक्सीन लगने शुरू हुए थे । हजार अफवाहों और वैक्सीन विरोधी रिपोर्ट के हवालों के बावजूद भी हम जैसे पढ़े लिखे लोग बेसब्री से उस शुभ तिथि का पिछले ग्यारह महीनों से इंतज़ार कर रहे थे । पहले फेस में स्वास्थ्य कर्मियों , वारियर्स को कोविड के टीके लगने थे । मप्र के भोपाल में हमीदिया अस्पताल में केंद्र बना जहां मुख्यमंत्री शिवराज जी ने हमीदिया अस्पताल के एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी को पहला टीका लगवाने पर सम्मान किया ।
हज़ार समझाइशें ,लाख सावधानी और करोड़ों का डर... हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कर्मियों को अपने कैमरों के लेंस की प्यास और अच्छे चित्र ,एंगल और सबसे पहले का भूख हमे कभी कभी लापरवाह बना देता है । अच्छा जलसा था ,भीड़ थी, धक्का-मुक्की भी थी । और जाहिर है कोरोना भी ऐसे भीड़ में साथ हो ! इसीलिए तो हम मास्क सोशल डिस्टनसिंग और सेनेटाइजर की सावधानियां बरतते हैं । उसी अनजान खतरे के लिए सरकारें गाइड लाइंस बनाती हैं । जिसका अक्षरशः पालन करना हमारा फर्ज और धर्म मानना चाहिए ।
इसी के पांच दिन पहले मुझे हल्का बुखार हुआ था लेकिन एक टाइम के पैरासीटामॉल से वह उसी दिन चला गया था । क्योंकि तब कोरोना लगभग खात्मा की ओर था ,भोपाल में 2000 से संक्रमण बमुश्किल इन दिनों 200 प्रतिदिन के आसपास आ चुका था । ठंडक और बादलों का उतार चढ़ाव इसी सप्ताह चल रहा था । इसलिए यह नही लगा कि मुझे कोरोना भी हो सकता है पर हां मैंने अपनी सावधानी स्वतः स्ट्रिक्ट कर लिया था । गम्भीर कोई लक्षण नही होने के बाद भी तीन दिन प्रीकाशनली छुट्टी में बिताने के बाद अच्छा लगने पर आज पुनः काम पर लौटा था । पर अब डबल सावधानी के साथ ।
इसी 16 जनवरी के दिन शनिवार को दोपहर हमीदिया से घर लौटते समय सिर में बने हल्के भारीपन के लिए मेरे प्रिय निजी चिकित्सक के पास यूं ही चला गया ।
क्लिनिक में डॉक्टर साहब ने सप्ताह भर के दवाई का पर्चा लिखने के साथ ही विशेष symptoms न भी हो तो प्रिकॉशनली, कोरोना टेस्ट करवाने की सलाह भी लिखी और मैं अपने रिपोर्टर साहब को सारी बातें बताकर भोपाल के शासकीय जयप्रकाश अस्पताल के फीवर क्लिनिक के कोविड सैम्पल कलेक्शन सेंटर पहुच गया ।
मित्र रिजवान खान ने वहां आकर मेरी मदद की । मैंने कोविड के RTPCR जांच के लिए सैम्पल दिया और आधे घण्टे बाद 2 बजे दोपहर को घर लौट गया ।
क्या covid रिपोर्ट पॉजिटिव आएगा..?
क्या निगेटिव....?
मन मे यही एकमात्र सवाल बार बार उबालें मार रहा था ।
अगर निगेटिव आए तो कैसा रियेक्ट करूँगा । अगर पॉजिटिव आएगा तब क्या करूँगा कैसे लोगों को बताऊंगा ,लोग क्या कहेंगे .. मुन्ना ..! तेरी सारी सावधानी तपस्या मास्क दस पन्द्रह लीटर सेनेटाइजर ,ऊपर से अपने ही लोगों के मेरे इस precaution पर सहकर्मियों ,बिरादरियों ,घर दोस्त ,पड़ोसी ,और तो और परिवार के ताने -उलाहने...एक दो घण्टे इसी सोच और कशमकश में बीते ही थे कि हमारे सुख दुख और चौबीस में से रोज के रोज बारह घण्टे अनिवार्य के साथी -सहकर्मी ,मेरे रिपोर्टर ,मुखिया श्रीमान ब्रजेश राजपूत जी का एक घबराया सा फ़ोन कॉल आ गया...
क्या मुन्ना ..! ( मुन्ना मेरे घर का नाम है जो ब्रजेश जी की वजह से फील्ड में 80 प्रतिशत लोग मुझे इसी नाम से जानते हैं ) तुमने कोविड टेस्ट कराया.. किसने कराने कहा ,क्यों जरूरी था ,क्या सिम्पटम्स थे । तुमने मुझे बताया तो था लेकिन मैंने तब सीरियसली नही लिया था.. आदि आदि...!
असल मे इस बीच उनके किसी शुभचिंतक ने शायद उन्हें covid टेस्ट की गम्भीरता पर कोई संकेत वगैरह दिया हो.. खैर उनकी बातें अभी खत्म नही हुई थीं । बल्कि असल चिंता जो उनको मेरे लिए और स्वयं अपने लिये भी थी वह अब बहुत स्वाभाविक और अनुमानित भी थी वह फ़ोन के स्पीकर पर आ ही गई .
''यार क्या तुम्हारे सिम्पटम्स कोरोना के ही थे , यार अगर थे तो आज आफिस नही आना था । अब हम भी मारे गए । हम सब को कोरोना का खतरा है औऱ खतरे का डर भी ..!"
पर , मेरा कॉन्फिडेंस देखिए., मैंने उन्हें ऐसे नाविक और कप्तान की तरह आस्वस्त किया कि जो तूफान में घिरा है लेकिन उसे भी मालूम है कि तूफान तो नही रुकना पर नाव में हुए छेद को क्योंकि मैं समय समय पर भरता रहा हूँ । इसलिए मुझे विश्वास हो कि तूफान का पानी आपको ऊपर से नही डुबाएगा और भर चुका हुआ नाव का छेद नीचे से नही डुबाएगा । आप केवल समय का इंतज़ार करें ।
असल में मीडिया के जॉब और संक्रमण के हाई रिस्क के कारण पहले वाले कोरोना लहर से ही सतर्कता मेरे आदत में शुमार हो गई थी । मास्क सेनेटाइजर डिस्टेंस को यथा संभव मेंटेन करता और अपने को दूसरों से और दूसरों को अपने से सुरक्षित रखने में अब तक सफल रहा था । मेरे सहकर्मी, मित्र आदि मुझे ताने भी मारते पर मैं अपने सावधानियों पर चाहे बेशर्मी कहें , डटा रहता ।
कई दिनों से रोज मुलाकातों और दिन भर की एक्टिविटी की डायरी लिखता और घर लौटकर या जरा सी सर्दी जुकाम होने पर अपने आप को क्रॉस एग्जामिन करता । घर मे भी यही हाल था । जब भी किसी जगह से खतरा महसूस होता दस दिनों के लिए घर मे बिस्तर और कमरा अलग कर लेता ।
मतलब है , covid के इन ग्यारह महीनों में मैंने बहुत सावधानी बरती है । बस सेनेटाइजर को पिया भर नही है ।
भीड़ से भागना हमारे पत्रकारिता के पेशे या मेरे कैमरामैन के जॉब के विपरीत है । अपनी सुविधा और सावधानी के लिए कई बार प्रोटोकॉल का उल्लंघन दूसरे भी कर देते हैं तब आप दूर मास्क लगाकर और सेनेटाइजर हाथ मे लेकर कोरोना सावधानी का आइकन 'दूत का बुत' बनकर खड़े नही रह सकते । उस भीड़ में ढीठ बनकर अच्छे विज़ुअल और बाइट के लिए डटे रहना पड़ता है । ऐसे में मेरे चेहरे पर हरदम चढ़ा मास्क , और साथ मे फील्ड और ट्रेवल में डिस्टेंस की सावधानी की हर सम्भव कोशिश । यही मेरा शगल बन गया था । मैंने अपनों और बेगानों से तरीफ भी सुनी तो इसके लिए ताने भी सुने । कभी किसी ने इसके लिए मुझे नकारात्मक सोच वाला बताया तो किसी ने कहा 'be-possitive ' । मुझे कोई फर्क तो नही पड़ा लेकिन हमेशा एक सुकून घर लौटते समय जरूर होता था कि मैं शायद किसी से वायरस लेकर या किसी को सौंपकर नही जा रहा होता था ।
पर एक कहावत है ''बकरी की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी...!"
एक दिन तो 'कटना' ही था । आज ही सही.. क्योंकि वैक्सीन के खोज के हल्ले और लगातार सफाई करते ढीले पड़ते जा रहे मास्क ने अब कभी कभार इस अनजान दुश्मन को भी शायद हमारे सांसों के कण में घुसपैठ करने को उकसाए जा रहा था । मास्क तो रोज बदलना चाहते थे पर क्वालिटी का मास्क नही है कह कर सप्ताह भर से नई खरीदी नही हो पा रही थी ।
पर इसी बीच अचानक प्रोन जोन में पिछले दिनों एक कवरेज के सिलसिले में दौरा हो गया , सारा गुड़-गोबर होने का अंदेशा आ चुका था ।
पर इन दिनों कुछ और फ्रेश- नए मास्क लगा लिए तो इस बीच मुझसे संपर्क में आए लोगों को बिल्कुल भी चिंता करने की कदापि कारण नही था । और इसके लिए मैं तो आश्वस्त था ही , श्री ब्रजेश जी और मेरे सहकर्मी मित्रों को भी बताने की कोशिश की कि अगर पॉजिटिव आ भी गया तो भी मेरी वजह से आप सब को डरने की जरूरत नही ।
मन मे यही सुकून था कि अगर पॉजिटिव आ भी गए तो ये मुमकिन है हम डूबेंगे लेकिन किसी और को साथ नही डुबाएँगे । यह आत्मविश्वास मेरा था । पर अपने आत्मविश्वास को किसी दूसरे का विश्वास बनाना यह आपके हाथ मे नही होता ।
खैर मैंने यही बात अपने छोटी सी पर नाजुक बातचीत में बहुत ही निवेदन और आग्रह की भाषा मे समझाने की कोशिश जरूर की थी । शायद मैं सफल भी रहा..!
उधर क्लिनिक में डॉक्टर साहब ने मुझे सुबह ही ताकीद कर दी थी एक बार शाम आकर और दिखा जाना । उनके दोपहर दी गई दवा से सिर का भारीपन कुछ हल्का लगने और गले से कफ गलने की बात बताई । और सुधार होती तबियत के संकेत लेकर हम चैन से घर लौट आए ।
दूसरा दिन रविवार था । तबियत पहले से और ठीक थी फिर भी 10 बजने का बेसब्री से इंतज़ार था ।
जैसा कि मार्च 2020 में मध्यप्रदेश में पहला कोरोना पेसेंट मिला तो इन साढ़े दस महीनों में कोरोना के covid टेस्ट कराने का यह मेरा दूसरा मौका था ।
10 बज गए 11 बज गए , 12 ..1 दोपहर शाम ..
पूरा रविवार इंतज़ार में बीत गया पर कोविड टेस्ट का मुआ रिपोर्ट नही आया । थोड़ा खुशी थोड़े डर भी थे , अक्सर देर होता रिपोर्ट डराते जाता है और डर के जीत के पॉजिटिव सोच के साथ साथ दूसरे दिन सोमवार को सुबह 11 बजे covid टेस्ट भी पॉजिटिव आ ही गया ।
बहुत नकारात्मक बातें आती हैं रोजमर्रा की जिंदगी में । प्रवचनों में विचारों में लिखने में पढ़ने में पॉजिटिविटी की बातें तो हम लोग बहुत करते हैं पर वह पॉजीटिविटी कहीं असल मौकों पर दिखता-विखता नही ।
यह पहला मौका था हम न केवल पॉजिटिव हुए थे बल्कि बकायदा प्रमाणित भी हुए थे । जगजाहिर...!
लापरवाहियों पर वायरस की नजर जबरदस्त
कोरोना की यह महामारी न तो मीडिया देखती है न राजनीति, न पुलिस न आर्मी । पर हम लोग लापरवाह कब कब होते हैं ,उस पर इस वाइरस की जबरदस्त नज़र रहती है । जब तक RTPCR की रिपोर्ट न आ जाए तब तक कोई स्वीकार नही कर पाता कि उसे सचमुच कोरोना हो सकता है । कोरोना के बीच मीडियाकर्मियों का निडर हो कर काम करना लापरवाही नही बल्कि work spirit है । दिन भर के काम मे उसे एक बार किसी अस्पताल ,कोविड सेंटर, टीकाकरण केंद्र , व्यवस्था से जुड़े राजनेता से मिलने और भीड़भाड़ वाले जगहों में जाना ही पड़ता है । डरना जरूरी है पर डर के साथ जीना भी आता है । जीना पड़ेगा । वरना स्वास्थ्य कर्मी और दूसरे कोरोना वारियर्स की तरह ही पत्रकार भी घर नही बैठ सकता । हां , सावधानी भी जरूरी है ।
आज 15 जनवरी 2022 के दोपहर तक उन वरिष्ठ पत्रकार मित्र का टेस्ट रिपोर्ट नही आया था पर उनके बातों में सचमुच कोरोना पॉजिटिव आ चुका था .. और उन्होंने बताया कि अपनी सावधानी शुरू कर दी थी ।
हमारी सोच में यही परिवर्तन ही तीसरी लहर के बाद किसी चौथी लहर को आने से इंकार कर दे । अगर ये लहरें आतीं भी रहें तब भी हम इतना मान कर तो सावधानी बरत लें कि कोरोना मुझे भी हो सकता है , अगर सावधानी पूरी नही बरती ।
आज बस इतना ही ...!
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