डॉ.अम्बेडकर भारतीय बौद्धिकता के सर्वसमावेशी आत्मप्रतिमा थे : प्रो. बद्रीनारायण
सागर. 06 दिसम्बर. डॉ.भीमराव अम्बेडकर का उदय भारतीय नवजागरण की अधुनातन परिघटना थी. अपने जीवन और संघर्षों के साथ उन्होंने समाजिक संरचना की परीधि पर अवाक खड़े बहुसंख्यक जनसंख्या को जोड़ा और उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक मुक्ति के महास्वप्न को वैधानिक तौर पर स्वीकार किये जाने का मार्ग प्रशस्त किया. यही कारण है कि आज पूरे भारत में डॉ. अम्बेडकर की विविध छवियाँ विद्यमान हैं. विभिन्न समाज वैज्ञानिक अनुसंधानों में यह लक्षित किया गया है कि बहिष्कृत जनता के बीच डॉ. अम्बेडकर की उन छवियों की भी एक यात्रा है. सामाजिक-राजनीतिक जरूरतों के चलते बार-बार डॉ. अम्बेडकर की छवियों को गढ़ा जाता रहा है. डॉ. अम्बेडकर की जो छवि सर्वाधिक लोकप्रिय है वह अपनी निर्मित में ज्यादा समावेशी है. उपर्युक्त विचार गोविंद बल्लभ पन्त समाज विज्ञान संस्थान, प्रयागराज के निदेशक एवं प्रख्यात कवि-लेखक प्रो. बद्रीनारायण ने समाजशास्त्र एवं समाजकार्य विभाग द्वारा डॉ.अम्बेडकर चेयर के तत्वावधान में बाबासाहब भीमराव अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किया.
सीटीईएफ नागपुर के अध्यक्ष, मुख्य अतिथि प्रो. के.एम. भंडारकर ने कहा कि बाबा साहेब ने जीवन भर संघर्ष किया किन्तु उन संघर्षों ने उनके व्यक्तित्व को खरा कुंदन बना दिया. संघर्षों से उन्होंने जीवन कौशल सीखा. सबको मुक्त रखने और सबको अपने श्रेष्ठतम विकास के लिए अवसर देने का भाव डॉ. अम्बेडकर के जीवन और चिंतन का केंद्रीय तत्त्व है.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि अस्पृश्यता एक अप्राकृतिक भाव है. जैविक रूप से प्रत्येक मनुष्य समान है. बावजूद इसके हमारे समाज में जाति और वर्ण की समानता को लेकर चेतना का अभाव था. बाबा साहब अम्बेडकर एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अत्यंत तार्किक ढंग से हमें इस बात को समझाया कि सबको समान अवसर एवं समान सम्मान मिलना चाहिए. इसके लिए उन्होंने ज्ञान को सबसे बड़े साधन के रूप में प्रस्तावित किया.
स्वागत भाषण डॉ. कालीनाथ झा ने दिया. कार्यक्रम का संचालन सुश्री ऊषा राणा ने किया और आभार डॉ. शिबशंकर जेना ने व्यक्त किया. इस अवसर पर प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा, प्रो. दिवाकर सिंह राजपूत, प्रो. जेके जैन, प्रो. अस्मिता गजभिये, डॉ. आशुतोष, डॉ. अरविन्द कुमार, डॉ नीलू रावत, सुश्री नंदी पटौदिया, डॉ. हिमांशु कुमार, डॉ. ज्ञानेश तिवारी सहित काफी संख्या में शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित थे.
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