गौर उत्सव : डॉ. गौर के अवदान पर हुए व्याख्यान, 'मूट कोर्ट' का हुआ लोकार्पण
सागर. 23 नवंबर. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के संस्थापक महान शिक्षाविद् एवं प्रख्यात विधिवेत्ता, संविधान सभा के सदस्य एवं दानवीर डॉ. सर हरीसिंह गौर के 152वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में दिनांक 21 नवंबर से 26 नवंबर तक आयोजित 'गौर उत्सव' के तीसरे दिन 'डॉ. गौर का अवदान- एक विश्लेषण' कार्यक्रम का आयोजन किया गया. डॉ. गौर और माल्यार्पण के दौरान डॉ. अवधेश तोमर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की.
डॉ. गौर के महान संकल्प की देन है डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय: कुलपति
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि डॉ. गौर का समग्र जीवन-दर्शन समझने के लिए उनके विराट व्यक्तित्व के हर पहलू को समझना होगा. हम सब सौभाग्यशाली हैं कि हम उनके परिवार के अंग हैं. यह विश्वविद्यालय उनके ही महान संकल्प की देन है. इस विश्वविद्यालय को गढ़ने-रचने की जिम्मेदारी हम सबके कन्धों पर है. डॉ. गौर के जीवन के विविध आयामों पर केंद्रित कार्यक्रमों की लंबी श्रृंखला के माध्यम से हम उनके सपनों को साकार करने के लिए कार्यरत हैं. डॉक्टर गौर हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। डॉ गौर का योगदान न केवल विश्वविद्यालय की स्थापना तक सीमित है बल्कि उनका योगदान एक विधिवेत्ता के रूप में, एक राजनीतिज्ञ, एक समाज सुधारक तथा महिला सशक्तिकरण के सशक्त प्रणेता के रूप में है। उन्होंने सभी वक्ताओं को शुभकामनाएं दीं.
विशिष्ट अतिथि प्रो. बीके श्रीवास्तव ने डॉ. गौर के महत्वपूर्ण योगदानों पर चर्चा करते हुए उनके जीवन से जुड़ी कई घटनाओं की चर्चा की. प्रोफेसर श्रीवास्तव ने बताया कि जहां सागर में कभी स्याही तक नहीं मिलती थी, उस सागर शहर में उन्होंने कैंब्रिज और ऑक्सफोर्ड जैसे विश्वविद्यालय की स्थापना करने की सोची। यह उनकी मातृभूमि एव शिक्षा के प्रति उनका समर्पण बताता है।
कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. पंकज सिंह ने महिला सशक्तीकरण में डॉ. गौर की महती भूमिका पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि स्त्री शिक्षा और उनके अधिकारों को लेकर डॉ. गौर ने लंबी लड़ाई लड़ी. आज हर क्षेत्र में स्त्रियों का आगे होना डॉ. गौर के अवदानों की फलश्रुति है. 1921 से लेकर 1935 तक सेंट्रल लेजिस्लेटिव एसेंबली के मेंबर रहने के दौरान उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए अभूतपूर्व प्रयास किए। डॉ मनोज श्रीवास्तव ने डॉक्टर गौर के विधि वक्ता के रूप में उनके योगदान पर बोलते हुए कहा कि ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट तथा हिंदू कोड नाम की दो किताबें विधि के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कार्य है।
डॉ. वंदना राजौरिया ने डॉ. गौर के साहित्यिक अभिरुचि और उनकी कृतियों पर प्रकाश डाला और कहा कि डॉक्टर गौर की कविताओं में हमें एक जीवन के प्रति सकारात्मकता दिखाई पड़ती है। उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैत के साथ भी डॉक्टर गौर की विचारों को साम्यता को बताया। प्रसिद्ध रंगकर्मी नाटककार शुभम उपाध्याय ने डॉक्टर गौर के धार्मिक चिंतन पर अपने विचार प्रस्तुत किए और कहा कि डॉ गौर का धर्म मानवतावादी धर्म था।
प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा ने कहा कि डॉ. गौर की जीवन से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए तथा उनके पद चिन्हों पर चलते हुए उनके सपनों को साकार करना चाहिए। इस प्रकार के व्याख्यानमाला आयोजित किए जाने से न केवल छात्रों को लाभ होगा बल्कि वह डॉक्टर गौर के विचार तथा चिंतन से अवगत हो पाएंगे. कार्यक्रम का संचालन डॉ. वंदना राजौरिया ने किया और आभार डॉ. संजय बरौलिया ने आभार ज्ञापित किया.
कार्यक्रम में प्रो.अशोक अहिरवार, प्रो. जी. एल पुणतांबेकर, प्रो.नवीन कांगो प्रो. वंदना सोनी प्रो. जेके जैन प्रो. ममता पटेल प्रो. आर टी बेदरे, डॉ शशि कुमार सिंह डॉ. आरपी सिंह डॉ किरण आर्य, डॉ.अरुण साव, डॉ. अरविंद गौतम, डॉ रेखा सोलंकी, डॉ. नीलम थापा, डॉ हिमांशु, डॉ प्रीति, डॉ. सुमन पटेल, केंद्रीय विद्यालय के डॉ. बृजेश कुमार पांडे उपस्थित थे।
ईएमआरसी द्वारा बनाई डोक्युमेंट्री का प्रदर्शन
कार्यक्रम में ईएमआरसी के निदेशक डॉ. पंकज तिवारी द्वारा निर्देशित डॉ. गौर के जीवन, विचार और दर्शन को समग्रता में प्रस्तुत करती हुई डोक्युमेंट्री ' सूर्य से प्रचंड गौर' का प्रदर्शन किया गया जिसे 2015 में निर्मित किया गया था.
कुलपति ने किया पेंटिंग का अनावरण
प्रो. पुणताम्बेकर ने कोरोना महामारी के दौरान समय का सदुपयोग करते हुए 'लॉकडाउन' में बनाई गई 21 पेंटिंग विश्वविद्यालय को भेंट की जिसका अनावरण कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने किया. कुलपति ने प्रो. पुणताम्बेकर को बधाई देते हुए कहा कि मुझे प्रसन्नता है कि मैं क्रियाशील और रचनात्मक शिक्षकों के बीच हूँ और ऐसे सृजनशील विश्वविद्यालय में मुझे कार्य करने का अवसर मिला है. इस अवसर पर सागर शहर निवासी सत्यम कला संस्कृति संग्रहालय के संचालक दामोदर अग्निहोत्री ने डॉ. गौर की लेखनी की कुछ प्रकाशित प्रतियां कुलपति को भेंट की.
आज के समय में निर्णय नहीं विवेकपूर्ण न्याय की जरूरत है- न्यायमूर्ति ए. पी. साही
गौर व्याख्यानमाला के अंतर्गत मुख्य अतिथि के रूप में पधारे राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी, भोपाल के निदेशक न्यायमूर्ति ए. पी. साही ने न्यायिक प्रशासन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता की प्रत्याशित भूमिका एवं प्रयोग विषय पर बोलते हुए कहा कि आज के समय में सबसे बड़ी जरूरत विवेकपूर्ण न्याय की है. बुद्धि और विवेक, निर्णय और न्याय में फर्क करना होगा. आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस कोई नया आविष्कार नहीं है लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में इसका उपयोग बहुत ही संवेदना और विवेक के साथ करना होगा. आज मोबाइल युग में डेटा का इधर से उधर होना आम बात हो गई है. इसकी गति बहुत ही तीव्र है. उन्होंने कहा कि मनुष्य आज प्रकृति को नियत्रित करने की कोशिश करने लगा है जबकि पहले प्रकृति के अनुसार मनुष्य स्वयं को ढालता था. हम अप्राकृतिक चीजों से प्रकृति को निर्णीत कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि साहित्य और क़ानून का बहुत प्रगाढ़ संबंध है. बिना साहित्य अध्ययन के कोई भी कानूनवेत्ता नहीं बन सकता. मनुष्य की क्षमता असीमित है. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस एक क्रियेटेड इन्वेंशन है. मनुष्य ही इसका सर्जक है. इसके इस्तेमाल के लिए कानून बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति की सामान्य दिनचर्या पर इसकी तीव्रता और गतिशीलता का प्रभाव न पड़े. डाटा एल्गोरिदम और पैटर्न रीडिंग के माध्यम से कुछ कामों के लिए न्यायिक व्यवस्था में इसका इस्तेमाल होना चाहिए जो सुविधा प्रदान करे. आज के समय में अलग से इस विषय की पढ़ाई भी होनी जरूरी है.
डॉ. गौर की धरती पर निर्मित 'मूट कोर्ट' न्यायपूर्ण समाज की आधारशिला साबित होगी- कुलपति
कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि 'मूट कोर्ट' की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जा रही थी. आज उद्घाटित यह स्थल न्यायपूर्ण समाज की स्थापना की आधारशिला साबित होगी. विद्यार्थी और शिक्षक अब इसका उपयोग कर पायेंगे और एक समतामूलक समाज की निर्मिति में सहयोग कर पायेंगे, जो गौर साहब की संकल्पना थी. उन्होंने न्यायमूर्ति साही के विश्वविद्यालय आगमन की सहमति के लिए उन्हें धन्यवाद दिया. विषय प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि आज रोबोट का युग आ गया है. हमें यह देखना होगा कि क्या सचमुच मनुष्य की संवेदनशीलता भी रोबोट जैसी अप्राकृतिक चीजें सृजित करने में सक्षम हो सकेगी. उन्होंने कहा कि न्यायालयों में लंबित प्रकरणों को हल करने में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के उपयोग की संभावनाओं को तलाशा जा सकता है. इस दिशा में अभी बहुत से प्रयोग किये जाने की आवश्यकता है ताकि मनुष्य की संवेदना बने रहने के साथ ही तकनीक आधारित न्याय व्यवस्था मददगार साबित हो.
मनुष्य की संवेदना की समझ न्याय प्रक्रिया का अहम हिस्सा- कुलाधिपति
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतिलाल जानी ने कहा कि मनुष्य की संवेदना को समझना बहुत ही आवश्यक है. इसको समझे बगैर न्याय प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती. इस मशीनी युग में भी हमें देशज ज्ञान परम्परा की अवहेलना नहीं करनी चाहिए. इसकी अपनी विशिष्ट महत्ता है. संवेदनापूर्ण न्याय मनुष्य के विकास को नया मुकाम देगा. हमें कोगनिटिव साइंस जैसे पाठ्यक्रम को शुरू किये जाने की भी बात कही.
कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य विधि अधययनशाला के अधिष्ठाता प्रो. पीपी सिंह ने दिया. मुख्य अतिथि का परिचय डॉ. अनुपमा सक्सेना ने और संचालन डॉ. विकास अग्रवाल ने किया. आभार कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने माना. कार्यक्रम में सागर शहर के अनेक अधिवक्तागण, जिला अधिवक्ता संघ के पधाधिकारी गण, नागरिक गण, विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थे.
'मूट कोर्ट' का हुआ लोकार्पण
मुख्य अतिथि के रूप में पधारे राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के निदेशक न्यायमूर्ति ए. पी. साही और कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की गरिमामयी उपस्थिति में विधि विभाग परिसर में निर्मित 'मूट कोर्ट'- विक्रमादित्य भवन का लोकार्पण हुआ. इस अवसर पर अधिष्ठाता प्रो. पीपी सिंह, प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा, कुलसचिव संतोष सोहगौरा, प्रो. आशीष वर्मा, प्रो. पुणताम्बेकर, प्रो. गिरीश मोहन दुबे सहित विधि विभाग के समस्त शिक्षक, विद्यार्थी और कर्मचारी उपस्थित थे.
24 नवंबर 2021 को आयोजित कार्यक्रम
24 नवंबर दोपहर 1.30 बजे 'आचार्य शंकर भवन' (मानविकी एवं समाज विज्ञान व्याख्यान कक्ष कॉम्प्लेक्स) का लोकार्पण माननीय श्री मुकुल मुकुंद कानिटकर, राष्ट्रीय संगठन मंत्री, भारतीय शिक्षण मंडल, नागपुर एवं कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न होगा. दोपहर 02.00 बजे स्वर्ण जयन्ती सभागार में डॉ. हरीसिंह गौर के जीवनवृत्त का प्रदर्शन होगा. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय और आर.एफ.आर.एफ के साथ शैक्षणिक एमओयू हस्ताक्षर कार्यक्रम के उपरान्त गौर व्याख्यानमाला के अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 : उच्च शिक्षा संस्थानों की नवाचारी भूमिका पर मान. श्री मुकुल मुकुंद कानिटकर, राष्ट्रीय संगठन मंत्री, भारतीय शिक्षण मंडल, नागपुर एवं मान. सुश्री अरुंधती कावडकर, अखिल भारतीय महिला प्रकल्प सहप्रमुख एवं पालक अधिकारी, महाकौशल प्रान्त एवं मध्यभारत, भारतीय शिक्षण मंडल का व्याख्यान होगा. इसी स्थल पर प्रात: 10 बजे से अपरान्ह 3.00 बजे तक विश्वविद्यालयीन विद्यार्थियो द्वारा फ़ाईन आर्ट, पेंटिंग क्राफ्ट की प्रदर्शनी भी आयोजित होगी.
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