गौर उत्सव : आचार्य शंकर भवन का लोकार्पण और राष्ट्रीय शिक्षा नीति:2020 पर हुआ व्याख्यान

गौर उत्सव : आचार्य शंकर भवन का लोकार्पण और राष्ट्रीय शिक्षा नीति:2020 पर हुआ व्याख्यान




सागर. 24 नवंबर. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर के संस्थापक महान शिक्षाविद् एवं प्रख्यात विधिवेत्ता, संविधान सभा के सदस्य एवं दानवीर डॉ. सर हरीसिंह गौर के 152वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में दिनांक 21 नवंबर से 26 नवंबर तक आयोजित 'गौर उत्सव' के चौथे दिन 'आचार्य शंकर भवन' (मानविकी एवं समाज विज्ञान व्याख्यान कक्ष कॉम्प्लेक्स) का लोकार्पण  श्री मुकुल मुकुंद कानिटकर, राष्ट्रीय संगठन मंत्री, भारतीय शिक्षण मंडल, नागपुर, कुलाधिपति प्रो. बलवंतराय शांतीलाल जानी एवं कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता की गरिमामयी उपस्थिति में संपन्न हुआ. बुन्देली परम्परा से अतिथियों का स्वागत हुआ. लोकार्पण के अवसर पर मान. कानिटकर जी ने बोलते हुए कहा कि यह भवन आचार्य शंकर के नाम पर रखा गया है. सभी को बराबर भाव से देखना ही अद्वैत है. उनकी अद्वैत परम्परा को पुनर्जीवित करने का काम यहाँ के विद्यार्थी और शिक्षक करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है. आचार्य शंकर मत वैभिन्नता का सम्मान करते थे. यह भवन उनके इस सिद्धांत का केंद्र बनेगा. स्वागत वक्तव्य अधिष्ठाता प्रो. अम्बिकादत्त शर्मा ने दिया और संचालन कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने किया. इस अवसर पर संयोजक डॉ. ललित मोहन, विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, शिक्षक, कर्मचारी और विद्यार्थी उपस्थित थे. 

अनुभवजनित शिक्षा से बनेगा आत्मनिर्भर भारत- कुलपति 




विश्वविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती सभागार में आयोजित गौर व्याख्यानमाला श्रृंखला के अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: उच्च शिक्षा की नवाचारी भूमिका विषय पर आयोजित कार्यक्रम में स्वागत उद्बोधन में कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने कहा कि आज के समय में विद्यार्थियों को केवल कक्षाओं तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि उन्हें अनुभव आधारित शिक्षा की तरफ प्रेरित करना चाहिए ताकि वे स्वयं के अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकें. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में हमें नवाचारी तरीके से बहुआयामी कार्य करने होंगे. इस शिक्षा नीति के माध्यम से देश को बदलने का संकल्प लिया गया है. देश तभी बदलेगा जब शिक्षा बदलेगी. हम भाग्यशाली हैं कि डॉ. गौर के जन्मोत्सव पर हम उनके ही शिक्षा के केंद्र में शिक्षा में नवाचार पर चर्चा कर रहे हैं. इंडस्ट्री कोलैबोरेशन, एमओयू के माध्यम से शिक्षा एवं शोध को नई दिशा मिलेगी. भारत एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए हम रूरल डेवलेपमेंट के लिए नए प्रोग्राम बना रहे हैं. इससे गाँवों की आर्थिकी के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा. 

विश्वविद्यालय बनें ज्ञान-गुरुत्व के केंद्र- अरुंधति कावड़कर 

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए सुश्री अरुंधती कावडकर, अखिल भारतीय महिला प्रकल्प सहप्रमुख एवं पालक अधिकारी, महाकौशल प्रान्त एवं मध्यभारत, भारतीय शिक्षण मंडल ने कहा कि विश्वविद्यालय ज्ञान और  गुरुत्व के केंद्र के रूप में होने चाहिए. विद्यार्थी गुरुत्व के स्पर्श से ही आगे बढ़ता है. उसके जीवन में गुरु का बहुत महत्त्व होता है. गुरु को भी अपने विद्यार्थियों को समझने की योग्यता होनी चाहिए. शिक्षक अपने विद्यार्थियों के कारण ही शिक्षक कहलाता है. बिना विद्यार्थी के शिक्षक अस्तित्वहीन है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति मातृभाव से प्रेरित है. एर्ली चाइल्डहुड एजुकेशन की संकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अहम हिस्सा है. यहीं से एक विद्यार्थी की नींव पड़ती है. उन्होंने कहा कि नए भारत को गढ़ने के लिए भारतमाता को जानना बहुत ही आवश्यक है. नदियों, पर्वतों और प्रकृति के सभी घटकों को जानना-पहचानना एक विद्यार्थी के लिए बहुत ही जरूरी है. 

गुरु ही बनाएंगे भारत को विश्वगुरु- मुकुल कानिटकर 




मुख्य अतिथि मान. मुकुल कानिटकर ने कहा कि गुरु के बिना भारत का विश्वगुरु बनाना असंभव है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में ऐसे कई बिंदु हैं जो शिक्षक को नवाचार की पूरी स्वायत्तता देते हैं. एक शिक्षक को नवाचार करने के लिए संस्था और सरकारों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. शासन केंद्रित व्यवस्था से समाज के अंतिम व्यक्ति का हित नहीं संभव है. समाज केंद्रित व्यवस्था से ही अंतिम व्यक्ति का कल्याण संभव है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति पढ़ते समय उसमें हमें स्व मन का भाव मिलता है. उसमें बहुत सी जीवनोपयोगी और तार्किक बातें हैं जिनके माध्यम से भारतीयता का बोध पैदा होता है. शिक्षक और संस्था दोनों का कार्य नवोन्मेष करना है. आज के शिक्षक और विद्यार्थी को लीक से हटकर सोचना चाहिए. यही समय की मांग है. पहले हम आयातित ज्ञान पर निर्भर थे लेकिन आज इस शिक्षा नीति के माध्यम से हम भारतीय शिक्षा पद्धति की बात कर पा रहे हैं. यही इसका सुफल है. मातृभाषा में पठन-पाठन के लिए हमें अनुवाद पर निर्भरता ख़त्म करते हुए मातृभाषा में पाठ्य सामग्री तैयार करना चाहिए. यह काम शिक्षकों का है. यह चुनौती भी है. हमें इसी को अवसर में बदलना है और यही नवाचार है. यह सृजनशीलता का अवसर भी है. 

गौर उत्सव चरित्र निर्माण का उत्सव है- कुलाधिपति

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. बलवंत राय शांतिलाल जानी ने कहा कि डॉ. हरीसिंह गौर की दैवीय विलक्षणता ही है कि हम प्रतिवर्ष उनके जन्मदिन को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं. वह एक विश्वविद्यालय स्थापित करने और सब कुछ दान कर देने वाले एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक स्वप्नद्रष्टा थे जो उन्होंने भावी भारतीय युवा पीढ़ी के लिए देखा था. आज बहुत सी विदेश की संस्थायें भारतीय युवा मेधा को अपने यहाँ शिक्षा और रोजगार के लिए आकर्षित कर रही हैं. डॉ गौर ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कैम्ब्रिज में पढ़ाई तो की लेकिन वे भारतीय युवा पीढी के लिए भारत में कैम्ब्रिज जैसी संस्था शुरू करने का संकल्प लेकर भारत वापस आ गये. यह विश्वविद्यालय उसी सपने की देन है. भारतीय युवाशक्ति प्रचंड मेधा संपन्न है, इसका पलायन नहीं होना चाहिए. राष्ट्रीय शिक्षा नीति इसके लिए संकल्पित है कि भारतीय मेधा का सदुपयोग राष्ट्र निर्माण के लिए हो, ताकि हम परमवैभवशाली राष्ट्र निर्माण में गति ला सकें. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहुआयामी क्रियान्वयन के माध्यम से  डॉ. गौर द्वारा स्थापित यह विश्वविद्यालय केवल सागर और मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए अनुकरणीय बनेगा. 

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. हरीसिंह गौर और देवी सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण से हुई जिसमें संगीत विभाग की छात्राओं ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. संचालन डॉ. शशि कुमार सिंह ने किया. प्रो. अर्चना पाण्डेय ने अतिथियों का परिचय वाचन किया. कार्यक्रम के मध्य में संगीत विभाग की शिक्षका डॉ. स्मृति त्रिपाठी ने गीत प्रस्तुत किया. कुलसचिव संतोष सोहगौरा ने आभार ज्ञापन किया. राष्ट्रगीत वन्देमातरम के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ. इस अवसर पर प्रो.अशोक अहिरवार, प्रो. जी. एल पुणतांबेकर, प्रो.नवीन कांगो, प्रो. वंदना सोनी, प्रो. जेके जैन, प्रो. ममता पटेल, प्रो. आर टी बेदरे, डॉ. आरपी सिंह, डॉ किरण आर्य, डॉ.अरुण साव, डॉ. अरविंद गौतम, डॉ रेखा सोलंकी, डॉ. नीलम थापा, डॉ हिमांशु, डॉ प्रीति सहित कई शिक्षक, विद्यार्थी, कर्मचारी, सागर शहर एवं मध्य प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पधारे गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। 
विश्वविद्यालय और रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन के बीच हुआ अकादमिक अनुबंध  

कार्यक्रम के दौरान डॉक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय और  रिसर्च फॉर रिसर्जेन्स फाउंडेशन, नागपुर के बीच अकादमिक समझौता पत्रक पर हस्ताक्षर हुए. विश्वविद्यालय की ओर से कुलपति प्रो. नीलिमा गुप्ता ने और फाउंडेशन की ओर से मान. मुकुल कानिटकर ने समझौता-पत्रक पर हस्ताक्षर किये. इस अकादमिक समझौते के तहत सेंटर फॉर रिसर्च एंड रिसर्जेंस स्थापित किया जाएगा. इससे अकादमिक शोध और नवाचारी गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा.




फ़ाईन आर्ट, पेंटिंग क्राफ्ट की प्रदर्शनी आयोजित

विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा बनाई गई फ़ाईन आर्ट, पेंटिंग क्राफ्ट की प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. इसमें प्रो. पुणताम्बेकर द्वारा बनाई गई पेंटिंग भी प्रदर्शनी के लिए रखी गई थी. सभी अतिथियों ने प्रदर्शनी का अवलोकन कर कलाकारों को शुभकामनाएं दीं. यह प्रदर्शनी डॉ. ललित मोहन और डॉ. सुप्रभा दास के संयोजन में आयोजित की गई थी. डॉ सुप्रभा दास ने डॉ. गौर की स्वनिर्मित मूर्ति कुलपति को भेंट की. 

'आज़ादी की आग- बुंदेलखंड की वीरांगनाओं की शौर्य गाथा' पुस्तक का विमोचन 
कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा डॉ सरोज गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक 'आज़ादी की आग- बुंदेलखंड की वीरांगनाओं की शौर्य गाथा' का विमोचन भी किया गया.    

 25 नवम्बर के कार्यक्रम

25 नवंबर प्रात: 11.00 बजे 'डॉ. गौर के सपनों का सागर और उनका विश्वविद्यालय' पर आधारित परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन होगा. इस कार्यक्रम में विशेषज्ञ के रूप में विश्वविद्यालय की कुलपति माननीया प्रो. नीलिमा गुप्ता, श्री रघु ठाकुर वरिष्ठ समाजवादी चिन्तक, डॉ. जी.एस. चौवे वरिष्ठ चिकित्सक, प्रो.एस.पी. व्यास शिक्षाशास्त्री एवं पूर्व कुलपति डॉ.हरीसिंह गौर वि.वि सागर एवं प्रो सुरेश आचार्य , वरिष्ठ साहित्कार विशेष रूप से उपस्थित रहेंगे. सायं 07.00 बजे अखिल भारतीय कवि सम्मलेन का आयोजन होगा जिसमें शायर अशोक मिज़ाज बद्र, सागर, श्री अशोक सुन्दरानी,सतना, सुश्री विभा सिंह, बनारस, श्री संतोष शर्मा सागर, विदिशा, श्री राम भदावर, इटावा द्वारा काव्य पाठ की प्रस्तुति होगी. दोनों कार्यक्रम स्वर्ण जयन्ती सभागार में आयोजित होंगे.
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