मानवतावादी पत्रकारिता आज की आवश्यकता - प्रो. आशा शुक्ला
पत्रकारिता में चरित्र और आचरण पर ध्यान देना होगा – डॉ. राजेंद्र खिमाणी
राष्ट्रीय वेबिनर में विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक प्रोफेसर संजीव भानावत गांधी की पत्रकारिता और उनके पत्रों की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए ने गांधी के समय की पत्रकारिता के मिशन और मूल्यों को रेखांकित किया। वरिष्ठ पत्रकार मीडिया फॉर सिटीजन हिंदी न्यूज़ पोर्टल के संस्थापक रजनीकांत वशिष्ठ ने आज की पत्रकारिता की प्रवृत्तियों का उल्लेख करते हुए सकारात्मक रचनात्मक प्रव्रत्तियों की अवश्क्ता पर प्रकाश डाला। मीडिया से समरसता शोध पीठ के मानस आचार्य प्रोफेसर संतोष तिवारी ने पत्रकारिता की घटती विश्वसनीयता पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह वैश्विक संकट है और जिसका कारण विज्ञापनों का दबाव है। उन्होंने कहा कि आज विश्वभर में मीडिया भी विज्ञापनों के दबाव हें, जबकि गांधी के किसी भी समाचार पत्रों में कोई भी विज्ञापन प्रकाशित नहीं होता था। इस कारण उस काल की पत्रकारिता दबाव में नहीं रही है। गुजरात राज्य संवाददाता डेकन हेराल्ड सतीश झा ने गांधी के समय की पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता की तुलना करते हुए कहा कि ऐसा नहीं देखना चाहिए कि आज की पत्रकारिता केवल दोष ग्रस्त हैं आज भी पत्रकारिता में श्रेष्ठ प्रवृत्तियां है और वह समाज के लिए जूझती है। बीवीसी लंदन के रेडियो-1 की पूर्व संपादक अनुभा जॉर्ज ने संक्षिप्त में गांधी के काल की विशेषताओं का उल्लेख किया गुजरात विद्यापीठ के पत्रकारिता और जनसंचार विभागाध्यक्ष प्रोफेसर पुनीता हर्णे ने अनेक उदाहरण देते हुए बताया कि उनका विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों में गांधी संस्कार देने के लिए सतत प्रयास कर रहा है और एक सीमा में इसमें सफलता मिली है।
वेबीनार की शुरुआत प्रो. प्रेम आनंद मिश्रा के प्रस्तावना वक्तव्य से हुआ और उन्होंने कहा कि आज मीडिया सत्य और तथ्य से दूर होकर छदम मिथक और भ्रम पैदा करने का कार्य कर रहा है। गांधी ने प्रामाणिक पत्रकारिता को प्रस्तुत कर एक विश्वसनीय जनसंचार पैदा किया और उनकी पत्रकारिता के मुद्दे लोकविमर्श बन जाते थे। आज की पत्रकारिता को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए। वेबिनार का संचालन ब्राउस के परामर्शी प्रो. सुरेंद्र पाठक ने किया। वेबिनार में अनेक वरिष्ठ पत्रकार, पत्रकारिता के शिक्षक और विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में शिक्षक शामिल थे।
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