सामंजस्य पूर्ण समाज के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था पर ब्राउस में राष्ट्रीय सेमिनार
न्यायालयों में जीतने वाली भी जिंदगी में हार रहे हैं - बलराज मलिक
महू। भारत में न्याय की समृद्ध परंपरा रही है परिवार, कुटुंब, समाज, ग्राम पंचायत और धार्मिक संस्थाओं में भी विवादों का निपटारा होता रहा है वैकल्पिक विवाद समाधान न्याय व्यवस्था के लिए इनको खुद तैयार करना चाहिए और यहां से न्याय के सिद्धांतों को पहचाना जा सकता है, उक्त विचार वेबीनार के प्रमुख अतिथि श्री सत्यपाल जैन, एडीशनल सॉलीसीटर जनरल आफ इंडिया ने व्यक्त किए उन्होंने कहा कि लोगों के मानसिकता पर काम करने काम करने की जरूरत है और लोगों को संवैधानिक अधिकारों की बजाए संवैधानिक कर्तव्यों पर भी ज्यादा ध्यान देना होगा। वे सामंजस्य पूर्ण समाज के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान व्यवस्था राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे जिसका आयोजन डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू ने किया था। एडीआर विषेषज्ञ नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली प्रो. रूही पाल ने विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि वर्तमान न्याय व्यवस्था यानी एडवर्सरियल सिस्टम ऑफ जस्टिस बना रहे इसके लिए अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेजोल्यूशन सिस्टम की भूमिका है। स्थापित न्याय व्यवस्था को मजबूत करने एडीआर में सभी को सहयोग देना चाहिए और भागीदारी करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के सीनियर एडवोकेट श्री जी वी राव ने एडीआर के लिए एक नोडल एजेंसी बनाने की वकालत की ताकि एडीआर को व्यवस्थित तरीके से पूरे देश में न्याय के लिए लागू किया जा सके, यह न्यायालयों की बैक लॉक को पूरा करने में सहयोग करेगा। जीजीएस इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय नई दिल्ली के डीन प्रो. अफजल वानी ने मानवीय मूल्यों पर आधारित न्यायिक व्यवस्था तथा वर्तमान न्यायिक व्यवस्था की जगह एडीआर को विकल्प तथा प्राथमिकता के आधार पर रखने पर जोर दिया। उन्होंने कहा एडीआर न्याय का मुख्य आधार हो तथा अदालतों को लोग अल्टरनेटिव के तौर पर उपयोग करें उन्होंने कहा की भारतीय न्याय की ट्रेडिशनल विधि को मानवीय मूल्यों के आधार पर आगे बढ़ाया जाए ताकि सबको न्याय सुलभ उपाय मिल सकें।
डॉ बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू की साम्यरस समाज के लिए कानून और न्याय शोधपीठ के मानद प्रोफेसर बलराज सिंह मलिक ने अपने प्रस्तवना वक्तव्य में कहा कि हमारी न्यायिक व्यवस्था की चाहना सर्व शुभ और सबके लिए न्याय की कामना है इस कामना को जमीन पर उतरने में अभी काफी सफर तय करना है आज के न्यायिक व्यवस्था में काम करने वाले सभी संबंधितों में थकान आ रही है, अदालतों में करोड़ों प्रकरण पेंडिंग हैं। उन्होंने कहा यह शोध पीठ भारत सहित विश्व में मानवीय परिवार के लिए एक वरदान साबित होगी। इससे व्यवस्था में लगे हुए सभी लोगों तक पहुंचने का प्रयास करेंगे तथा यूनिवर्सल ह्यूमन वैल्यूज पर ट्रेनिंग प्रोग्राम हर कानून के विद्यार्थी न्यायाधीशों तथा वकीलों तक लेकर जाएंगे ताकि सहअस्तित्व सहज न्याय के स्वरूप को पूरी मानव जाति के सामने रखा जा सके। अस्तित्व सहज न्याय की समझ न्यायिक व्यवस्था में लगे हुए हर भागीदार को हो जाए। शोध को डॉक्युमेंटेड करके उसको पूरी मानव जाति के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने कहा मुझे लगता है इस शोध पीठ की चर्चा भविष्य में पूरे विश्व स्तर पर होगी है तथा ब्राउस की पहचान एवं भागीदारी पूरी न्यायिक व्यवस्था के लिए जानी जाएगी। उन्होंने कहा की न्याय की परिणीति भाईचारा बरकरार रखने और बढ़ाने के रूप में होना ही न्याय है। आज की न्यायिक व्यवस्था में कोर्ट में केस जीतने वाला भी आखिरकार मानसिक तौर से जीवन में हार जाता है।
ब्राउस के डीन डा. डी के वर्मा जी ने कहा स्वागत और निष्कर्ष रूप में कहा कि मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद से एक न्यायिक व्यवस्था को दुरुस्त करने में एक बहुत अच्छी उम्मीद की किरण मिली है। प्रो. सुरेन्द्र पाठक जी ने वेबीनार का संचालन किया और मानद प्रोफेसर बलराज सिंह मलिक ने अंत में धन्यवाद प्रस्ताव रखा।
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