सत्य की स्वीकारिता से विजय संभव : आचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज
★महात्मा रामचंद्र वीर जी की 112वीं जयंती के पर स्मारिका का विमोचन
★नौ दिवसीय श्री राम कथामृत का आयोजन
सागर। सत्य मेव जयते अर्थात सत्य की ही हमेषा विजय होती है। राम सत्य के प्रतीक थे और रावण असत्य दुराचार का प्रतीक था। राम को भले ही कष्ट सहने पडे़ लेकिन अंत में विजय उन्हीं की हुई और असत्य रूपी रावण को पराजित होनापड़ा। उक्त उदगार आचार्य श्री धर्मेन्द्र जी महाराज ने श्रद्धालुओं को श्री रामकथा का रसास्वादन कराते हुए व्यक्त किए। आचार्य श्री धर्मेन्द्र जी महाराज ने राम कथा मृत महोत्सव के अंतिम श्रद्धालुओं के समक्ष कहा कि कभी कभी असत्य भी बोलना चाहिए लेकिन वह तब जब उससे किसी निरीह निष्कपटी का भला हो। उन्होनें कहा कि जो भगवान की भक्ति में रहता है उसका कल्याण होता है। आचार्य श्री ने कहा कि भगवान राम में वह शक्ति है जिनका नाम लेने से शरीर में उर्जा का संचार होता है मन हल्का हो जाता है। कभी नकारात्मक विचार नहीं आते। मन और तन की पीड़ा शांत हो जाती है। अंतरमन में खुषी मिलती है और सारे दुख दूर हो जाते है। माता सीता का हरण करने के बाद भी रावण उनका कुछ नहीं विगाड़ सका क्योंकि उनके मन में सदा राम बसते थे। धर्मेन्द्र जी महाराज ने कहा कि भगवान का व्यवहार हमेषा शील शालीन मर्यादित होता है। वह पतित पावन है और पापों का नाष करने वाले है। ऐक बार प्रसन्न भाव से श्री राम की शरण में चले जाओ तो मोक्ष अवष्य ही संभव है। सच्चे भक्त को भगवान अवष्य ही आश्रय प्रदान करते है। आचार्य श्री ने रामकथा के दौरान अषोक वाटिका में हनुमान जी का माता सीता से हुए संवाद का व्याख्यान करते हुए कहा कि हनुमान जी चाहते तो सीता जी को स्वयं रावण से छुड़ा लाते लेकिन उन्हें पता था अहंकारी पापी अर्धमी रावण का वध प्रभु राम के ही हाथों होगा जिससे उनका गौरव बढ़ेगा। आचार्य श्री ने कहा कि विभीषण सत्य के मार्ग पर चलने वाला था इसीलिए उसे प्रभु की शरण मिली और रावण अहंकार मद असत्य के मार्ग पर था इसलिए उसे मरण मिला। श्री राम कथा में आचार्य श्री ने लंका दहन हनुमान विभीषण संवाद विभीषण का राम से मिलन। रामेष्वरम में भगवान श्री राम द्वारा भगवान शंकर की स्तुति सेतु बंध के बाद कंुभकरण मेघानाथ एवं रावण के वध की कथा पर विस्तार से प्रकाष डाला इसके बाद भगवान राम के अयोघ्या लौटने एवं भगवान राम के राज्याभिषेक की कथा का वर्णन किया।
कथा समापन के अवसर पर आचार्य श्री ने आव्हान किया कि शराब छोड़े क्योकि मानव इससे दुर्गति का षिकार होता है। शराब पीनस नीचमा की निषानी है। उन्होनें कहा कि जैन धर्म का पर्व है क्षमावाणी इसमें भिक्षामी दुक्कणमं है। जिसका अर्थ है। कि में भिक्षा करता हुं कि मुझे क्षमा करना। जो क्षमा करने योग्य हो उसे क्षमा करना चाहिए जो क्षमा योग्य नहीं है जो उदंड अहंकारी अपराधी है। उन्होनें कहा कि विष रूपी वृक्ष को जड़ से उखाड़ना ही नहीं बल्कि जला देना चाहिए। जिससे वह फिर से पैदा न हो सके इसलिए अपने शरीर में विष का नहीं अमृत का रसा स्वादन करो
। कार्यक्रम के अंत में आचार्य श्री ने महात्मा रामचंद्र वीर जी की 112वीं जयंती के उपलक्ष्य में स्मारिका का विमोचन किया। गौभक्त उपाधि से सम्मानित आचार्य श्री धर्मेन्द्र जी महाराज ने पूर्व महापौर अभय दरे, गौ सेवा संघ पूर्व अध्यक्ष संतोष सोनी मारूति, घोषी समाज जिलाध्यक्ष राजा को गौ भक्त उपाधि से सम्मानित किया। रामकथा में मुख्य यजमान प्रेमनारायण घोषी, यजमान अमन अग्रवाल, अरविंद घोषी, लालचंद घोषी, नरयावली विधायक प्रदीप लारिया, पं. विपिन बिहारी, वसंत श्रीवास्तव, अजय साहु, प्रदीप गुप्ता, हरीनारायण नेमा, षिव नारायण सोनी रहली, बद्री विषाल रावत, महेन्द्र गुप्ता, राम चरण सेन, राघवेन्द्र सिंह, शरद तिवारी, श्रीमति रंजना खटीक, अनुमा गर्ग, समीक्षा अग्रवाल, मानसी यादव, रामप्रकाष यादव आदि उपस्थित थे।
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