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अलौकिक शास्त्र भारत की अद्वितीय विशेषता : श्रीश देवपुजारी


अलौकिक शास्त्र भारत की अद्वितीय विशेषता : श्रीश देवपुजारी 

सागर. डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में आयोजित विशिष्ट व्याख्यान में मुख्य वक्ता श्री श्रीश देवपुजारी, अखिल भारत महामंत्री, संस्कृत भारती ने कहा कि अंग्रेजों के पूर्व तक सारी पढ़ाई संस्कृत में थी। भोजराज ने द्वाररक्षक के लिए यऩ्त्र मानव अर्थात् रोबोट का उल्लेख किया है। भारत में विभिन्न शास्त्रों की 45 लाख महत्त्वपूर्ण पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। विज्ञान संबंधी ज्ञान को प्रकाश में लाने के लिए रसायनशास्त्र आदि के ज्ञाताओं को संस्कृत सीखनी चाहिए, यही रीति उत्तम होगी। विदेश में केवल नश्वर जगत् अर्थात् लौकिक विद्याओंके शास्त्र हैं, जबकि भारत में लौकिक व आलौकिक दोनों विद्याओं के शास्त्र विद्यमान हैं। भारत में केवल कृषिशास्त्र के ही 70 से अधिक प्रामाणिक ग्रंथ उपलब्ध हैं। छात्र भारतीय ज्ञान से वंचित न रहें, इसलिए आवश्यक है कि संस्कृत पढ़ें। पूर्वजों के ज्ञान को सहेजना, उसका उपयोग करना हमारा दायित्त्व है। हमारे पूर्वजों ने ज्ञान का अपार भंडार संचित किया है, हम उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। विकास की दौड़ में वही अग्रसर रहेगा जो ज्ञान में अग्रणी होगा। शास्त्रों में निहित ज्ञान को हम पढ़ जान सकें इसके लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य है। भारतीय ज्ञान परंपरा (इण्डियन नॉलेज सिस्टम) में अपार संभावनाएं हैं। संगणकीय संस्कृत (कम्प्यूटेशनल संस्कृत) नया विषय है। हाल ही में संस्कृत ज्ञान पर दस पेटेण्ट मिल चुके हैं। विमान शास्त्र में वर्णित ज्ञान के आधार पर निर्मित गुप्त विमान राडार की पकड़ में नहीं आते हैं। पुराने ज्ञान को वर्तमान स्वरूप में प्रस्तुत करने पर उसकी सर्वजन स्वीकार्यता होगी। अलौकिक शास्त्र भारत की अद्वितीय विशेषता है और इसे पाने के लिए विश्व के देश भारत की ओर देख रहे हैं। संस्कृत शास्त्रों में पारिभाषिक शब्दों की एक विशिष्ट शैली है, जैसे- पंच महाभूतों को जो लोकोपयोगी रूप में ला देता है, वह यन्त्र है। 
कार्यक्रम में श्री भरत वैरागी, मध्यक्षेत्र संयोजक, संस्कृत भारती तथा श्री जागेश्वर पटले, प्रांत संगठन मंत्री, संस्कृत भारती ने भी अपने विचार रखे। 
इस अवसर पर डॉ. किरण आर्या, डॉ. सरोज गुप्ता, डॉ. सुकदेव वाजपेयी, डॉ. ममता सिंह, डॉ. पुष्पल घोष, डॉ. नीरज उपाध्याय, डॉ. प्रदीप गुप्ता, श्री पंकज मिश्र, डॉ. रणवीर सिंह, डॉ. बबलू राय, डॉ. रामरतन पाण्डेय,  पं श्रीराम शुक्ल,डॉ. प्रदीप दुबे, डॉ. सुजाता मिश्रा, डॉ. अवधेश यादव, श्री प्रदीप सौर, शिवम् बिल्थरे, विजेन्द्र सिंह, काजुल, शैलजा दुबे आदि उपस्थित थे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो. आनन्द प्रकाश त्रिपाठी ने की। कार्यक्रम का संचालन डॉ. नौनिहाल गौतम, स्वागत भाषण डॉ. शशिकुमार सिंह, धन्यवाद ज्ञापन डॉ. संजय कुमार ने किया।
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