सरस्वती शिशु मंदिर सदर में सेवा निवृत्त प्राचार्य नवल किशोर यादव का हुआ सम्मान

 

सरस्वती शिशु मंदिर सदर में सेवा निवृत्त प्राचार्य नवल किशोर यादव का हुआ सम्मान
       
सागर। शिष्य के मन में सीखने की इच्छा को जो जागृत कर पाते हैं वे ही शिक्षक कहलाते हैं। शिक्षक का तात्पर्य शि - शिखर तक पहुॅचानें वाला क्ष - क्षमा करने की शक्ति रखने वाला क - कमजोरियों को दूर करने वाला। एक छात्र के जीवन में शिक्षक दिवस या टीचर्स का महत्व बहुत महत्वपूर्ण है. क्योंकि शिक्षक छात्र को सही भविष्य और सही रास्ते पर चलना सिखाता है. वह छात्र को अच्छे गलत की समझ सिखाते हैं. ऐसे में छात्र के पास इस दिन शिक्षक के इन परिश्रमों का धन्यवाद करने का मौका होता है. इसलिए यह दिन सभी छात्रों के लिए बेहद खास माना जाता है.यह वक्तव्य कार्यक्रम आयोजक विक्रम मौर्य ने कहें ।


सरस्वती शिशु मंदिर सदर विद्यालय सागर में नवल किशोर यादव व गनपत जाट भृत्य का सेवानिवृत्त सम्मान समारोह आयोजित किया गया । जिसमें मुख्य अतिथि प्रदीप लारिया विधायक नरयावली विधानसभा, कार्यक्रम अध्यक्ष पंडित राधिका प्रसाद गौतम ,पूर्व प्रांत प्रमुख केशव शिक्षा समिति महाकौशल प्रांत विशिष्ट अतिथि महेंद्र जैन भूसा, पूर्व प्रांत उपाध्यक्ष सरस्वती शिक्षा परिषद एवं राजकुमार ठाकुर विभाग समन्वयक सरस्वती शिक्षा परिषद सागर विभाग व कार्यक्रम आयोजक विक्रम मौर्य थे। अतिथियों द्वारा सर्वप्रथम मां सरस्वती, ओम्, भारत माता के छायाचित्र पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलित किया। बहिन मोना दुबे, जागृति मौर्य द्वारा वंदना प्रस्तुत की गई । अतिथियों का परिचय एवं मंच संचालन सविता सिंह रघुवंशी व स्वागत कपिल सिंह कुशवाहा पूर्व छात्र एवं व्यवस्थापक ने किया। 
सविता सिंह रघुवंशी ने अपने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि जिन आचार्य के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है वह शासकीय सेवाओं को छोड़कर संस्कारित शिक्षा में अपना कदम रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रसार करने समन्वयक का दायित्व निभाते हुए 184 विद्यालय ग्रामों में प्रारंभ किए इसके उपरांत प्राचार्य के पद पर रहकर शिक्षा के नये आयाम स्थापित किए।
नवल किशोर यादव ने अपनी सेवा निवृत्ति पर कहा कि हम शासकीय नियमों के अंतर्गत अपने पद से निवृत्त हुआ हूं पर संस्कारों के माध्यम से हम शिक्षा से हमेशा आपके साथ रहूंगा । उन्होंने गीत के माध्यम से बताया कि कोई चलता है सीखकर पर हम अपना पदचिन्ह बनाते हैं ।सीख और सिखाने में अंतर है, माता हमें अपने संस्कारों से परिचित कराती है अतः मां प्रथम शिक्षिका होती है पर जीवन कैसा जीना है यह शिक्षक ही ज्ञान प्रदान करने में सहयोगी बनता है ।
    भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। एक छात्र के जीवन में उसके शिक्षक की भूमिका बहुत अहम रहती है. भारत में शिक्षक को माता-पिता के बराबर का स्थान भी दिया जाता है. जिस तरह से कुम्हार मिट्टी को बरतन में ढालता है, लोहार लोहे तपा कर कुछ उपयोगी चीज बनाता है ठीक उसी तरह शिक्षक अपने छात्रों के भविष्य का निर्माण करते हैं. छात्र के जीवन में शिक्षक के योगदान का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि बिना शिक्षक के छात्र का जीवन पूरा अधूरा रहता है और ऐसे जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. आज हम आपको शिक्षक दिवस के मौके पर इसका इतिहास और महत्व के बारें में बताएंगे।यह विचार प्रदीप लारिया ने अपने मुख्य आतिथ्य में कहा।
कार्यक्रम अध्यक्ष पंडित राधिका प्रसाद गौतम ने अपने वक्तव्य में कहा कि शिक्षक के द्वारा व्यक्ति के भविष्य को बनाया जाता है एवं शिक्षक ही वह सुधार लाने वाला व्यक्ति होता है। प्राचीन भारतीय मान्यताओं के अनुसार शिक्षक का स्थान भगवान से भी ऊँचा माना जाता है क्योंकि शिक्षक ही हमें सही या गलत के मार्ग का चयन करना सिखाता है।इस बात को कुछ ऐसे प्रदर्शित किया गया है-गुरु:ब्रह्मा गुरुर् विष्णु: गुरु: देवो महेश्वर: गुरु:साक्षात् परम् ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।




विशिष्ट अतिथि राजकुमार ठाकुर विभाग समन्वयक ने अपने विचारों में कहा कि सेवा निवृत्त संस्था से होती है कार्य एवं मन से नहीं शिक्षक वह पूंजी है जो अपने देश व शिष्य के बीच हमेशा जाग्रत रहती है इसलिए कबीर कहते हैं गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पांय बलिहारि गुरु आपनो गोविंद दियो बताय।शिक्षक आम तौर से समाज को बुराई से बचाता है और लोगों को एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति बनाने का प्रयास करता है। इसलिए हम यह कह सकते है कि शिक्षक अपने शिष्य का सच्चा पथ प्रदर्शक है।
विशिष्ट अतिथि महेंद्र जैन भूसा ने अपने विचारों में कहा कि सरस्वती शिशु मंदिर में आचार्य संस्कारों की सीख प्रदाय करते हैं आचार्य शब्द ही अपने आचरण से शिक्षा को प्रदान करने वाला है मनुष्य के शरीर में दो प्रकार के मन होते हैं एक मन में गुण व दूसरे में दुर्गुणों का समावेश होता है पर शिक्षा में शिक्षक का महत्व तभी है जब वह शिष्य में गुणों का समावेश कर सकें । अंत में आभार प्रदर्शन कार्यक्रम की संयोजिका सविता सिंह रघुवंशी ने किया ।
कार्यक्रम में मनोज नेमा मीडिया प्रभारी, विनोद दुबे मोतीनगर, पन्नालाल पटेल, राकेश गौतम सदर,रुपनारायण खरे पगारा, नरेंद्र कुमार पटकुई, नरेंद्र चौकसे, शिवचरण रजक राहतगढ़, श्रीमती गायत्री तिवारी राहतगढ़, श्रीमती विन्देश्वरी तिवारी, मीना पटेल सेमरा बाग व सरस्वती शिशु मंदिर के समस्त आचार्य बंधु/भगिनी उपस्थित थे ।

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