माँ यशोदा ने कान्हा को जिस पवित्र "वटवृक्ष" के "कटोरी-चम्मच" नुमा पत्तों में माखन खिलाया था, सागर में वह दुर्लभ "कृष्नाई वटवृक्ष" है संरक्षित

 


माँ यशोदा ने कान्हा को जिस पवित्र "वटवृक्ष" के "कटोरी-चम्मच" नुमा पत्तों में माखन खिलाया था, सागर में वह दुर्लभ "कृष्नाई वटवृक्ष" है संरक्षित 

★डॉ. हरिसिंह गौर केंद्रीय विवि के वानस्पतिक गार्डन में 58 सालों से संरक्षित है, कृष्नाई फाइकस (कृष्णवट)।  

★ धार्मिक मान्यताओं व भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से जुड़ा यह पौराणिक महत्त्व का कृष्णबट सागर के अलावा नंदगांव वृन्दावन, वॉटनिकल गार्डन कोलकाता व झारखण्ड में भी मौजूद। 

 ● चेंतन्य सोनी

सागर । द्वापर युग में भगवान की बाल्य लीलाओं के प्रत्यक्ष सबूत आज भी जगह-जगह मौजूद हैं। सागर विवि के वानस्पतिक गार्डन में ऐसा ही *कृष्नाई वट (फाइकस कृष्नाई )* वृक्ष बीते 58 सालों से मौजूद है। इसके पत्ते कटोरीनुमा व पीछे की तरफ चम्मचनुमा होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माता यशोदा कान्हा को इसी कटोरी-चम्मच नुमा पत्ते में दधी-मक्खन खिलाती थीं। 




मप्र के सागर में स्थित डॉ. हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यायल के बॉटनीकल गार्डन में बाईं ओर कृष्णबट लगा है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार करीब 5 दशक से अधिक समय से यह मौजूद है। इसे किसने कब कहां से लाकर लगाया गया था, इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है। यह वृक्ष करीब 15 साल से जरा सा बढ़ पाया है। काफी धीमीगति से यह बढ़ रहा है। विभाग ने इसको संरक्षित करने व मानवीय हस्तक्षेप से बचाने तार की फेंसिंग कराई है।  

 ऑक्सीजन का भरपूर स्रोत,  हमेशा हरा-भरा रहता है

सागर के बॉटनिकल गार्डन में मौजूद इस कृष्ण वट का  वैज्ञानिक महत्व का भी है। दरअसल फाइकस बेंगालेंसिस नाम के सोलानासि परिवार का यह पेड़ ऑक्सीजन का बढ़ा स्रोत है। ऑक्सीजन देने वाले तमाम वृक्षों में यह वृक्ष सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है।





बॉटनीकल गार्डन में तीन तरह के बरगद मौजूद

विवि के बॉटनीकल गार्डन में हजारों प्रजाति के पेड़-पौधे संरक्षित हैं। सबसे खास बात यह कृष्नाई फाइकस (कृष्णवट) के साथ-साथ दो अन्य प्रजाति के बरगद भी मौजूद हैं। इनमें एक सामान्यतः पाया जाने वाला बरगद तो दूसरा बरगद ऐसा है जिसकी जड़े ऊपर के तनों से नीचे की तरफ बढ़ती हैं। एक ही स्थान पर बरगद की तीनों प्रजातियां मौजूदगी का यह इकलौता स्थान है।


यह दुर्लभ प्रजाति का है, वानस्पतिक नाम "फाइकस कृष्नाई" है

दुर्लभ प्रजाति का "कृष्ण वट" हमारे विभाग के  बॉटनीकल गार्डन में करीब 50 साल से अधिक समय से मौजूद है। इसका हिंदी नाम 'माखन-दोना' या 'माखन कटोरी' भी प्रचलित है। वानस्पतिक नाम फाइकस कृष्नाई है । इसे कृष्ण वट नाम इसलिए दिया गया क्योंकि मान्यता है कि बचपन में कृष्ण ने मक्खन खाने में इस वृक्ष के पत्तों का उपयोग किया था । पौराणिक कथाओं में उल्लेख है कि कृष्णजी इस वृक्ष पर बैठकर माखन खाया करते थे। यह वृक्ष 12 महीने हरा भरा रहता है। जिससे आसपास भूजल स्तर की विपुलता के संकेत मिलते हैं,  मध्यप्रदेश में सागर विश्वविद्यालय में ही यह इकलौता वृक्ष है । इस वृक्ष से नए पौधे तैयार करना काफी जटिल प्रक्रिया होती है। काफी प्रयास के बावजूद दूसरा पेड़ नहीं बन पाया। 

- शरद कांत सोनी, वरिष्ठ तकनीकी सहायक, वनस्पति विभाग केंद्रीय विश्वविद्यालय सागर


कृष्णवट के कटोरी-चम्मच जैसे पत्तों में भगवान ने माखन खाया था, प्रमाण आज भी मौजूद

कृष्णवट काफी पवित्र वृक्ष है। नंदगाव व बृज में भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं से सीधा संबंध है। माता यशोदा ने कान्हा को मक्खन-दही, मिश्री इन्हीं में खिलाई थीं। यह दुर्लभ व पवित्र वृक्ष है। सागर सहित, वृन्दावन में आज भी मौजूद है। 
- पं. देवशरण शास्त्री,  भागवत आचार्य, श्रीधाम वृन्दावन।
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