पत्रकारिता शिक्षा में रिचर्स के लिए मोटीवेट करने की जरूरत-प्रो. जयंत सोनवलकर
महू (इंदौर) न. 'पत्रकारिता शिक्षा में रिसर्च के लिए मोटीवेट करने की जरूरत है. पत्रकारिता समाज की समस्याओं को उठाने वाला सशक्त माध्यम है. पत्रकारिता की शुरूआत पाठ्यक्रम में भले ही 3-4सौ साल पुरानी लिखा गया है लेकिन अनादिकाल से पत्रकारिता का अस्तित्व है. अशोककालीन के पहले रामायण, महाभारत और मनुस्मृति भी पत्रकारिता का एक स्वरूप है. यह बात मध्यप्रदेश भोज ओपन यूर्निवसिटी के कुलपति प्रो. जयंत सोनवलकर ने कही. प्रो. सोनवलकर आज डॉ. बीआर अम्बेडकर सामजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के संयुक्त तत्वावधान में 'मीडिया शिक्षा और पत्रकारिता में नई संभावनाएं और उभरते अवसर' विषय पर आयोजित वेबीनार को संबोधित कर रहे थे। प्रो. सोनवलकर ने कहा कि हमें चिंता आज की नहीं बल्कि 2040 और 50 की करनी है जिसमें जर्नलिस्ट कैसे तैयार हों. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद की पत्रकारिता पर किताबें नहीं है और हैं तो उसकी संख्या नगण्य है. उन्होंने रिसर्च पर जोर देते हुए कहा कि मीडिया शिक्षकों को रिचर्स की तरफ ध्यान देना होगा.
बीज वक्तव्य देते हुए ब्राउस में स्थापित 'मीडिया शोध से समरसता पीठ' के मानद आचार्य प्रो. संतोष तिवारी ने कहा कि पत्रकारिता शिक्षा आरंभ से चैलेंजेस फेस करती रही है. हर बार मेनस्ट्रीम की मीडिया आगे हो जाती है और मीडिया शिक्षा पीछे रह जाती है. अपने निजी अनुभव शेयर करते हुए प्रो. तिवारी ने कहा कि शिक्षकों को अपडेट होना पड़ेगा. प्रो. तिवारी ने पाठ्यक्रमों का समय-समय पर अपडेट नहीं होने की चिंता जाहिर की. इसके पूर्व कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अतिथि वक्ताओं ा स्वागत करते हुए कहा कि किसी भी क्षेत्र में इंसानियत पहली शर्त होती है. उन्होंने उम्मीद व्यक्त की कि इस वेबीनार से बहुत सारी सारगर्भित बातें सामने आएंगी जो मीडिया शिक्षा को और भी उन्नत करेंगी.
वेबीनार में सह-अध्यक्ष के रूप में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने एनईपी में भाषा को महत्व दिया गया है. उनका कहना था कि अंग्रेजी भाषा नहीं स्किल है जिसका उपयोग हम नौकरी पाने के लिए करते हैं लेकिन भाषा में हम जीते हैं. उन्होंने कहा कि अंग्रेजी में शिक्षा हासिल करने वाले पत्रकारिता के विद्यार्थियों को हिन्दी का एक समाचार पत्र जरूर पढऩा चाहिए क्योंकि हिन्दी से ही आप भारत को समझ सकते हैं. उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का कोर्स किसी एक संस्थान या विश्वविद्यालय पर छोडऩे के बजाय सब मिलकर डिजाइन करें. उन्होंने कहा कि पिछला अनुभव कहता है कि पश्चिम में अखबार बंद हुए हैं लेकिन भारत में अखबार बंद नहीं हुए. उन्होंने टेक्रॉलाजी की जगह कटेंट क्रिएटर्स तैयार करने की बात कही.
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जागरण लेकसिटी यूर्निवसिटी के मीडिया विभाग के अध्यक्ष प्रो. दिवाकर शुक्ल ने कहा कि कम्युनिकेशन और मीडिया पूरी दुनिया में परिवर्तन ला सकता है. उनका कहना था हमने अपने विश्वविद्यालय में पायलट प्रोजेक्ट के तहत विद्यार्थियों को कुछ साहित्यिक कृतियां दी और कहा कि इसे आप पढ़ें और इसके बाद हम विषय पर चर्चा करेंगे. जब नियत अवधि के बाद विद्यार्थियों से चर्चा की तो हम हैरान रह गए कि जिन विद्यार्थियों ने उन साहित्यिक कृतियों का पढ़ा था, उनका परफारमेंस और जिन लोगों ने नहीं पढ़ा था, उनके परफारमेंस में हमने बहुत फर्क देखा. उन्होंने कहा कि रियल वल्र्ड से मीडिया शिक्षकों का वास्ता नहीं है. पीएचडी करने के बाद सहायक प्राध्यापक की नौकरी मिल गई लेकिन रियल वल्र्ड का अनुभव नहीं होने के कारण वे इम्पेक्टफुली पढ़ा नहीं पाते हैं. उनका मानना था कि टेक्नालॉजी का दो जगहों पर बहुत ज्यादा उपयोग हो रहा है जिसमें मीडिया में सबसे ज्यादा प्रयोग हो रहा है. कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया विभाग के हेड डॉ. नरेन्द्र त्रिपाठी ने पाट्यक्रमों की एकरूपता की बात की. उन्होंने बताया कि यूजीसी ने सभी पाठ्यक्रमों का नाम एक जैसा कर दिया गया है, यह अच्छी पहल है. उन्होंने कहा कि मीडिया में जितनी संभावनाएं हैं, उतना मेनस्ट्रीम के किसी अन्य कोर्स में नहीं है. उन्होंने इस बात पर संतोष जाहिर किया कि ब्राउस द्वारा मीडिया के ज्वलंत और आज की जरूरत के विषय पर वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है.
वेबीनार के अंत में कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने कहा कि मीडिया शिक्षा और संभावना को लेकर जो सारगर्भित चर्चा हुई है, वह एक निष्कर्ष की ओर पहुंचाती है. कार्यक्रम का संचालन ब्राउस में मीडिया एवं नेक के सलाहकार डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने एवं आभार प्रदर्शन ब्राउस में मीडिया प्रभारी मनोज कुमार ने किया.
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