सदन से भागती है शिवराज सिंह चौहान सरकार : हर्ष यादव पूर्व मंत्री ★ पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण पर उदासीनता की चोट

सदन से भागती है शिवराज सिंह चौहान सरकार : हर्ष यादव पूर्व मंत्री 

★ पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आरक्षण पर उदासीनता की चोट

सागर। प्रदेश में भाजपा की शिवराज सिंह सरकार द्वारा सदन से पलायन करोना काल में बेतहाशा मौतों हर दिन बढ़ती महंगाई पिछडा वर्ग के आरक्षण तथा आदिवासी दिवस की भावना पर पर चोट बलात्कार और अपराधों में प्रदेश के फिर पहले पायदान पर पहुंचने के खिलाफ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से संभागीय मुख्यालय सागर में पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से पत्रकार वार्ता के लिए अधिकृत पूर्व मंत्री व देवरी विधायक हर्ष यादव विधायक तरवर सिंह लोधी तथा प्रवक्ता डॉ संदीप सबलोक ने कई सवाल उठाते हुए सरकार पर जमकर हमले किए। पूर्व विधायक व प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष अरुणोदय चौबे ने भी खुरई क्षेत्र की अपराधिक घटनाओं पर चर्चा की। पत्रकार वार्ता में जिला कांग्रेस अध्यक्ष रेखा चौधरी तथा स्वदेश जैन गुड्डू भैया प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष त्रिलोकीनाथ कटारे पूर्व मंत्री प्रभुसिंह ठाकुर पूर्व सांसद आनंद अहिरवार   तथा श्याम सराफ समेत कई पदाधिकारी भी मौजूद रहे। पत्रकार वार्ता के प्रारंभ में प्रदेश प्रवक्ता डॉ संदीप सबलोक ने वार्ता का संचालन करते हुए चर्चा पर संक्षिप्त प्रकाश डाला।पूर्व मंत्री तथा देवरी विधायक हर्ष यादव ने शिवराज सिंह और भाजपा सरकार को घेरते हुए कहा कि -

1. शिवराज सरकार ने अगस्त 2021 में मानसून सत्र सिर्फ चार दिन के लिए बुलाया। और उसके बाद सिर्फ 3 घंटे कार्यवाही चलने के बाद सत्र स्थगित कर दिया। अगर सरकार की मंशा सदन चलाने की होती तो कुछ देर के लिए कार्यवाही स्थगित करके दुबारा बुलाई जा सकती थी।
2. सरकार की मंशा सदन चलाने की नहीं थी, इसीलिए सारे महत्वपूर्ण विधायी कार्य पहले दूसरे दिन के लिए सुरक्षित रखे गए। शोरशराबे के बीच विधेयक पास करा लिये गए। और जान बूझकर समय से पहले विधानसभा स्थगित कर दी।
3. विपक्ष के पास अपनी बात कहने के केवल चार हथियार हैं-स्थगन, ध्यान आकर्षण, 139 पर चर्चा और अशासकीय संकल्प। कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में कांगे्रस ने इन मुद्दों की लिखित सूचना दी और चाहा कि:-

- डीजल, पेट्रोल, रसोई गैस और महंगाई पर चर्चा।
- बाढ़ से हुई तबाही, प्रशासनिक लापरवाही और पुर्न व्यवस्थापन और राहत।
- 27 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण। 
- 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस।
- कोरोना से हुई मौतंे।
- जहरीली शराब से हुई मांैते। 
- पेगासिस जासूसी।
- भ्रष्टाचार।
- बलात्कार में मप्र फिर से अव्वल नं. पर। 

चूंकि सरकार के पास इनके उत्तर नहीं हैं इसलिए उन्होंने इन विषयों को कार्यसूची में शामिल ही नहीं किया और एक ही दिन में सारे कार्य कार्य सूची में लिखकर विधानसभा समाप्त करने की अपनी मंशा जाहिर कर दी। 

4. सदन से भागना बीजेपी की आदत है। शिवराज सरकर ने पहला सत्र 24 से 27 मार्च 2020 को बुलाया। सत्र 3 दिन चलना था, लेकिन 1 ही दिन चला। इनके कार्यकाल में दूसरा सत्र 17 दिसंबर 2020 से 17 जनवरी 2021 के बीच होना था। सदन को नियम के मुताबिक 32 दिन चलना था, लेकिन सदन सिर्फ 6 दिन चला। तीसरा सत्र मानसून सत्र सितंबर 2020 में हुआ। सिर्फ  3 दिन का सत्र बुलाया और वह भी एक दिन चला। बजट सत्र 33 दिन का होना था, 22 फरवरी से 26 मार्च 2021 के बीच, लेकिन सत्र सिर्फ 13 दिन चला। मानसून सत्र 9 से 12 अगस्त 2021 में होना था, लेकिन चार दिन के बजाय सत्र सिर्फ 3 घंटे चला।

जबकि कमलनाथ सरकार में जितने दिन का सत्र बुलाया गया तकरीबन उतने दिन ही सत्र चला। इससे पूर्व 1993 से 2003 तक चली कांग्रेस सरकार में भी लंबी अवधि के सत्र चले।

सदन से क्यों भागी सरकार:-

शिवराज सरकार को पता था कि श्री कमलनाथ जी के नेृतृत्व में कांग्रेस पार्टी जनता के मुद्दों को पूरी ताकत से उठाएगी और सरकार को निरुत्तर कर देगी। श्री कमलनाथ जी के सामने सरकार टिक नहीं सकती थी, इसलिए जानबूझकर सिर्फ    4 दिन का सत्र बुलाया और उसे भी 3 घंटे में खत्म कर दिया।

आदिवासी समाज का मुद्दा:-

कांग्रेस पार्टी प्रदेश में आदिवासी समाज पर बढ़ रहे अत्याचार और अत्याचारियों को मिल रहे राजनैतिक संरक्षण का मुद्दा उठाना चाहती थी। लेकिन यह मुद्दे न उठ सकें इसलिए सरकार ने आदिवासी समाज का अपमान किया। 9 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर कमलनाथ सरकार द्वारा घोषित अवकाश को रद्द कर आदिवासी समाज का अपमान किया। साथ ही कमलनाथ सरकार ने सभी आदिवासी विकासखंड़ों को भव्य तरीके से आदिवासी उत्सव मनाने के लिए अलग से धनराशि उपलब्ध करायी थी, भाजपा सरकार ने उस धन राशि पर भी रोक लगा दी, ताकि आदिवासी वर्ग उत्सव न मना सकें। यही नहीं इसी दिन विधानसभा का सत्र भी रखा ताकि आदिवासी विधायक अपने इलाकों में आदिवासी दिवस न मना सकें।

कांग्रेस पार्टी ने सड़क से लेकर विधानसभा तक आदिवासी समाज के साथ हुए अन्याय का विरोध किया। सरकार को अच्छी तरह पता था कि नेमावर आदिवासी सामूहिक हत्याकांड में कांग्रेस पार्टी ने न सिर्फ आदिवासी समाज की लड़ाई लड़ी, बल्कि 25 लाख रुपये की सांत्वना राशि भी पीडित परिवार को दी। राज्य सरकार ने उन आदिवासी कर्मचारियों पर मुकदमे डाले जिन्होंने आदिवासी हत्याकांड का विरोध किया। पीड़ित परिवार द्वारा न्याय हेतु सीबीआई जांच की मांग की गई थी, जिसे भाजपा सरकार ने सिरे से नकार दिया।

ओबीसी आरक्षण 27 फीसदी करने का मुद्दा:-

कमलनाथ जी ने सरकार बनते ही सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह किया कि प्रदेश के अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया।
ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण 2003 में दिग्विजय सिंह जी की सरकार ने भी दिया था। लेकिन बीजेपी सरकार बनते ही, मामले की इतनी कमजोर पैरवी की गई कि यह आरक्षण खत्म हो गया। उसके बाद 15 साल तक बीजेपी ने ओबीसी आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
जब कमलनाथ जी ने दुबारा 27 फीसदी आरक्षण दिया तो भाजपा ने षड़यंत्र कर कमलनाथ सरकार गिरा दी ताकि ओबीसी के साथ न्याय न हो सके।
शिवराज सरकार ने एक बार फिर कमजोर पैरवी करके अदालत में ओबीसी आरक्षण के मुद्दे को कमजोर किया। 
शिवराज सरकार के अतिरिक्ति महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में हलफनामा दिया उसी के आधार पर सरकारी नियुक्तियों एवं प्रवेश परीक्षाओं में फिलहाल 14 फीसदी ओबीसी आरक्षण के साथ भर्तियां हो रही हैं।
भाजपा के प्रवक्ता जान-बूझकर यह भ्रम फैला रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक आरक्षण की कुल सीमा 50 फीसदी से अधिक नहीं हो सकती, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि यह सीमा पहले ही टूट चुकी है। सामान्य वर्ग के कमजोर आर्थिक वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण होने के बाद आरक्षण पहले ही 60 फीसदी हो चुका है। इसका मतलब अगर नीयत सही हो तो 50 फीसदी की सीमा कोई मायने नहीं रखती।
जब केंद्र सरकार ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देती है और कई राज्य 27 फीसदी से अधिक आरक्षण देते हैं, तो मध्य प्रदेश क्यों नहीं दे सकता। केरल में ओबीसी को 40 फीसदी आरक्षण है। (27 फीसदी या उससे अधिक ओबीसी आरक्षण देने वाले राज्यों की सूची सलंग्न)

ओबीसी आरक्षण लागू कराने के लिए कांग्रेस सड़क से लेकर विधानसभा तक संघर्ष करने को तैयार है। 11 अगस्त को विधानसभा घेराव के दौरान युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने वाटर कैनन और लाठियों से हमला किया। कई कार्यकर्ता लहुलुहान हो गए। उनकी कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी।
महंगाई

पेट्रोल डीजल:-

मध्य प्रदेश में महंगाई कभी इतनी ज्यादा नहीं रही, जितनी इस समय है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर सबसे ज्यादा वैट मध्य प्रदेश की सरकार लगा रही है। प्रदेश में डीजल 100 रुपये के पार और पेट्रोल 112 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुका है।
 
जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 132 डाॅलर प्रति बैरल के पार थी तब भी कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार ने तेल की कीमत 68 रुपये के करीब ही रखी। अब जब पिछले साल अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल जीरो, शून्य डाॅलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुंच गया था, तब भी मोदी सरकार ने जनता से लूट जारी रखी। 
तेल खाते में सरकार में पिछले वर्षों मंे लगभग 34 लाख करोड़ रूपये का राजस्व वसूल चुकी है। जबकि तेल कंपनियों ने जो पैसा बाजार से आॅयल बाॅंड के नाम पर उठाया था वह लगभग 1 लाख 25 हजार करोड़ रू. ही है। जिसके नाम पर केंद्र सरकार इस मुनाफाखोरी को जारी रखे हुए हैं। 
आज आप डीजल पर जो 100 रुपये चुकाते हैं, उनमें से 60 रुपये से ज्यादा तो सरकारी टैक्स है। इस टैक्स का इस्तेमाल जनता की भलाई के लिए नहीं हो रहा। सरकारी तेल कंपनियों से कमाए पैसे का इस्तेमाल बीजेपी नेताओं के कार्यक्रमों की स्पांसरशिप में हो रहा है। आपकी जेब से डीजल पेट्रोल का जो पैसा लिया जा रहा है, उसका इस्तेमाल विधायकों को खरीदने, सरकार को गिराने और लोकतंत्र की हत्या में किया जा रहा है।

गैस सिलेंडर:-
नरेंद्र मोदी ने शौचालय से लेकर सचिवालय तक उज्ज्वला योजना में गरीबों को सिलेंडर देने का विज्ञापन तो किया जा रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने जनता को बिना बताए गैस सिलेंडर पर सब्सिडी खत्म कर सिलेंडर की कीमत ढ़ाई गुना अधिक बढ़ा दी। 
जो सिलेंडर मनमोहन सिंह की सरकार में 400 रुपये का आता था, वही सिलेंडर मोदी सरकार में 850 रुपये का आ रहा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान ने अपने घोषणापत्र में कहा था कि गैस सिलेंडर पर केंद्र सरकार की सब्सिडी के अलावा राज्य सरकार भी 100 रुपये की सब्सिडी देगी। अब भाजपा की धनादेश की सरकार बन गई तो कहां है वह 100 रुपये की सब्सिडी और कहां है केंद्र सरकार की ओर से पहले से जारी सब्सिडी।

खाने का तेल और दालें:-

प्रदेश के इतिहास में लोगों ने पहली बार सरसों और रिफाइंड तेल 200 रुपये प्रति लीटर खरीदा। दालों की कीमत 100 रुपये किलो के ऊपर चली गई। यह सरकार लोगों को भूखों मारने पर उतारू है।
बेरोजगारी:-

केंद्र में मोदी और राज्य में शिवराज सरकारों ने नौजवानों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। विधानसभा चुनाव के घोषणापत्र में भाजपा ने हर साल 10 लाख रोजगार देने का वादा किया था। लेकिन सरकार बनने के बाद से शिवराज सरकार नौकरी देना तो दूर पहले से चयनित अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति नहीं दे रही है। जब ये चयनित लोग अपनी नौकरी मांगते हैं तो उन्हें पुलिस की लाठियां मिलती हैं।
मध्य प्रदेश सरकार के रोजगार पोर्टल पर 33 लाख से ज्यादा पंजीकृत बेरोजगार हैं। सरकार न तो इन्हें सरकारी नौकरी दे रही है और न ही निजी क्षेत्र में नौकरी का प्रबंधन कर रही है।

हड़तालें:-

शिवराज सिंह सरकार की जनविरोधी नीतियों से आम आदमी और सरकारी कर्मचारी सभी परेशान हैं। न वेतन बढ़ रहा है और न भत्ते मिल रहे हैं। सरकार आजकल काल्पनिक वेतन वृद्धि की शब्दावली इस्तेमाल कर रही है। सरकार कर्मचारियों से कह रही है कि हम तुम्हें रोटी नहीं देंगे, तुम तो रोटी की कल्पना करके ही अपना पेट भर लो।
प्रदेश में जूनियर डाॅक्टर, नर्स, आशा कार्यकर्ता, पटवारी, संयुक्त रूप से सभी विभागों के कर्मचारी या तो सामूहिक अवकाश पर जा चुके हैं या हड़ताल कर चुके हैं।
सरकार इन कर्मचारियों की मांगें नहीं मान रही, उन्हें सस्पेंड, बर्खास्त कर रही है और लाठियां चला रही है। प्रदेश की लगभग 1.5 लाख आशा ऊषा कार्यकर्ताओं का मानदेय कमलनाथ सरकार ने बढ़ाया था। सरकारी कर्मचारियों और पंेशनर्स का महंगाई भत्ता कमलनाथ सरकार ने बढ़ाया, शिवराज सरकार ने इसे हटाया।    

बाढ़:-  

मध्य प्रदेश का ग्वालियर चंबल संभाग और बुंदेलखंड का कुछ इलाका बाढ़ में डूब गया। फौरी अनुमान के मुताबिक 10000 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है। कई लोगों की जान चली गई, हजारों मवेशी मर गए, हजारों घर और दुकानें तबाह हो गईं, लेकिन मध्य प्रदेश सरकर को इससे कोई मतलब नहीं है।
जनता बाढ़ में डूबी थी और शिवराज सरकार जश्न मनाने में लगी थी। अन्न उत्सव मन रहा था। शिवराज सिंह ने पहले आपदा को अवसर में बदला और खूब भ्रष्टाचार कराया, अब सरकार एक कदम आगे बढ़कर आपदा में उत्सव मना रही है।
आपदा में लोगों की मदद करने की जगह उत्सव करना, जश्न मनाना, पाप है। यह लोगों की परेशानी का मजाक उड़ाना है।
बाढ़ में जितने पुल, बांध और सड़कें बही हैं, वे सब शिवराज सिंह चैहान की सरकार में बने थे। आठ-दस साल में बने पुल कागज की डिबिया की तरह बह गए, बांध फूट गए, सड़कें उखड़ गईं।

जब मौसम विभाग बाढ़ की चेतावनी दे रहा था, तब शिवराज सिंह सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में जंगल में मंगल कर रहे थे। जब लोग बाढ़ में डूब रहे थे तो शिवराज दिल्ली में मंत्रियों के साथ कुर्सी बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे। जब लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे तो शिवराज और सिंधिया यह दावा करने में लगे थे कि मदद किसने भेजी। सेना और एनडीआरएफ के जवान लोगों की जान बंचा रहे थे और शिवराज और सिंधिया में श्रेय लेने की होड़ मची थी। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा दो-दो कैमरे लगाकर बाढ़ राहत की नौटंकी कर रहे थे।
बाढ़ के समय कमलनाथ जी जनता की मदद के लिए आगे आए। उनके निर्देश पर कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ताओं ने लोगों सहायता और भोजन वितरित किया।
कांग्रेस पार्टी ने मांग की कि बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए, लेकिन मुख्यमंत्री को आपदा नहीं दिखी, उन्हें तो उत्सव दिखा।
कोरोना से हुई मौतें:-
मप्र सरकार ने कोरोना से हुई भयावह मौतों के आंकड़ांे को छिपाने के लिए तरह-तरह के आदेश निकाले। मृत्यु प्रमाण पत्रों में मृत्य के कारण की जानकारी न देने हेतु निर्देश दिये गये। आंकड़ों में हेरफेर स्वयं सरकार ने स्वीकार की। मप्र में 12 महीनों में सामान्यतः 2017 से 3 लाख 50 हजार औसत मौतें एक वर्ष में होती हैं, किंतु वर्ष 2020 में 5 लाख 18 हजार और वर्ष 2021 के (जनवरी-मई) पांच महीनांे में 3 लाख 28 हजार 963 मौतें पंजीकृत हुई हैं। यह सामान्य मौंतों से 54 प्रतिशत अधिक मौतें हैं। इसे यदि साख्यिकी के प्रावेविलिटी के सिद्धांत से गणना की जाये तो लगभग 1 लाख 13 हजार मौतें कोरोना से हुई प्रतीत होती हैं। जबकि मौतों की संख्या में सुधार करने के बाद भी सरकार लगभग 10 हजार मौतें ही बता रही है। यह कोरोना से मृत निर्दोष लोगों के प्रति अन्याय हैं। वे चिकित्सा, दवा, आक्सीजन, बिस्तरों की कमी के शिकार हुये हैं। जो उत्तरदायित्व सरकार की जिम्मेदारी होती है। सरकार योजनाआंे का लाभ देने से बचना चाहती है। इसलिए मौतों को स्वीकार करने से भाग रहे है।  

महिला उत्पीड़न:-

ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन मध्य प्रदेश में हमारी बहन-बेटियों पर जुल्म नहीं होता हो। शिवराज सरकार में मध्य प्रदेश में महिला उत्पीड़न के मामले चरम पर हैं। कहीं किसी लड़की का शोषण करने के बाद उसका शव जमीन में 10 फुट नीचे गाड़ दिया जाता है। बलात्कार के ऐसे जघन्य मामले सामने आ रहे हैं, जिनके बारे में सुनकर ही शर्म से माथा झुक जाता है।
मप्र में वर्ष 2021 में केवल तीन माह में 2600 से अधिक बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुई हैं और मप्र बलात्कार के मामलों में फिर देश में नं. वन हो गया है। मप्र में फांसी का कानून बनाने वाली सरकार बताये कि इस कानून के बाद भी सरकार बलात्कार क्यों नहीं रोक पा रही है।    

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