राष्ट्रीय शिक्षा नीति में महिला अध्ययन शिक्षकों की भूमिका पर संगोष्ठी
महू (इंदौर)। 'वीमेंस स्टडी शब्द एक्सलूजिव लगता है लेकिन इसे इनक्लीजिव बनाया जाना चाहिए क्योंकि समाज का निर्माण सबके साथ मिलकर होता है. वर्तमान समय में फॉर वीमन, बाय वीमन, फ्राम वीमन के कांसेप्ट से महिलाओं के सामने चुनौती बढ़ जाती है. यह बात भारतीय स्त्री शक्ति की वाइस प्रेसीडेंट नयना सहस्त्रबुद्धे ने 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में महिला अध्ययन शिक्षकों की भूमिका' के बारे में कहा. उन्होंने कहा कि लिबरल और वेस्टर्न फेमिनिज्म के साथ अन्य तरह के फेमिनिज्म के कांसपेप्ट को पढ़ाया जाना चाहिए. भारतीय संस्कृति और परम्परा से के संदर्भ में शिक्षा की आवश्यकता है. उन्होंने परिवार के पुर्नगठन की बात पर जोर देते हुए कहा कि परिवार टूट रहे हैं जिसे जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय समाज पुरुष प्रधान समाज है अत: बच्चों को सिखाया जाए कि माता-पिता दोनों बराबर हैं. डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित साप्ताहिक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए नयना सहस्त्रबुद्धे ने कहा कि तीन तत्व जीवन व्यवहार, जीवन दृष्टि एवं जीवन मूल्य पढ़ाया जाना चाहिए. उन्होंने लैंगिग समानता एवं स्त्री सम्मान की भी बात कही. राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में उल्लेखित बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि रोजगारपरक शिक्षा का विकल्प रखा गया है जो आज के समय की जरूरत है.
टाटा इंस्ट्यूट ऑफ सोशल साइंस की पूर्व प्रोफेसर विभूति पटेल ने अपने बीज वक्तव्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शिक्षकों की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि जनजागृति को शिक्षा में शामिल किया जाना अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि समाज के निर्णयों में बहनों की भूमिका होना चाहिए. लैंगिक समानता और संवेदनशीलता जरूरी है. उन्होंने कहा कि महिला शिक्षकों की कमी है जिसे पूरा किया जाना चाहिए. उन्होंने थर्ड जेंडर शिक्षक की कमी का उल्लेख करते हुए कहा कि शहर और गांव के बीच की दूरी को कम किया जाना जरूरी है. उन्होंने विचारों को बदलने की बात करते हुए कहा कि महिलाओं की शिक्षा की सबसे ज्यादा जरूरत है. उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि महिला अध्ययन के बाद अनेक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़े हैं. उन्होंने हालिया आयी फिल्म 'टाइगर' की स्क्रिप्ट एक महिला ने लिखा है. उन्होंने कहा वीमेंस स्टडी को पीएससी और यूपीएससी की परीक्षा में शामिल किया जाना चाहिए.
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बीएचयू में वूमन स्टडी की पूर्व डायरेक्टर प्रोफेसर रीता सिंह ने कहा कि इतिहास गवाह है कि महिलाओंं को चतुराई के साथ मुख्य धारा से अलग कर दिया गया. महिलाओं को सशक्त बनना है और हर क्षेत्र में उनकी भागीदारी हो. उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में इस बात का प्रावधान किया गया है. आज जरूरत है कि महिलाओं को रचनात्मकता के साथ तार्किकता, नैतिक मूल्य और देश के संविधान के बारे में जानकारी और समझ हो. उन्होंने कहा कि जन्म के साथ ही लिंग के आधार पर तय कर लिया जाता है कि कौन क्या करेगा. इस मानसिकता को बदलना है. शिक्षा नीति में लचीलापन से छात्राओं को अधिक अवसर मिलेगा. उन्होंने छात्राओं के ड्रापआउट की समस्या को रेखांकित करते हुए कहा कि इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. लैंगिक समावेशन फंड से छात्राओं को अधिक अवसर मिलेगा. उन्होंने शिक्षकों के सम्मान और स्वायत्ता की बात भी कही.
इसके पूर्व बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल की वूमन स्टडी की डॉ. जया फूकन ने हिन्दी में पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि ई कंटेंट से स्टूडेंट को पढऩे में मदद मिल सकती है जो कि अभी पूरी तरह उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि प्राथमिक स्तर से ही जेंडर एजुकेशन को शामिल कर लिया जाना चाहिए. ह्यूमन राईट एवं जेंडर स्टडीज को साथ साथ पढ़ाया जाना चाहिए. कोयम्बटूर में वूमन स्टडी की डॉ. कमला वाणी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की तारीफ करते हुए कहा कि यह नीति आज की जरूरत के अनुरूप है. उन्होंने मल्टीडिसप्लनरी पाठ्यक्रम को बेहतर बताया. उन्होंने वोकेशनल एजुकेशन पर अपनी बात रखी. जामिया मिलिया इस्लामिया में वूमन्स स्टडी डिर्पाटमेंट की डायरेक्टर साबिया हुसैन ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में बड़े स्तर पर जेंडर इशु को समझा गया है और ड्रापआउट की समस्या को सुलझाने की दिशा में कोशिश दिखती है. हम शिक्षक मेंटर हैं, कांउसलर हैं और सायकोलास्टि भी हैं. उन्होंने अपने अनुभव शेयर करते हुए बहुभाषी शिक्षा की वकालत की.
वेबीनार की अध्यक्ष एवं कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने वूमन स्टडी के बारे में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हम सब एक समान है लेकिन स्त्री सम्मान का विषय है जिसे हम अकादमी स्तर पर देखते हैं. उन्होंने महिला हिंसा के बारे में कहा कि कुछ लोगों की कुत्सिक मानसिकता के कारण सभी खराब नहीं हो जाते हैं. जेंडर सेंसेटाइजेशन की चर्चा करते हुए कहा कि यह महिलाओं का मामला नहीं है. यह पूरे समाज और राष्ट्र का मामला है. उन्होंने कहा कि वूमन स्टडी आइशोलेशन का मामला नहीं है बल्कि सभी से संवाद और चर्चा किया जाना जरूरी है. वेबीनार के अंत में आभार प्रदर्शन डा. कुसुम त्रिपाठीे ने किया. इसके पूर्व भारतीय शिक्षण मंडल के श्री नरेश मिश्रा ने कल्याण मंंत्र का उच्चारण किया. कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ मनोज कुमार गुप्ता ने किया. डीन प्रो. डी के वर्मा के निर्देशन एवं रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा के मार्गदर्शन में विश्वविद्यालय परिवार के सहयोग से यह आयोजन सम्मपन हुआ.
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