यह उपभोक्तावादी समय है: गणेश शाहा
★ 'वसुधैव कुटुंबकंम एवं विश्व शांति एवं सद्भाव' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार
महू (इंदौर)।. 'वर्तमान समय उपभोक्तावादी समय है. इस काल में संस्कृति और पर्यावरण का लगातार नुकसान हो रहा है. संस्कृति और पर्यावरण की चिंता को हम भूल रहे हैं.' यह बात नेपाल सरकार के पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री गणेश शाहा 'वसुधैव कुटुंबकंम एवं विश्व शांति एवं सद्भाव' विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में कही. डॉ. बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय एवं ग्लोबल पीस फाउंडेशन इंडिया के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित वेबीनार को संबोधित करते हुए श्री शाहा ने इस बात पर चिंता जतायी कि यह पीढ़ी आईटी और आर्टिफिशयल इंटलीजेंस की पीढ़ी है जो भविष्य के नुकसान को समझ नहीं पा रही है. उन्होंने कहा कि जब मैं विद्यार्थी था तब हमें बताया गया था कि पूंजी का नुकसान कोई बड़ा नुकसान नहीं है, वह पुन: मेहनत से अर्जित किया जा सकता है लेकिन स्वास्थ्य का नुकसान बड़ा नुकसान है और नैतिक रूप से जो नुकसान होता है, उसकी कोई क्षतिपूर्ति नहीं है. गांधीजी द्वारा बताये गए सात पापों का उल्लेख करते हुए उनका कहना था कि वर्तमान की राजनीति सिद्वांत विहीन हो गई है. गांधीजी की बात का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रकृति की इतनी क्षमता है कि वह लोगों की आवश्यकता को पूरी करती है लेकिन लालच को पूरी करने की क्षमता नहीं है. तकनीक ने विकास के नए रास्ते खोले हैं तो भारी नुकसान भी प्रकृति और समाज का हुआ है, इस पर भी चिंता की जानी चाहिए. उन्होंने समाधान के रूप में कहा कि विज्ञान और तकनीक के साथ आध्यात्म का सामंजस्य बिठाकर विश्व शांति और सद्भावना की ओर हम बढ़ सकते हैं.
ग्लोबल यूर्निवसिटी के कुलाधिपपति डा. मार्कण्डेय राय वेबीनार में बीज वक्तव्य में कहा कि इस थीम के अंतर्गत विश्वविद्यालय को शोध कार्य कराया जाना चाहिए. उन्होंने रंग, जाति और अलग-अलग स्तर पर होने वाले भेदभाव की चिंता करते हुए कहा कि अब समय आ गया है कि हम विश्व शांति और सद्भाव के लिए विवेकानंद के सुझाये गए रास्ते पर चले. उन्होंने विवेकानंद जी का उल्लेख करते हुए कहा कि एक व्यक्ति स्वप्र देखता है तो वह स्वप्र होता है और जब समूह स्वप्र देखता है तो वह साकार हो जाता है. स्वामी परमहंस ने कहा था कि दीन की सेवा ही सच्ची सेवा है. सेवा, प्रेम और आपसी सहयोग को आध्यात्म का मूलमंत्र बताते हुए उन्होंने कहा कि कोई मजहब बैर करना नहीं सिखाता है. उन्होंने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास है. वेबीनार के आरंभ में डीन प्रोफेसर डीके वर्मा ने विषय को विस्तार देते हुए ब्राउस की गतिविधियों का परिचय दिया और कहा कि सामाजिक विज्ञान का विश्वविद्यालय होने के कारण हमारी जवाबदारी बहुत बड़ी है. इस विश्वविद्यालय में औपचारिक शिक्षा के साथ शोधपरक शिक्षा पर जोर दिया जाता है. उन्होंने कहा कि आज का वेबीनार इसी शोध का एक प्रकल्प है.
इंटरनेशल ग्लोबल पीस फाउंडेशन (यूएसए) के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट श्री आयो गोतो ने कहा कि पूरे विश्व में मनुष्य तनाव में है. किसी के पास भी मन की शांति नहीं है और यही कारण है कि विश्व में शान्ति और सद्भाव के लिये हमें सामूहिक रूप से प्रयास करना होगा। उन्होंने ने कहा कि धर्म, संस्कृति और राष्ट्रीयता से ही शान्ति और सद्भाव उत्पन्न किया जा सकता है। दुनिया के 23 देशों में ग्लोबल पीस फाउंडेशन शान्ति एवं सद्भाव के लिये कार्य कर रहे हैं। भारत में इस दिशा में बेहतर कार्य हो रहा है.
इंटरनेशल ग्लोबल पीस फाउंडेशन फिलीपींस की प्रोग्राम कोआर्डिनेटर सर्लिन थोम्बे ने विश्व शान्ति एवं सद्भाव के लिये समस्या को चिन्हित करते हुए कहा कि इस समय पहचान का संकट, वैश्विक भ्रष्टाचार, हिंसा और आतंकवाद, आपसी सहयोग की कमी और परिवार का विघटन है। समाधान बताते हुए उन्होंने कहा कि इस दिशा में युवा वर्ग को प्रेरित करना होगा। अपने रिसर्च के आधार पर उन्होंने बताया कि यूथ लीडरशिप को बढ़ावा, परिवार के विघटन को रोकना, वालियटरी भागीदारी को बढ़ाना तथा शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता का विकास करना आवश्यक है। उन्होंने विश्व शांति एवं सदभाव का मंत्र प्यार करो और प्यार बांटने को बताया।
इंटरनेशल ग्लोबल पीस फाउंडेशन इंडोनेशिया में जनरल मैनेजर सैनत्या रहमी उत्तमी ने कहा कि वे भारत से प्रेम करती हैं क्योंकि वे योग से प्रेम करती हैं। विश्व शांति एवं सदभाव के लिये उन्होंने कहा कि योग से मन एवं शरीर तंदुरुस्त रहता है और जब मन प्रसन्न होगा तो शांति एवं सद्भाव का वातावरण बनेगा।
बेबीनार की अध्यक्षता कर रहे पर्यावरण विशेषज्ञ संगम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर वीके गोस्वामी ने विश्व शांति एवं सद्भाव के संदर्भ में भारतीय संस्कृति का उल्लेख करते हुए कहा कि शांतिमय समाज की आवश्यकता पूरे विश्व को है. उन्होंने जीवनशैली को सरल बनाने की बात करते हुए शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने की जरूरत पर बल दिया. उन्होंने 21 सूत्र का उल्लेख भी विस्तार से किया जिससे समाज में शांति एवं सद्भाव कायम किया जा सकता है.
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ग्लोबल पीस फाउंडेशन भारत चेप्टर के ट्रस्टी डा. चांद भारद्वाज ने कहा कि विज्ञान एवं आध्यात्म का गहरा अंतर्सबंध स्थापित किया जाना चाहिए. उन्होंने कॉसमॉस में व्यवस्था को मैटर, यूनिवर्सल माइंड, लॉ ऑफ नेचर की आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए विज्ञान एवं आध्यात्म संबंध को स्पष्ट किया और इस पर पाठ्यक्रम की विषय-वस्तु तैयार करने का सुझाव दिया.
नाइजीरिया से धर्मगुरु जोसफ जॉन हयाब ने कहा कि पहली जरुरत है कि हम दूसरों को सुनने की आदत डालें और उनके अच्छे विचारों को अपनी जीवन शैली में शामिल करें। शांति एवं एकता के लिये परस्पर सहयोग का रवैया अपनाएं। उन्होंने अहंकार को खत्म करने पर जोर देते हुए कहा कि परम्परागत ढंग से इसका समाधान तलाशा जा सकता है ।
ब्राऊज में नेक एवं मीडिया सलाहकार डॉ सुरेन्द्र पाठक ने पीस एंड हारमोनी के संदर्भ को भारतीय परंपरा से जोड़ते हुए कहा कि अनादि काल से चली आ रही वैदिक परम्परा में इसका समाधान ज्ञान, विवेक, और विज्ञान के समन्वय से सुझाया गया है। श्रुति-स्मृति परम्परा का विस्तार से उल्लेख करते हुए डॉ पाठक ने कहा कि नैतिक नेतृत्व और आध्यात्मिक विवेक और सांस्कृतिक एकता के सूत्र षड दर्शन और भक्ति परंपरा में भरा पड़ा है . ऋषि मुनियों ने वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय बताया है ।
वेबिनार के अंत में बीआर अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर आशा शुक्ला ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वे विश्वविद्यालय की शोधपीठ के द्वारा इस कार्य को आगे ले जाएंगी और ऐसे वेबीनार की शृंखला संचालित करेंगी उन्होंने कहा कि ब्राउज का उद्देश्य शांति, सद्भाव और सामाजिक समरसता पर शोधपरक अध्ययन को बढ़ावा देना है. अभी 11 पीठ कार्य कर रहे हैं और अन्य विषयों के 9 मानद पीठ को मंजूरी मिल गई है. शीघ्र ही इन पर कार्य आरंभ होगा जिसमें विश्व शांति एवं सद्भाव के लिए भी पीठ की स्थापना की गई है. वेबिनार का संचालन नेपाल से ध्रुवा प्रसाद लेमिचने ने किया।
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