बुद्ध हमेशा से यर्थाथवादी रहे-डॉ. सुरेंद्र पाठक ★ ‘आधुनिक समय में बौद्ध मूल्यों का पुनरावलोकन’ विषय पर अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार

बुद्ध हमेशा से यर्थाथवादी रहे-डॉ. सुरेंद्र पाठक


★ 'आधुनिक समय में बौद्ध मूल्यों का पुनरावलोकन' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार


महू। 'वर्तमान समय में मानव समाज अनेक चुनौतियों से सामना कर रहा है. वह अपने लालच और ईर्ष्या के कारण अनेक समस्यायें उत्पन्न कर रहा है और इन सब चुनौतियों से निपटने के लिए बुद्ध विचार हमेशा सामयिक रहे हैं.' यह बात त्रिभुवन यूर्निवसिटी लुंबिनी में बौद्ध चेयर के हेड श्री नरेश मान 'आधुनिक समय में बौद्ध मूल्यों का पुनरावलोकन' विषय पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबीनार में मुख्य अतिथि की आसंदी से बोल रहे थे. यह अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी लॉर्ड बुद्धा चेयर बीआर अम्बेडकर सामाजिक विश्वविद्यालय, महू एवं भारतीय शिक्षण मंडल के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था. उन्होंने आज की विषम परिस्थितियों के लिए औद्योगिकीकरण और मनुष्य की हिंसक प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि बुद्ध के बताये रास्ते पर चलकर हम एक सुखी संसार का निर्माण कर सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने आज के विषय 'आधुनिक समय में बौद्ध मूल्यों का पुनरावलोकन' पर अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया. पूर्व वक्ताओं की बातों का उल्लेख करते हुए डॉ. पाठक ने कहा कि विज्ञान और बौद्ध दर्शन का गहरा संबंध है. उन्होंने कहा कि बुद्ध दर्शन को तीन प्रमुख बिंदुओं के माध्यम से समझना जरूरी है कि पहला यह कि बुद्ध दर्शन ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करता है. वह अनिश्वरवादी है. दूसरा यह कि आत्मा की परिकल्पना को लेकर बुद्ध दर्शन खामोश है. तीसरा यह कि बुद्ध दर्शन यह मानता है कि कुछ भी स्थायी नहीं है. सब क्षणभुंगर है. आज जो हम भौतिकवादी और विज्ञानवादी समय में जी रहे हैं, उसकी नींव बुद्ध दर्शन ने रखा, यह माना जा सकता है. बुद्ध धर्म रहस्य को नकारने का काम किया है. उन्होंने बौद्ध दर्शन के पंचशील सिद्धांत की विवेचना करते हुए कहा कि पंतजलि में भी इसी प्रकार की व्याख्या मिलती है. चित्त की शुद्धि से स्मृति की शुद्धि होती है जो समाधि की ओर ले जाता है. डॉ. पाठक ने कहा कि बुद्ध कहते थे कि पहले जानो, फिर मानो. वे मौलिकता की बात करते थे. बुद्ध हमेशा से यर्थाथवादी रहे और उन्होंने सपने नहीं दिखाये. बुद्ध सर्वकालिक हैं और वे कठिन नहीं, सहजता के पक्ष में हैं.

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इसके पूर्व अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में डॉ. काशीनाथ, संस्कृत विश्वविद्यालय नेपाल ने बुद्ध दर्शन की व्याख्या करते हुए कहा कि बौद्व दर्शन में समूचे संसार का कल्याण निहित है. उन्होंने पंचशील सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य किसी प्राणी के साथ स्वयं हिंसा ना करे और ना ही किसी को हिंसा की अनुमति दे. हिंसा नहीं होने से समाज में शांति की स्थापना होगी. उन्होंने कहा कि बिना अनुमति दूसरे के चीजों का ना लें. इससे लालच पर नियंत्रण होगा. तीसर बात उन्होंने कहा कि सत्य के मार्ग पर चलें. चौथी बात उन्होंने कामनाओं और वासनाओं से मुक्त रहने के लिए कहा तथा पांचवीं बात में उन्होंने सुरा अल्कोहल से दूर रहने के लिए कहा. उन्होंंने कहा कि अहिंसा, सत्य, वासनामुक्त रहने से समाज में अदालत और अस्पताल की जरूरत समाप्त हो जाएगी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज हम जो कर्म करेंगे, उसका परिणाम भी हमें भुगतना होगा. महात्मा गांधी इंस्ट्यूट मॉरीशस में असिसटेंट प्रोफेसर डॉ. संयुक्ता ने कहा कि- 'कोरोना की महामारी में हमें करूणा देखने को मिली.' उन्होंने कहा कि प्राथमिक शाला में बुद्ध की करूणा कहानी पढ़ी थी जो आज भी उनके मस्तिष्क पर अंकित है. उन्होंने अज्ञानता में प्रकाश का मार्ग दिखलाने का रास्ता बुद्ध दर्शन को बताया. उन्होंने अपेक्षा कि भारत के स्कूलों में बौद्ध धर्म की शिक्षा अनिवार्य किया जाना चाहिए. संगोष्ठी में महात्मा गांधी इंस्ट्यूट मोका, मॉरीशस से पधारे श्री रोशन बुद्धन ने पीपीटी प्रजेंटेशन के माध्यम से बुद्ध दर्शन को समझाया तथा शिक्षा में बुद्ध दर्शन का क्या महत्व है, यह भी बताया.   
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता प्रो. नीरू मिश्रा ने किया. प्रो. मिश्रा ने बौद्ध दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में सम्यक परिवर्तन के लिए बौद्ध धर्म एकमात्र प्रभावशील रास्ता है. उन्होंने बताया कि एक अध्ययन में यह बात संज्ञान में आयी है कि बौद्ध धर्म के विपश्यना ध्यान पद्धति से अनेक अपराधियों में सकरात्मक परिवर्तन देखने को मिला है. बौद्ध दर्शन को युवा पीढ़ी के लिए जानना जरूरी बताया. संगोष्ठी के आरंभ में कुलपति प्रो. आशा शुक्ला ने अतिथियों का परिचय दिया. कुलपति महोदया ने अपेक्षा की कि बौद्ध दर्शन पर और गंभीर कार्य करने के लिए वैश्विक स्वरूप दिया जाए. इसके लिए उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों से पधारे अतिथियों से सहयोग की अपेक्षा की. कार्यक्रम का संचालन डीन प्रोफेसर डीके वर्मा ने किया. संगोष्ठी के सफल आयोजन में रजिस्ट्रार श्री अजय वर्मा समस्त विश्वविद्यालय का उल्लेखनीय सहयोग रहा.


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