" गांधी और अम्बेडकर को ऐसे समझें "
पुस्तक समीक्षा : गांधी-अम्बेडकर कितने दूर कितने पास ,
लेखक : रघु ठाकुर
★समीक्षक : अजय तिवारी
इन दिनों एक किताब अभी पाठकों के हाथों में आने से पहले ही अपने शीषर्क गांधी-अम्बेडकर कितने दूर कितने पास की वजह से चर्चा में है। सुप्रसिद्ध समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने यह किताब जानी-मानी लेखिका अरु न्धति राय की पुस्तक एक था डाक्टर,एक था संत की वजह से घाना के विविद्यालय से महात्मा गांधी की प्रतिमा हटाए जाने की पृष्ठभूमि में लिखी है। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि भारत के सबसे बड़े प्रतीक होने के बावजूद महात्मा गांधी के बारे में फैलाए जाने वाले झूठ का अपेक्षित जवाब हमारी सरकार कभी नहीं देती। उन्होंने अपनी किताब में महात्मा गांधी के बारे में अरुन्धति राय की व्याख्या को सिरे से नकारते हुए उसकी आलोचना की है। रघु ठाकुर ने किताब की प्रस्तावना में ही स्पष्ट किया है कि उन्होंने गांधी और अम्बेडकर की न तुलना की है और न एक ही प्रशंसा और दूसरे की आलोचना। उनका कहना है कि अगर वह ऐसा करते तो शायद अरुन्धति राय का ही मकसद पूरा होता। हालांकि उन्होंने उन प्रश्नों के उत्तर देने की अवश्य कोशिश की है जिनको लेकर प्राय: अम्बेडकरवादी और अन्य व्यक्ति महात्मा गांधी की आलोचना करते हैं। जैसे गांधी वर्ण और जाति मानते थे, इसलिए जातिवादी और दलित विरोधी थे। इसके जवाब में रघु ठाकुर लिखते हैं कि अपने आरंभिक काल में गांधी ऐसा अवश्य मानते थे, लेकिन इसका कारण उनकी पृष्ठभूमि है। उनका कहना है कि गांधी ऐसे सनातनी हिंदू थे, जिसमें व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद नहीं था, न अर्थ आधारित न जन्म आधारित और न राजनीतिक। किताब में कहा गया है कि गांधी जाति के नाम पर अन्याय,छुआछूत या जन्मना भेदभाव आदि विकृतियों को अपनी वर्ण और जाति की कल्पना के खिलाफ मानते थे। रघु ठाकुर ने किताब में यह बात जोर देकर कही है कि गांधी ने तो यह भी कहा था कि अगर उनका पुनर्जन्म हो तो वह किसी भंगी के घर पैदा होना चाहेंगे। अम्बेडकर के शब्दों में किताब में कहा गया है कि सारी भ्रांति इस कारण से है कि गांधी की धारणा निश्चित और स्पष्ट नहीं है कि वर्ण क्या है और जाति क्या है ? किताब के अनुसार अम्बेडकर ने गांधी की समझ को चुनौती अवश्य दी थी लेकिन उनकी नीयत को नहीं। गांधी के प्रशंसक होने के बावजूद रघु ठाकुर इस बड़ी बात को बेहद सहजता से कह जाते हैं कि अम्बेडकर ने वर्ण के प्रश्न पर गांधी की आदर्श कल्पना को अपने तथ्य,जिद और दृढ़ता से चुनौती दी और उन्हें अपनी राय बदलने के लिए प्रेरित भी किया। किताब में खुलकर कहा गया है कि इस विषय पर अम्बेडकर का तार्किक पक्ष नि:संदेह ज्यादा मजबूत है और निरंतर अनुभवों ने गांधी को अपनी धारणाओं को सुधारने और बदलने के लिए प्रेरित भी किया। यह किताब गांधी और अम्बेडकर जैसे दो बड़े व्यक्तित्वों को ठीक से समझने की राह भी दिखाती है। इस किताब में गोल मेज सम्मेलन में गांधी की ओर से अम्बेडकर के विरोध, गांधी के अनशन से पृथक मताधिकार के मसले पर दलितों का नुकसान,गांधी धर्मशास्त्रों को मानते थे और हिंदू धर्मशास्त्र जाति व्यवस्था के जनक हैं जैसे कठिन सवालों के जवाब भी देने का प्रयास किया गया है। उम्मीद है कि आकार बुक्स की 136 पेज की यह छोटी किताब गांधी और अम्बेडकर के संदर्भ में नए ढंग से सोचने के लिए विवश करेगी। किताब में कहा गया है कि गांधी के बाद लोहिया ही वह व्यक्ति थे जो अम्बेडकर को समूचे भारत और भारतीयों का नेतृत्व करने के लिए तैयार करने का प्रयास कर रहे थे।
किताव के दो आमुख हैं। एक राजमोहन गांधी ने लिखा है, जिसमें कहा है कि प्रत्येक भारतवासी अपने किसी न किसी संघर्ष के लिए गांधी की जरूरत और साथ चाहता है, इसलिए गांधी सबके हैं और अकेला गांधी सबका गांधी है। वह लिखते हैं कि रघु ठाकुर ने किताब में यह सही लिखा है कि 1936 में जब अम्बेडकर ने गांधी की कटु आलोचना की,तब गांधी ने ही सुनिश्चित किया कि अम्बेडकर के तर्कों से सारे देश को अवगत कराया जाए।दूसरे आमुख में प्रो. केएल शर्मा लिखते हैं कि हर संकट के पश्चात अम्बेडकर गांधी की प्रशंसा करते थे और उनको संकट मोचक की संज्ञा देते थे।
पुस्तक समीक्षा : गांधी-अम्बेडकर कितने दूर कितने पास
लेखक : रघु ठाकुर
प्रकाशक : आकार बुक्स
कीमत : 195 रुपए
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