ओ री चिरइया नन्ही सी चिडिया, अंगना में फिर आजा रे ,,,, ★ ग्राउंड रिपोर्ट /ब्रजेश राजपूत

ओ री चिरइया नन्ही सी चिडिया, अंगना में फिर आजा रे ,,,,

★ ग्राउंड रिपोर्ट /ब्रजेश राजपूत


विदिशा जिले के गंजबासौदा के मेन रोड चार खंबा के पास जहां सबसे ज्यादा पक्षी की चहचहाहट गूंज रही हो तो समझ जाइये कि वो घर है विकास यादव का। विकास पिछले दस सालों से पक्षी संरक्षण समिति चलाते हैं जिसका मुख्य काम चिडियों के लिये लकडी के घोंसले तैयार करना है जिसे वो गौरेया कुटी या बर्ड नेस्ट कहते हैं। विकास कहते हैं कि मैंने बचपन में बहुत सालों तक अपने घरों की सफाई में पक्षियों के घोंसले तोडे हैं तो अब प्रायश्चित कर रहा हूं और देश भर में ये कुटियां लगाने का काम कर रहा हूं। चाहे भरतपुर का पक्षी अभयारण्य हो या आगरा के फोरेस्ट डिपार्टमेंट की कालोनी या फिर दक्षिण के राज्यों में भी विकास की गौरेया कूरियर से कुटी भेजी गयी है।
विकास यादव की डिजायन की हुयी ये गौरेया कुटी भी बहुत खास होती है जिसमें हमारे आपके घरों जैसी तीखी ढलावदार छत के नीचे दो कमरे का फलैट घर मकान कुछ भी कह लें चिडिया का होता है जिसमें वो पहले वो तिनके जोड जोड कर इस घर को भर देती है या कहें कि पक्के मकान में देसी घोंसला बनाती है फिर तिनकों के उपर अंडे देती है उन अंडों को सेती है और जब नन्हे बच्चे आ जाते हैं तो इस कुटी मकान घर या चिडिया के फलेट मे आने जाने के लिये एक छोटा सा छेद होता है और इस छेद के पास ही उसके बैठने के लिये एक छोटा सा बार या डंडा होता है जिस पर बैठकर चिडिया घोंसले से मुंह निकालकर बैठे अपने नन्हे नन्हे से बच्चों को जमाने भर से चुन चुन कर लायी निवाला देती है। ये सारी गतिविधियां चिडियों के प्रजनन काल के दौरान ही आपको हमको दिखती है जो इन दिनों चल रहा है।
लंबे समय से पक्षियों और खासकर चिडियों पर अपने अनुभव और अध्ययन से मिली जानकारी के आधार पर विकास बताते हैं कि चिडियां हमारे आसपास से गायब होती जा रहीं हैं उसकी वजह ये है कि हमारे घर जहां हमने उनके रहने और प्रजनन की जगह नहीं छोडी। हमारे पुराने कच्चे घरां में चिडियें चौखट छत या छज्जे के नीचे मिली छोटी सी जगह पर अपना घर बनाकर हमारे साथ रहती थीं और दिन भर अपनी चहचहाहट से हमारा घर गुलजार रखती थीं। साफ सफाई के नाम पर हमने उनके घर तो छीने ही उनका दाना पानी भी छीन लिया। चिडियें दाल के दाने पके चावल और बाजरे का दाना चाव से खाती हैं मगर हम इस उनके इस खाने को भी कचरा समझ कर फेंक देते हैं यदि इसी दाने को किसी खुली जगह पर रोज बिखेरने लगेंगे तो आप देखेंगे कि चिडियां आने लगेंगी। वो बताते हैं कि चिडियों की कमी को मोबाइल टावर के रेडियेशन से जोडकर देखना ठीक नहीं हैं दरअसल हमने ही उनके लिये आवदाना और दाना पानी नहीं छोडा है तो भला चिडियां कब तक हमारे आसपास रहतीं। पिछले साल जब रजनीकांत और अक्षय कुमार की फिल्म टू प्वाइंट जीरो आयी थी तो उसमें चिडियों की चिंता की गयी थी इस फिल्म से प्रभावित होकर विकास ने रजनीकांत अक्षय कुमार और फिल्म के निदेशक शंकर को गौरेया कुटी भेजी थी जिस पर उन सबका शुक्रिया भी आया था। उस फिल्म के बाद लोगों ने चिडियों की परवाह करनी शुरू की और उनसे बहुत सारी कुटी लगवाई गयीं।
विकास कहते हैं कि यदि चिडियां पनप जायें तो वन विभाग को पौधारोपण करने की जरूरत ही नहीं पडेंगी। क्योंकि चिडियां ही पेडों के फलों के बीज खाकर उनको अपनी बीट की मदद से एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैला देती हैं। घरों की दीवारों किनारों या छतों पर लगने वाले पीपल के पेड इन चिडियों की मदद से ही लगते हैं क्योंकि चिडियें पीपल का बीज खाकर जब बीट करती हैं तो वो बीज इधर उधर फैलकर पहले पौधा फिर वृक्ष बन जाता है।
मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में विकास वन विभाग के साथ मिलकर काम कर रहे हैं उनका दावा है कि उनकी कुटी में चिडियों के आने और ब्रीडिंग या प्रजनन का प्रतिशत अस्सी फीसदी से भी ज्यादा है। ये इस बात से मैं भी इत्तफाक रखता हूं पिछले साल कोरोना के दिनो में विकास भोपाल में मुझे ढूढतें हुये आये मेरे घर के बाहर उन्होंने तीन कुटियां लगायी और आज तीनों में हर वक्त चिडियों की मधुर चहचहाहट सुबह से शाम तक आती रहती है। कोरोना के शांति काल में लाक डाउन के दौरान ये हमारा दिन भर का सबसे अच्छा काम होता था कि घरों के छज्जों पर लगे बर्ड नेस्ट में चिडियों का आना जाना देखना और मधुर चहचहाना सुनना।
कोरोना के लाक डाउन में हम सबने चिडियों पक्षियों और जानवरों की परवाह करनी सीखी है। विकास निशुल्क गौरेया कुटी लगाते हैं वो किसी से डोनेशन या चंदा नहीं मांगते बस जितना भी कोई पैसा देता है उसकी कुटी बनाकर उस व्यक्ति का नाम लिखकर उसी को लौटा देते हैं। नन्ही चिडियों के लिये विकास का काम देखकर स्वानंद किरकिरे की दिल को छूने वाली वो लाइनें याद आती हैं जो उन्होंने सत्यमेव जयते में लिखीं और गायीं थीं।
ओ री चिरइया, नन्ही सी चिडिया, अंगना में फिर आजा रे,,
अंधियारा है घना और लहू से सना,
किरणों के तिनके अंबर से चुनके अंगना में फिर आजा रे,,,

( आपको बताते चलूं कि गौरेया दिवस 20 मार्च को है और यदि आप भी विकास से गौरेया कुटी अपने घर के आसपास लगाना या किसी के भेंट करना चाहते हैं तो विकास के इस नंबर 9827512444 पर संपर्क कर सकते हैं।) 
 
Brajesh Rajput,  ABP न्यूज़ ,Bhopal,

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