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देव श्री खंडेराव मेला शुरू, दहकते अंगारों पर से निकले श्रद्धालु, 31 सालों से निकल रहे है पूर्व विधायक सुनील जैन

देव श्री खंडेराव मेला शुरू, दहकते अंगारों पर से निकले श्रद्धालु, 31 सालों से निकल रहे है पूर्व विधायक सुनील जैन 


सागर। सागर जिले के देवरी नगर के बीचोबीच स्थित देव श्री खंडेराव के मेले का आयोजन आज से शुरू हो गया।  बुन्देलखण्ड अंचल का  प्रसिद्ध यह मेला बहुत ही प्राचीन माना जाता है.।श्रद्वालुओं की ऐसी मान्यता है कि जिस भी श्रद्वालु की मान्यता पूरी होती है वह  दहकते अंगारों पर से निकलते हैं।इस मेले पर मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों के लोग भी इस मेले को देखने आते हैं। परंतु कोरोना महामारी को देखते हुए मंदिर समिति के द्वारा लोगों को पहले की आगाह कर दिया कि मेले में किसी भी प्रकार की दुकाने नहीं लगाई जाएगी।

इस बार मंदिर समिति ने भटियों को भी कम किया है हर वर्ष दो सौ से अधिक गड्ढे  खोदे जाते थे परंतु कोरोना को देखते हुए इस बार केवल 101  ही खोदे गये है। आग से निकलने के पूर्व लोग देवखण्डेराव के मंदिर में पूजा अर्चना करते है। उसके बाद दहकते अंगारों पर से निकलते है।
पूर्व विधायक सुनील जैन  बताते है कि पिछले 31 सालों से इसमे से निकलते आ रहे है। यहां एमपी से और बाहर के लोगो के आने वालों की संख्या खूब है। पहली दफा जब आये थे हमारी मन्नत पूरी हुई थी। तब से में हमेशा इस मेला में आता हूँ। सपत्नीक इसमे हिस्सा लेता हूँ। 
यही बात पिछले पांच साल से आ रही अंचल आठ्या भी बताती है कि मन्नते पूरी होती है तो लोग यहां आते है। काफी धार्मिक मान्यता है। यही बात  पहली दफा आई आभा का कहना है कि मन्नते पूरा होती है । पहली दफा अंगारों पर से निकली हूँ। 

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ये है किवदंती

एक बार यहां के राजा यशवंतराव के पुत्र बीमार हो गए तब देव खंडेराव ने दर्शन देकर कहा कि हल्दी के उल्टे हाथ लगाएं और भट्टियां खोदकर अंगारे डाल कर हाथ से हल्दी भंडार डालकर अग्नि के ऊपर से हल्दी छोड़कर निकलें तो उनका पुत्र स्वस्थ हो जाएगा। तब से यह प्रथा शुरू हो गई और लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर देव श्री खंडेराव के अग्नि मेले में से नंगे पांव आग पर से चलते हैं।

 प्राचीन मंदिर वास्तु कला की एक अद्भुत मिसाल है। मंदिर में एक विशेष छिद्र है जिसमें साल में एक बार अगहन माह की षष्टि के दिन सूर्य की किरणें उस छिद्र के माध्यम से शिवलिंग की पांच पिंडों पर ठीक 12 बजे पड़ती हैं तब लोग अग्निकुंड में से निकलते हैं।

450 साल पुरानी परंपरा
पंडित श्री नारायण राव वैध ने बताया कि जब नवंबर माह में चंपा षष्टि पड़ती है तब सूर्य की किरणें शिव की पांच पिंडों पर पड़ती हैं और इस वर्ष ऐसा संयोग है की सूर्य की रोशनी शिवजी के पांच पिंडी पर पड़ेगी। अगर दिसंबर माह में चंपा-षष्ठी पड़ती है तो कई बार यह सूर्य की रोशनी पिंडों पर नहीं पड़ती।  450 वर्षों पुरानी परंपरा है। इस दफा कोरोना काल के चलते मास्क और सामाजिक दूरी का खास ध्यान रखा गया है। प्रशासन ने भी पूरी व्यवस्थाएं की है। 


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