भाषा का अनुशासन व्याकरण से ही : प्रो. आचार्य ★व्याकरणाचार्य कामता प्रसाद गुरु की पुण्य तिथि पर परिचर्चा व पुस्तक विमोचन

भाषा का अनुशासन व्याकरण से ही : प्रो. आचार्य
★व्याकरणाचार्य कामता प्रसाद गुरु की पुण्य तिथि पर परिचर्चा व पुस्तक विमोचन


सागर। व्याकरण पाणिनि की उपाधि से सम्मानित हिन्दी व्याकरण के प्रकांड विद्वान पंडित कामता प्रसाद गुरु की 74 वीं पुण्य तिथि पर नगर की प्रतिष्ठित संस्था "श्यामलम" द्वारा सोमवार को आदर्श संगीत महाविद्यालय के सभा मंच पर परिचर्चा का स्मरणीय आयोजन सोशल डिस्टेंडिंग का पालन करते हुए किया गया।इस अवसर पर "आधुनिक हिन्दी व्याकरण और कामता प्रसाद गुरु" विषय पर बोलते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गांधीवादी विचारक शुकदेव प्रसाद तिवारी ने कहा कि बोली को हिन्दी भाषा बनाने में कामता प्रसाद गुरु जी का महान योगदान है।व्याकरण के अलावा कविता,नाटक,निबंध,उपन्यास लेखन जैसी अन्य विधाओं पर भी उनका पूरा अधिकार था।उन्होंने 'सरस्वती 'और 'बालसखा' पत्रिकाओं में सम्पादकीय योगदान दिया।नेहरू जी जब विदेशों में हिन्दी की पुस्तकें भेजते थे तो उनमें गुरु जी की पुस्तक अवश्य रहती थीं।उन्होंने देश दुनिया में सागर का नाम रोशन किया।
सागर विश्व विद्यालय में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे प्रसिद्ध साहित्यकार प्रो.सुरेश आचार्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि पंडित कामताप्रसाद गुरू सागर के चर्चित सपूतों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।उन्होंने हिन्दी गद्य  पद्य दोनों पर अपनी अधिकारवाणी सिद्ध की है । वे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समय के श्रेष्ठ कवियों में गण्य हैं ।अधिक महत्वपूर्ण है कि उन्होंने हिन्दी व्याकरण की रचना कर के भाषा का अनुशासन क़ायम किया।उन पर भारत शासन ने डाक टिकट जारी किया था ।अपने हिन्दी व्याकरण के लिए उन्होंने विश्वव्यापी कीर्ति अर्जित की है ।
सारस्वत वक्ता टी.आर.त्रिपाठी ने अपने सारगर्भित संबोधन में कहा कि पं.कामताप्रसाद गुरू सचमुच के गुरुजी थे।उन्होंने हिन्दी भाषा के परिष्करण में मूल्यवान अवदान किया है।उनके द्वारा लिखित "हिन्दी व्याकरण" ग्रंथ को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी,पं. रामावतार शर्मा,पं.चंद्रधर शर्मा गुलेरी,पं.लज्जाशंकर झा,बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर,बाबू श्यामसुंदर दास और आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जैसे तत्कालीन गणमान्य विद्वानों की समिति नागरी प्रसारिणी सभा ने व्याकरण को सर्वसम्मत बनाने के उद्देश्य से उसे आवश्यक परीक्षण उपरान्त स्वीकृत कर लिया था।सागर के साहित्यकारों और नागरिकों के लिए यह गौरव की बात है कि देश के लिए डी .लिट.से भी बड़ी उपाधि वाला  मूल्यवान ग्रंथ समर्पित करने वाले विद्वान गुरुजी सागर के ही थे।इस ग्रंथ की भूमिका में उन्होंने कहा है कि हिन्दी भाषा के लिए वह दिन बड़े गर्व का होगा जब इसका व्याकरण अष्टोध्यायी और महाभाष्य के मिश्रित रूप में लिखा जायेगा।

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विशिष्ट अतिथि शासकीय स्नातकोत्तर महा विद्यालय गढ़ाकोटा के प्राचार्य प्रो.एस.एम. पचौरी ने स्व.गुरु द्वारा हिन्दी भाषा को सुदृढ़ करने के लिए किए गए कार्यों को रेखांकित करते हुए डा.भारती की नारी विमर्श पर केन्द्रित पुस्तक चक्रव्यूह पर भी अपने विचार रखे।इस अवसर पर डा.घनश्याम भारती के निबंध संग्रह "चक्रव्यूह" का विमोचन एवं लेखक का सम्मान भी किया गया।डा.भारती ने पंडित कामता प्रसाद गुरु का जीवन परिचय देते हुए उन्हें देश का प्रथम हिन्दी व्याकरणाचार्य बताया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ मंच द्वारा मां सरस्वती एवं कामता प्रसाद गुरु जी के चित्र पर माल्यार्पण और कवि पूरनसिंह राजपूत द्वारा सरस्वती वंदना के मधुर गायन से हुआ। श्यामलम अध्यक्ष उमा कान्त मिश्र ने स्वागत उद्बोधन दिया। स्व.गुरुजी के पड़पोते रमाकांत गुरु ने गुरुजी का पारिवारिक परिचय देते हुए उनके जबलपुर में निवास किए जाने तक का विस्तार से विवरण दिया।संचालन म.प्र.हिन्दी साहित्य सम्मेलन सागर के अध्यक्ष आशीष ज्योतिषी ने किया तथा श्यामलम के कार्य.सदस्य रमाकान्त शास्त्री ने आभार माना।
इस अवसर पर शिव रतन यादव, डा.कुसुम सुरभि अवस्थी,डा.महेश तिवारी,हरी सिंह ठाकुर,के एल तिवारी अलबेला, हरी शुक्ला, आर.के.तिवारी,मुकेश निराला,वीरेन्द्र प्रधान,ओ पी रिछारिया,कुंदन पाराशर,कपिल बैसाखिया, डा.मनोज श्रीवास्तव,शरद जैन गुड्डू,संतोष पाठक,रमेश दुबे कवि,चन्द्र शेखर गुरु,मधु सूदन गुरु,डा.आर.आर.पाण्डेय,एम.शरीफ, तारिक अहमद,असरार अहमद,दामोदर अग्निहोत्री, मुकेश तिवारी,अंकुर भारती,चन्द्र कुमार जैन,एम डी त्रिपाठी,अम्बर चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।


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