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उमंग उत्साह के साथ हुआ बाल फिल्म महोत्सव समापन

उमंग उत्साह के साथ हुआ बाल फिल्म महोत्सव समापन


सागर। फिल्में समाज का आईना होती हैं और फिल्मों का समाज पर गहरा असर दिखता है यह अच्छा है सभी प्रकार की फिल्में विभिन्न प्रकार के दर्शकों की रूचि को पूरा करने के लिए बनाई जाती हैं ऐसी फिल्में हैं जिनमें शिक्षाप्रद सामग्री शामिल है ऐसी फिल्में देखने से छात्रों का ज्ञान बढ़ता है और उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है छात्रों को अपनी पढ़ाई पाठयेतर गतिविधियों और प्रतियोगिताओं के बीच बाजी मारने की जरूरत है इस तरह की पागल भीड़ और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बीच उन्हें विश्राम के लिए कुछ चाहिए और फिल्में आराम करने का एक अच्छा तरीका है। दो दिवसीय बाल फिल्म महोत्सव के दौरान दूसरे दिन छात्र छात्राओं को फिल्म छोटा सिपाही, अनोखा अस्पताल प्रदर्शित हुई। फिल्म छोटा सिपाही देशभक्ति से ओतप्रोत थी नायक बच्चा एक गरीब परिवार का था जब उसने अपने गांव के लोगों को स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते देखा तो उसके अंदर भी देशभक्ति का उदय हुआ और उसने अपने बचपन और दोस्तों के खेलों को छोड़कर देश की स्वतंत्रता के कार्य करना शुरू कर दिया उसने अपनी बुद्धि और विवेक से बहुत से सेनानियों की अंग्रेजों से जान बचाई ऐसी बहादुरी पूर्ण फिल्म से बच्चों को देश भक्ति का एहसास हुआ, वहीं दूसरी फिल्म अनोखा अस्पताल जिसमें दादी अम्मा ने अपने परिवार को छोड़कर जंगल में जानवरों का एक अलग तरह का अस्पताल खोला जिसमें जानवर अपने आप ही अपना इलाज कराने आते हैं दादी अम्मा और जानवरों का एक अनोखा प्रेम देखने को मिला इस फिल्म में यह संदेश मिलता है कि प्रकृति वनों, जंगलों से प्रेम करो और हिंसक जानवर भी अपना हिंसक स्वभाव को छोड़ घुलमिल जाते हैं।
फिल्म महोत्सव संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार एवं संस्कृति संचालनालय भोपाल के सहयोग से लोकरंग दर्पण कला केंद्र द्वारा आयोजित कराया गया संचालक विनीता दोहरे द्वारा बताया गया कि बेपरवाह मस्ती और सब कुछ जान लेने की सृजनात्मक जिज्ञासा का छोटा सा अक्स है। 

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बचपन उम्र का यह दौर निश्चिंतता,  उन्मुक्ता, मासूमियत, शरारत और संभावनाओं से भरा होता है कल्पनाओं की ऊंची उड़ान भरते हुए दादी नानी की कहानियां सुनाते हुए बच्चे अपने ही दुनिया में खोए रहते हैं उन्हें ना किसी बात की फिक्र होती है ना ही जीवन यथार्थ से जूझने की चिंता लेकिन इस बचपन को ऐसे साथी की जरूरत होती है जिससे इनका व्यक्तित्व और इनके जीवन में सुगमता, सुंदरता और चरित्र का समावेश हो। ऐसे ही सोच का नाम है बाल फिल्म महोत्सव जहां बाल विकास के लगभग सभी आयाम मौजूद हैं। यह महोत्सव की एक शुरुआत बस है अभी यह महोत्सव कोरोना काल के दौरान सिर्फ दो दिवसीय मनाया गया है आगामी वर्ष में यह महोत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम से कम 10 दिवसीय मनाया जाएगा उत्सव के बारे में शिक्षक और ग्राम वासियों ने कहा कि महोत्सव को हमारे ग्राम में आयोजित करने के लिए संस्था को बहुत-बहुत धन्यवाद ग्राम में एक नए सांस्कृतिक युग की शुरुआत की है जिसमें बच्चों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने का प्रयास किया गया गांव के बच्चों को शहर आकर आयोजन में भाग लेने की परेशानी से बचा लिया वरना ऐसे आयोजन सिर्फ शहरों में ही होते हैं अंततः  यह कहना उचित होगा कि बाल फिल्म महोत्सव ने बच्चों को स्वच्छ, स्वास्थ्य माहौल दिया है और उन्हें एक सुनहरे सपनों को जीने का मौका मिला है।
समापन में  मयंक तिवारी, महेंद्र, मधुबाला, शिवानी, नितिन, पलक, हर्षित, शताक्षी 
मौजूद रहे।  कार्यक्रम समीक्षक राजकुमार रैकवार वरिष्ठ रंगकर्मी  रहे। 


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