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नवरात्रि और नव दुर्गा, 17 अक्टूबर से आरम्भ @ज्योतिषाचार्य अनिल पांडे

नवरात्रि और नव दुर्गा, 17 अक्टूबर से आरम्भ

@ज्योतिषाचार्य अनिल पांडे

मित्रों 
मां दुर्गा की आराधना का त्यौहार आ रहा है जो कि 17 अक्टूबर से प्रारंभ होगा।  इस नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं तथा यह अश्वनी  माह के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। 
1 वर्ष में चार नवरात्रि में होती हैं । दो प्रकट नवरात्रि तथा दो गुप्त नवरात्रि। प्रकट नवरात्रि में पहली चैत्र मास में चेत्र नवरात्रि तथा दूसरी अश्वनी मास में शारदीय  नवरात्रि । गुप्त नवरात्रि भी दो होती हैं ।पहली आषाढ़ मास में दूसरी पौष मास में। प्रगट नवरात्रि भक्तजन मां दुर्गा के नौ रूपों की वंदना करते हैं। गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा के अन्य 10 रूपों की वंदना होती है। गुप्त नवरात्रि में तांत्रिक क्रियाओं तथा अन्य  सिद्धियों  की सिद्धि हेतु पूजा अर्चना की जाती है।
आज हम विशेष रूप से प्रकट नवरात्रि की चर्चा करेंगे। पहली प्रकट नवरात्रि  चैत्र नवरात्रि कही जाती है । यह चेत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा  से नवमी तक मनाई जाती है।  इस नवमी को रामनवमी भी कहा जाता है। दूसरी नवरात्रि अश्वनी शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है इसे शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं।
इन दोनों नवरात्रों में 6 माह का अंतर होता है। नवरात्रि में पहले ही दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री राजा हिमालय की पुत्री हैं ।इन्हें सती भी कहा जाता है । पूर्व जन्म की भांति इस जन्म में भी इनकी शादी भगवान शिव से हुई है ।मां शैलपुत्री वृषभ पर सवार हैं । इनके 2 हाथ हैं।एक हाथ में त्रिशूल है तथा दूसरे हाथ में कमल पुष्प है । मां शैलपुत्री के दूसरे नाम पार्वती और हेमवती भी है।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन हम मा ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं साधक इस दिन अपने  मन को मां के चरणों में लगाते हैं ।इनके भी मां शैलपुत्री की भांति दो हाथ हैं ।एक हाथ एक हाथ में जप की माला है तथा दूसरे हाथ में कमंडल है। कुंडलिनी शक्ति जागृत करने के लिए मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है मां दुर्गा का यह स्वरूप अनंत फल देने वाला है तथा इससे व्यक्ति के मानसिक शक्ति की वृद्धि होती है।
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है मां चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं दिव्य शक्तियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियां सुनाई देती है। मां चंद्रघंटा का स्वरूप अत्यंत सौम्यता एवं शांति से परिपूर्ण रहता है। मां के शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है । इनके दस हाथ में जेल में विभिन्न प्रकार के शस्त्र एवं वाण विभूषित हैं। मां का वाहन सिंह है तथा इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने की  होती है ।

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नवरात्रि के चौथे दिन कुष्मांडा देवी की उपासना होती है। साधक को इस दिन अत्यंत पवित्र होकर मां की आराधना करना चाहिए । जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तब इन्हीं देवी ने ब्रह्मांड की रचना की है ।यह आदिशक्ति हैं । इनके शरीर की कांति एवं प्रभा सूर्य के समान तेज है । मां की आठ भुजाएं हैं । इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहते हैं ।इनके 7 हाथों में क्रमश कमंडल ,धनुष ,बाण , कमल पुष्प ,अमृतपूर्ण  कलश ,चक्र तथा गदा है। तथा आठवें हाथ में सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली जपमाला है। इनका वाहन सिंह है।
मां का पांचवा रूप मां स्कंदमाता है। इनकी पूजा नवरात्रि के पांचवें दिन की जाती है। मां मोक्ष का द्वार खोलने वाली परम सुख दाई है। मां भगवान स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय की माता जी हैं कुमार कार्तिकेय प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे कुमार कार्तिकेय की मां होने के कारण इन्हें मां स्कंदमाता कहा जाता है। मां की चार भुजाएं हैं उनके दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा जो ऊपर उठी हुई है उस में कमल पुष्प है । बायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वर मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर कि ओर उठी  है , उसमें भी कमल पुष्प है । यह कमल के आसन पर विराजमान है तथा इनका भी वाहन सिंह है।
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है । यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक मां कात्यायनी का उल्लेख है। स्कंद पुराण में बताया गया है कि मा परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई है। मां कात्यायनी विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन की पुत्री थी। महिषासुर का संहार किया है । जय महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर अत्यंत बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों ने अपने-अपने तेज कांच देकर महिषासुर के विनाश के लिए मां कात्यायनी को उत्पन्न किया था। मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है इनकी चार भुजाएं हैं माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वर मुद्रा में है बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प है इनका वाहन सिंह है।
नवरात्रि के सातवें दिन दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि की पूजा की जाती है। इन्हें मां देवी काली, महाकाली ,भद्रकाली ,भैरवी आदि नाम से भी पुकारा जाता है। माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस भूत प्रेत पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है । यह सभी नकारात्मक ऊर्जामां के आने से पलायन कर जाती है। मां का शरीर घने अंधकार की तरह काला है ।सिर के बाल बिखरे हुए हैं । इनके तीन नेत्र हैं ।मां की नासिका से अग्नि की भयंकर ज्वाला निकलती है । इनका वाहन गर्दभ है । इनके ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ  की वर मुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं ।दाहिने तरफ की नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाला हाथ में लोहे का कांटा और नीचे वाले हाथ में कटार है।
नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है इनकी उपासना से भक्तों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण भी श्वेत है । महागौरी की चार भुजाएं हैं। इनका वाहन वृषभ है। उनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में बर मुद्रा है ।इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।
नवरात्रि के नवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।यह मां सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं इनकी उपासना के उपरांत सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं और सिस्टर में कुछ भी अगम में नहीं रह जाता । मां सिद्धिदात्री की चार भुजाएं हैं। उनके हाथों में गदा, चक्र, शंख एवं कमल है । मां का वाहन सिंह है तथा यह कमल के आसन पर आसीन हैं।
हमारे शरीर में 9 द्वार हैं। 2 आंख ,  दो कान , दो  नाक , एक मुख ,एक मलद्वार , तथा एक मूत्र द्वार। नौ द्वारों को सिद्ध करने हेतु पवित्र करने हेतु नवरात्रि का पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि में किए गए पूजन अर्चन तप यज्ञ हवन आदि से यह नवो द्वार शुद्ध होते हैं।
नवरात्रि हमें यह भी संदेश देती है की सफल होने के लिए सरलता के साथ ताकत भी आवश्यक है जैसे माता के पास कमल के साथ चक्र एवं त्रिशूल आदि हथियार भी है समाज को जिस प्रकार  कमलासन की आवश्यकता है उसी प्रकार सिंह अर्थात ताकत ,वृषभ अर्थात गोवंश , गधा अर्थात बोझा ढोने वाली  ताकत , तथा पैदल अर्थात स्वयं की ताकत सभी कुछ आवश्यक है।

मां दुर्गा से प्रार्थना है कि वह आपको पूरी तरह सफल करें ।आप इस नवरात्रि में  जप तप पूजन अर्चन कर मानसिक एवं शारीरिक दोनों रुप में आगे के समय के लिए पूर्णतया तैयार हो जाएं।
जय मां शारदा।
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