मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन. "मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना

मशहूर शायर राहत इंदौरी का निधन....

  "मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना "

मोहब्बत और बगावत की शायरी के लिए पूरी देश दुनिया मे  मशहूर शायर राहत इंदौरी अब इस दुनिया में नहीं रहे। आज  मंगलवार की सुबह ही उनकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने की सूचना सामने आई थी. दोपहर होते-होते उन्हें दिल का दौरा पड़ा और निधन हो गया. उनको अरविंद हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। 


1 जनवरी 1950 को राहत साहब का जन्म हुआ था. वह दिन इतबार का था और इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ये 1369 हिजरी थी और तारीक 12 रबी उल अव्वल थी. इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई जो बाद में हिन्दुस्तान की पूरी जनता के मुश्तरका ग़म को बयान करने वाले शायर हुए.
लॉकडाउन से पहले तक राहत इंदौरी कई मुशायरों में शायरी करते रहे. उनकी कई पंक्तियां आज भी युवाओं के दिल को छू जाती हैं और इतिहास में दर्ज हो गई हैं.
राहत इंदौरी ने अपनी शायरी और गजलों से कई सरकारों को चेताया है तो बॉलीवुड की कई फिल्मों में गाने भी लिखे हैं.
 कुछ वो शेर  जो हमेशा चर्चा में रहे...

 * एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तों
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो

* बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूं पिला देनी चाहिए

* वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया

* अफवाह थी की मेरी तबियत ख़राब है
लोगों ने पूछ पूछ के बीमार कर दिया

* सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.

* अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए

 दो गज सही मगर ये मेरी मिल्कियत तो है,
ऐ मौत तूने मुझको जमींदार कर दिया

*  मैं जानता हूं दुश्मन भी कम नहीं,
लेकिन हमारी तरह हथेली पर जान थोड़ी है

*  ये बूढ़ी क़ब्रें तुम्हें कुछ नहीं बताएँगी
मुझे तलाश करो दोस्तो यहीं हूँ मैं

* शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे

*  ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़-दार करती रही
कहीं अकेले में मिल जाए तो हिसाब करूँ

*  हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

*  सितारों आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालांकि कुछ नहीं हूँ मैं

* दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए

*  नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है

*  आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो

 * मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना,
लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है.
ये सब धुआं है कोई आसमान थोड़ी है.
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है.
मैं जानता हूं के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है.
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है.
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है.
सभी का ख़ून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

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