कहानी हल्के, नन्हे और उनके लंबे सफर की......
@ब्रजेश राजपूत/ ग्राउंड रिपोर्ट
वो दोनों मुझे ऐसे मिलेंगे सोचा नहीं था। जब दफतर से रात में सड़कों पर चल रहे प्रवासी मजदूरों की कहानी करने को कहा गया तो सोचा कौन मिलेगा अंधेरी रातों में सडकों पर इस तरह चलते हुये। रात गहराते ही हम निकल पडे भोपाल के बाहर विदिशा बाइपास पर। दरअसल ये बाइपास पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र की सीमा से आकर इंदौर से भोपाल, विदिशा, सागर और झांसी या फिर रीवा होकर इलाहाबाद जाने वाले प्रवासी मजदूरों का ही रास्ता बना हुआ था। महाराष्ट्र से लौटकर उत्तरप्रदेश और बिहार जाने वाले प्रवासी श्रमिक इसी रास्ते से लगातार जा रहे थे। सुबह दोपहर तो भोपाल से विदिशा जानेवाला ये मोड महाराष्ट्र खासकर मुंबई से आ रही छोटी बडी गाड़ियों से भरा ही रहता था। ये हम जानते थे मगर रात के अंधेरे में भी इस बाइपास पर जाते हुये लोग मिलेंगे अंदाज़ा नहीं था। मगर ये क्या इस चौराहे पर देर रात में भी महाराष्ट्र वाली गाडियां लगातार आ रहीं थीं। आटो हो या पिकअप वाहन दोनों खचाखच भरे होकर यहां से निकल रहे थे।चौराहे पर हो रही चहल पहल को देख ये लंबा सफर करने वाले रुकते रास्ता पूछते साथ लाया या रास्ते में मिला कुछ खाते नहीं तो पानी पीकर पेट भरते फिर साथ के बच्चों को किनारे ले जाकर शूशू कराते और निकल पडते उस सैकडों किलोमीटर के लंबे सफर पर।
इस मोड पर मुंबई से आ रहे आटो वालों से बात कर जब हम लौट रहे थे तो सुनसान सडक पर किनारे की ओर सडक परबैठी कुछ आकृतियां हमें दिखीं।ड्राइवर संजय को हमने गाडी धीरे करने को कहा और उनके पास पहुंचते ही वो तीन परछाइयाँ हमारी गाडी की खिडकी के पास चिपक कर खडी हो गयीं। मुंह पर बंधा कपडा और पीठ पर लटके बैग से ही लग गया कि ये सब भी वक्त के मारे प्रवासी श्रमिक हैं जो यहां सड़क किनारे गिटटी के ढेर पर बैठे हुये थे। गाडी रूकते ही वो हाथ जोडकर कातर भाव से बोलने लगे भाइ साहब हमें मंडीदीप तक पहुंचा दो हम कई दिनों से चल रहे हैं। इस बीच में, मैं गाडीसे बाहर निकल आया था और उनसे थोडी दूरी बनाकर बातचीत की कोशिश करने लगा। तब तक हमारे साथी होमेंद्र का कैमरा भी चालू हो गया था, हमको हमारी कहानी के किरदार मिल गये थे। क्या नाम है तुम्हारा एक ने कहा हल्के तो दूसरे ने बताया नन्हे। मुझे हल्की हंसी आयी कि दोनों नामों का मतलब भी एक और दोनों की परेशानी भी एक जैसी ही है। मैंने पूछा यहां पत्थरों पर क्योें बैठे हो वहां पास में पेट्रोल पंप है वहां क्यों नहीं रूके हल्के ने कहा भाई साहब पेट्रोल पंप वाले ने डांट कर भगा दिया कहा कि यहां क्यों भीड कर रहे हो।
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ये बात सुनकर मैं हैरान रह गया क्योंकि एक दिन पहले ही बीजेपी के बडे नेता ने उनके मित्र पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान की उदारता का किस्सा सुनाते हुये बताया था कि अब देश के सारे पेट्रोल पंपों पर इन प्रवासी श्रमिकों के रूकने और ठहरने का इंतजाम के आदेश मंत्री जी ने कर दिये हैं। मगर यहां तो उल्टी ही गंगा बह रही थी। थोडी बातचीत से साफ हुआ कि हल्के और नन्हे दो तारीख को अमहदाबाद से रवाना हुये थे और 14 तारीख को मुझे मिले मतलब बारह दिनों से लगातार चल रहे थे। भोपाल अहमदाबाद का छह सौ किलोमीटर का जो रास्ता किसी भी गाडी से दस से बारह घंटे का है उस पर इनको पैदल चलते हुये बारह दिन मतलब 288 घंटे लग गये। इनके पैरों की तरफ जब मैंने देखा तो वहां जूतों की जगह घिसी और टूटी हुयी सी चप्पलें थीं। कैमरे की लाइट में भी इनके पैरों के पंजों पर सूजन दिख रही थी। मैंने कहा अरे ये तो तुम्हारे पंजे सूजे हुये हैं तो हल्के ने अपना पैंट घुटने तक उठाया और कहा भाईसाहब ये देखिये पूरे पैर किसी कदर सूजे हैं। दिन भर बस चलते हैं खानापानी की बात क्या करें रास्ते किनारे छांव तक नहीं मिलती।पैसे तो खत्म हो गये हैं रास्ते में कभी जो मिल गया खा लिया नहीं तो पुलिस वालों की गालियों से ही पेट भर जाता है। पैदल चलते में कभी कोई गाडी वाला थोडी देर के लिये बैठा देता है तो ऐसा लगता है सब कुछ मिल गया।
एबीपी न्यूज़
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तो कब से खाना नहीं खाया तुमने भैया दो दिन हो गये भोजन क्या होता है देखा नहीं। इस बीच में नन्हे का फोन बजता है वो थोडा किनारे जाकर धीरे से कहता है हाँ अम्मा आ जायेगे आज रात तक या कल सबेरे चिंता मत करो अरे खाना भी खा लिया बस अभी थोडी देर पहले खाया। अब चढाई करने की बारी मेरी थी तो यार तुम तो गजब झूठ बोलते हो अभी मुझसे कहा खाना नहीं खाया तो इस पर आंखे भरकर नन्हे कहता है भाईसाहब घर वालों से ऐसे ही बातें करनी पडती है उनको क्यों टेंशन दें अपनी, फिर अचानक वो अपनी शर्ट उठाकर पेट दिखाते हुये बोला ये देखिये हमारा पेट ये क्या आपको खाया पिया दिख रहा है। पिचके पेट वाले इस कम उमर के मेहनतकश युवक की समझदारी ने अब मुझे शर्मिंदा कर दिया।अहमदाबाद की किसी कंपनी में सेरेमिक का काम करने गये ये युवक रायसेन जिले के उदयपुरा के अच्छे परिवारों से थे मंडीदीप में इनके रिश्तेदार रहते थे मगर उनको भी मोटरसाइकिल से यहाँ आने को मना कर रहे थे।
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ये अपने घर पैदल या अपनी सामर्थ से ही जाना चाहते थे। नन्हे ने कहा कि भाईसाब अपनी मुसीबत में किसी दूसरे को क्यों परेशानी दें।
अब ढांढस बंधाने की बारी हमारी थी उनके हाथ में कुछ पैसे देकर कहा चिता नहीं करो अब अपने घर के पास हो तुम। कुछ कदम की दूरी पर ही चौराहा है वहां खाने का इंतजाम भी है और वहीं पुलिस वाले तुमको किसी गाडी में बैठाकर घर तक भेज देंगे। और थोडी देर बाद हमने हल्के और नन्हे को अपने साथी के साथ विदिशा चौराहे पर खाना खाते देखा। अब उनके चेहरे पर सुकून था। वहां खडे हैड कांस्टेबल ने भी हमसे वायदा किया आप चिंता नहीं करिये इन तीन लडकों को हम किसी गाडी में बैठा कर मंडीदीप तक छुडवा देंगे।
ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज
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