कोरोना काल मे शराबबंदी :"धक्का मारो मौका है"..!
@ होमेन्द्र देशमुख, वीडियो जर्नलिस्ट
शराब सरकार की जरूरत है या समाज की ? यह जानना आवश्यक है । शराब बंदी वाले राज्यों में शराब बिकना तो बंद हो गया है पर शराब पीना बंद नही हुआ है । लेकिन शराबबंदी की एक अच्छी बात यह है कि राज्य में अगर शराब अधिकृत रूप से बिकेगा नही तो जनता पब्लिकली इसका सेवन नही कर सकती । अगर वह सेवन परिवहन या शराब पीकर पड़े रहने की शिकायत आएगी तो उस पर एफ आई आर होगी, केस बनेगा और जांच होगी कि इसको शराब मिला कहाँ से । तो पीने वाला और बेचने वाला दोनो अपराधी साबित होगा । उससे उन दोनो पर अवैध शराब पीने रखने परिवहन और बेचने का आरोप लगेगा । वैसे ही जैसे बारूद कहीं पकड़ायेगा तो बेचने वाले को ढूंढा जाता है । उससे पीना बंद नही होगा लेकिन पुलिस के डर से सार्वजनिक पीना कम होगा ।
शराबबंदी की योजना और सरकार का संकल्प तभी पूरा औऱ सफल होगा जब, पहले -इसे लागू करने के साथ कानून में संसोधन भी किया जाय ।
दूसरे - कि पुलिस को अधिकार मिलने के बाद उस पर भी बेलगाम और भ्रष्ट होने की स्थिति और आरोप लगने पर उनको कड़ी सजा का प्रावधान हो । जब तक पुलिस और आबकारी के लोग अवैध शराब पर अंकुश नही लगाएंगे । कोई राज्य शराबबंदी को सफल नही बना सकता ।
छत्तीसगढ़ में पुलिस को अभी भी एक डर समझा जाता है
अगर शराबबंदी होती है तो थाने कचहरी के चक्कर के डर से तीस प्रतिशत लोग शराब पीने से दूर हो जाएंगे । दूसरा काम समाज को करना होगा
शराब के केस में फंसे बन्धु से सामाजिक दूरी की सजा आदि के प्रवधान कर इसे समाजिक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है । तीसरा काम ग्राम पंचायत करे , कि एक बार कोर्ट में शराब के केस में सजा होने पर सरकारी योजना के लाभ से दूर किया जाय । चौथी बात - किसी युवा को शराब के किसी भी केस पर कोर्ट से सजा के बाद नौकरी और व्यावसायिक लोन से दूर या वंचित कर दिया जाय ।
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इन सब उपायों से यह केवल सरकार की नही अपितु समाज की पाबंदी होगी और समाज बचेगा । परन्तु इसकी पहल तो पहले सरकार को ही करनी पड़ेगी । वह शराबबंदी की जिम्मेदारी सामाजिक जागरूकता के झुनझुने को पकड़ाकर अपना पल्ला झाड़ती है यह मात्र बहाना है । मप्र में जब कमलनाथ की कांग्रेस सरकार शराब की उपदुकाने खोल रही थी तब वर्तमान मुख्यमंत्री ने विपक्ष की ओर से कड़ा एतराज दिखाया था । वो शराबबंदी का फैसला समाज की जागरूकता पर छोड़ने की बात कह देते हैं ।
अभी अच्छा मौका था । सरकारों को यह शराबबंदी लागू करना चाहिए था । नए नीलामी नही हुए थे । अगर कहीं हुए भी हों तो इसकी फीस वापसी की जा सकती थी । फाइनेंसियल ईयर की समाप्ति थी । शराबबंदी के 45 दिन का शानदार अनुभव था । कोरोना के फैलाव में शराब की मजबूत भूमिका बन सकती है । यह बहुत बड़ा खतरा है । इस समय इसे बंद करने से सरकार की हर तरफ यहां तक कि स्वास्थ्य से जुड़ी संगठनों और संस्थाएं इन सरकारों की तारीफ भी करती ।
शराबियों से पुलिस परेशान नही होती ये तो इनके लिए कभी कभी बड़े काम के कर्ता भी साबित होते हैं । अवैध की कमाई । अवैध को वैध करने का गणित और तस्करी में कई बार पुलिस के निचले कर्मचारियों की गिरफ्तारी होते रहते हैं पर सह भी पुलिस से ऐसे लोगो को मिलता रहता है । ऐसे आरोप हमेशा लगते रहते हैं ।
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छत्तीसगढ़ की भूपेश सरकार प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी आखिर कब लागू कर पाएगी, इसको लेकर कोई ठोस रणनीति नहीं दिख रही है । कोरोना का lockdown एक अच्छा मौका था जो उसके हाथ से निकल गया । कांग्रेस सरकार की इस ढुलमुल नीति को लेकर प्रमुख विपक्षी दल भाजपा विधानसभा के पिछले साल बजट सत्र के दौरान सदन में सरकार को घेर रही थी
शराबबंदी को लेकर एक तरफ छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार चुप बैठी रही तो वहीं प्रदेश के लोग सबसे अधिक शराब पीने में जुटे रहे ।
छत्तीसगढ़ विधानसभा में पेश किए गए आंकड़ों और कुछ मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में 35 फीसदी से अधिक लोग शराब पीते हैं, जो इस मामले में दूसरे राज्यों से अव्वल है । शराब पीने के मामले में दूसरे नंबर पर त्रिपुरा और तीसरे नंबर पर पंजाब के लोग हैं ।शराब के मामले में छत्तीसगढ़ आबादी में अपने से चार गुना बड़े महाराष्ट्र से भी दोगुनी ज्यादा कमाई कर रहा है ।महाराष्ट्र की आबादी 11.47 करोड़ है, जबकि शराब से कमाई करीब 10546 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है वहीं हमारे छत्तीसगढ़ की आबादी 2.55 करोड़ है और यहां शराब से कमाई साल 2018-19 में लगभग 4700 करोड़ रुपए हुई है । केवल शराब से हुई इस कमाई को आबादी से भाग दें तो छत्तीसगढ़ में शराब की खपत प्रति व्यक्ति 1843 रुपए प्रतिदिन की है । महाराष्ट्र में यह आंकड़ा 919 रुपए प्रति व्यक्ति है, लेकिन यहाँ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने पिछले साल 1अप्रैल से शराब की 50 दुकाने बंद करके अपनी पीठ थपथपवा ली थी ।
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शराबबंदी को लेकर छत्तीसगढ़ बीजेपी, भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार को सदन में घेर रही थी और अब बाजू के मप्र की भाजपा सरकार शराबबंदी को समाज में जागरूकता का काम बता रही है । छत्तीसगढ़ के बीजेपी के ही पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह का कहना है कि कांग्रेस ने अपने जनघोषणा पत्र में पूर्ण शराबबंदी का जनता से वादा किया था, लेकिन उस वादे को वह भूल गई है । सरकार शराब बंद तो नहीं कर रही है, उल्टे 13 .62 करोड़ रुपये की रोज की कमाई को दबा कर मौन साध कर बैठ गई है । बल्कि उल्टे दुकानें बढ़ाने की कोशिश में लगी रही है
छत्तीसगढ़ के आबकारी विभाग के आंकड़ों के हिसाब से प्रदेश में अभी 701 शराब दुकानें संचालित हैं । इनमें से 377 देशी शराब बेचती हैं और 324 दुकानों से विदेशी शराब बेची जाती है । इन दुकानों से लगभग 40 करोड़ का लेनदेन रोज होता है ।
मप्र में प्रतिदिन की कमाई लगभग 30 करोड़ का अनुमान है ।
यह सब तो एक मोटा मोटा अनुमान है । इतने दुकानों के बाद कहीं अवैध या ब्लैक का व्यापार नही होता यह कोई यकीन नही करेगा । अफसरों नेताओं को तोहफों की बतसात भी ऐसे ही अवैध धंधों से होती है चाहे कोई भी राज्य हो । राजनैतिक पार्टियों को चंदे बड़े आयोजनों और बड़े नेताओं के दौरों के समय यही शराब व्यापारी सूटकेस भी पहुचाते हैं । ऐसे में सरकारों और राजनीतिक दलों सहित इन विभागों से जुड़े लोगों के लिए शराब का व्यापार और शराब और शराबी एक चारागाह ही है । मप्र में सरकार और छत्तीसगढ़ में
विपक्षी दल भाजपा के दांत अगर दिखाने के नही तो यह शराब बंदी को लागू करवाने का उसके लिए भी अच्छा मौका है । केंद्र से वह इसके भरपाई के लिए मदद भी ले सकती है । कोरोना का अच्छा बहाना भी है ।
हालांकि 4 मई से छत्तीसगढ़ और 5 मई से मध्यप्रदेश के कई जिलों में शराब की दुकानें खुल रही हैं ।
45 दिन शराब न पीकर जनता ने यह बता दिया है कि 'शराब के बिना वह जिंदा रह सकते हैं ।
लेकिन शराब की दुकानें खोल कर क्या सरकार ने यह बता दिया कि " शराब के बिना सरकार मर जाएगी।
पर देर अभी भी नही हुई है ।
इसलिये सभी शराब के विरोधी दल, समाज, संगठन ,बुद्धिजीवी ध्यान दें..
"धक्का मारो मौका है"
आज बस इतना ही..!
(होमेन्द्र देशमुख, वीडियो जर्नलिस्ट ,एबीपी न्यूज़ भोपाल)
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