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मजदूर दिवस: महान क्रांतिकारी थे मधुलिमये : रघुठाकुर

मजदूर दिवस: महान क्रांतिकारी थे मधुलिमये : रघुठाकुर

भोपाल। देश के समाजवादी नेता  स्व मधु लिमए की 98वीं जयंती लोहिया सदन, भोपाल में मनाई गई ।सर्वप्रथम मधु जी के चित्र पर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संरक्षक श्री रघु ठाकुर ने खादी की माला डाली और उन्हें याद करते हुए कहा कि यह   संयोग है कि आज स्व. मधु लिमये का जन्म दिवस है और आज ही मजदूर दिवस भी है। मधु लिमये का सारा जीवन संघर्ष की कहानी है ।युवा उम्र में हीप्रथम विश्वयुद्ध का विरोध किया व जेल गये।फिर आजादी के आंदोलन में गिरफ्तार हुए व सजा काटी।  फिर गोवा मुक्ति संग्राम में हिस्सेदारी की। गिरफ्तार हुए और पुर्तगाली पुलिस की लाठियों से गंभीर रूप से घायल हुए ।आजादी के बाद वे समाजवादी आंदोलन के अग्रणी पंक्ति के नेता रहे  ।उन्होंने डॉक्टर लोहिया के साथ काम किया और डॉ. राम मनोहर लोहिया को ही अपना नेता आदर्श माना । मधु जी एक नैतिक चरित्र के व्यक्ति थे। आपातकाल में वे छत्तीसगढ़ से गिरफ्तार हुए थे ।उन्हें कुछ दिन रायपुर जेल में रहने के बाद नरसिंहगढ़ जेल भेज दिया गया था। 1976 में तत्कालीन भारत सरकार द्वारा संसद की अवधि 5 वर्ष से आगे बढ़ाने के विरोध में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दिया था तथा अपनी पत्नी श्रीमति चंपा लिमये को संदेश दिया था कि जिस दिन उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है उसी दिन उनके दिल्ली के सांसद निवास से सामान निकाल कर उसे खाली कर दें । ये थी उनके सार्वजनिक जीवन की नैतिकता । अनेक बार सांसद रहे परंतु इतनी बेमिसाल ईमानदारी थी कि उनके पास ना कोई गाड़ी थी ना कोई दिल्ली में मकान था  । 1980 में लोकसभा का चुनाव हार गए परंतु उन्होंने सदैव लोहिया की बात को ध्यान में रखा और राज्यसभा में जाने से इंकार कर दिया। चौधरी चरण सिंह ने उनसे अनेक बार आग्रह किया था कि वे राज्यसभा में जाएं परंतु उन्होंने इंकार कर दिया  । अनेक मजदूर आंदोलनों में उन्होंने हिस्सेदारी की। उन्हें दुनिया की विदेश नीति का गहरा अध्ययन था ।संसदीय ज्ञान में वे श्रेष्ठ थे । उन्होंने सांसद होने की पेंशन नहीं ली।मुझे आज उनकी स्मृति मेंपटनाआयोजितव्याख्यानमाला में लोकतंत्र और मधु लिमये विषय पर बोलना था परंतु लॉक डाउन और गाड़ियों के रद्द होने की वजह से पटना पहुंचना संभव नहीं हुआ।
  आज मजदूर दिवस है परंतु यह ऐसा दौर है कि हम मजदूर दिवस तो मनाते हैं परंतु सर्वाधिक पीड़ित मजदूर है। लॉक डाउन के नाम से लगे बंधनों से देश में विभिन्न राज्यों के लगभग 53 लाख मजदूर लगभग 40 दिनों से विभिन्न महानगरों के घरों में कैद हैं  । न उनके पास पैसा है न मकान मालिक को देने को किराया है और न राशन ।एक प्रकार से भिखारी से भी बदतर जैसी स्थिति है। भारत सरकार ने आर्थिक संकट के नाम पर दो करोड़ कर्मचारियों पेंशन धारियों का डेढ़ वर्ष के लिए महंगाई भत्ते का भुगतान रोक दिया है ।देशके खेतिहर मजदूर भी परेशान हैं। किसान अपनी फसलों को बेचने नहीं जा पा रहे हैं ।

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 एक ऐसा विचित्र संयोग है कि मजदूर दिवस की पूर्व बेला में मजदूरों और कर्मचारियों के आर्थिक और संवैधानिक अधिकार छीन लिये गये हैं या कम किए जा रहे हैं । कोरोना की वजह से पहले से सुस्त पड़ा मजदूर आंदोलन अब बिल्कुल मृतप्राय हो चुका है  । शिकागो की शहादत और मजदूरों के अधिकार भुलाए जा रहे हैं । मजदूर दिवस पर दुनिया के मजदूरों को विचार करना चाहिए क्या ऐसे हालत में दुनिया में मजदूर बचेंगे। अगर मजदूर नहीं रहेगा तो कैसा मजदूर आंदोलन और मजदूर दिवस का क्या औचित्य रहेगा?  विश्व बैंक ने जो दुनिया के लिए गरीबी की सीमा रेखा तय की है उसके आधार पर 10करोड़ 40लाख नये गरीब जुड़ जायेंगे। देश में लगभग 90 करोड़ लोगों को गरीबी भुखमरी का सामना करना होगा। उद्योग धंधे लंबे समय तक शुरू नहीं हो सकेंगे तथा ग्रामीण मजदूर जल्दी वापिस शहरों की ओर नहीं लौटेगा।अमरीका वीजा नीति में बदल कर रहा है तथा इसका सबसे ज्यादा प्रभाव भारतीयों पर पड़ेगा। कई लाख युवाओं के रोजगार  समाप्त हो जाएंगे।बेरोजगारी की दर जो अभी लगभग 8%थी अब बढ़कर 23से30% तक हो जायेगी। गाँव में जो मजदूर लाचारी में जान बचाने को लौट रहे हैं उनके घर तो हैं पर वहां कोई रोजगार नहीं है। परिवारों में विवाद खड़े होंगे। सोशल डिस्टेसिंग ने समाज को परस्पर भयभीत व ऐकान्तिक बना दिया है।देश और दुनियाभर में ऐसी ही स्थिति बनने वाली है। दुनिया भयभीत होकर वैश्वीकरण से वापिस देशीकरण और देश क्रमशः सूबाई करण तथा स्थानीय करण में पहुंच जायेंगे।स्वचालित यंत्र  बड़ी तकनीक और रोबोट कल्चर व एआई का दौर आयेगा। यह अपने आप मे मजदूर मुक्त मशीन युक्त दुनिया बनेगी। अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लगभग 30करोड़ नौकरियां संकट ग्रस्त होंगी। मजदूरों की बकाया मजदूरी तक मिलना मुश्किल होगा।

सागर में फसे उत्तर प्रदेश के मजदूरों को बसों से भिजवाया

लखनऊ से प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने मधु जी की बौद्धिकता का स्मरण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी । देवास से डॉ सीमा सोनी लखनऊ से एस एन श्रीवास्तव दिल्ली से मुकेशजी  प्रो. विनय कुमार सागर से बद्री प्रसाद, राम किशन चौरसिया कांग्रेस नेता रामकुमार पचौरी, बिहार से बीएन सिंह दुलार पत्रकार अहमदाबाद से नरेन्द्र संखालिया, केरल से वर्गीज जी , लखनऊ से दीपक मिश्र , ग्वालियर भिण्ड से शम्भु दयालबघेल श्याम सुंदर यादव ,जयन्त तोमर निसार कुरेशी शेखर जैन रूपेंद्र राणा छ्ग से श्री वंशी श्रीमाली अशोक पंडा श्याम मनोहर जावेदउस्मानी आदित्य मिश्रा राजकुमार अग्रवाल  जबलपुर से पुष्पेन्द्रसिंह शहडोल कटनी से धर्मेंद्र श्रीवास्तव बिंदेश्वरी पटेल प्रदीप पटेल शरमन सोनी रीवा उमेश बारी मुरैना से संजीव राणा राजस्थान से शाहिद खान मुंबई से शेट्टी उत्तम गाड़े  सुभाष मलगी हैदराबाद से गोपाल सिंह श्री बालू उत्तराखंड से श्री रावत भोपाल से डॉ शिवा श्रीवास्तव राम शंकर पुरोहित लालू भाई जान धर्मेन्द्र राणा लक्ष्मी नारायण साहू, कैलाश,  विदिशा से भरत सराठे श्री राम चरण शकील मसर्रत ललितपुर से राघवेंद्र सिंह ब्रज किशोर जैन दिल्ली से अमन खान लखनऊ से श्रीवास्तव कानपुर से अरविंद वाजपेई दयाशंकर शर्मा गणेश सविता केरल से श्री नायर तमिलनाडु से रामास्वामी कोलकाता से श्री नूर अहमद आसाम से के टी पी बारबोरा नागपुर से नन्दू व्यास डॉ ओमप्रकाश मिश्रा छिंदवाड़ा से अनूप सिंह बलिया से संजय सिंह तेजनारायण राय ने वाट्सएप सन्देश से शृद्धाजंलि दी। देश के लगभग 32 स्थानों पर श्रद्धांजलि दी गई।
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