कोविड का हौव्वा आइसोलेशन नहीं कोआपरेशन से मिटेगा.....
@ब्रजेश राजपूत/ ग्राउंड रिपोर्ट
सूनी सडकें, सूने बाजार, सूने पार्क, बंद बस स्टेंड और रूकी हुयी रेल कभी ऐसे भी दिन देखने पडेंगे किसी ने सोचा ही नहीं था। हम कहां मिशन चंद्रयान दो पर हजार करोड रूप्ये खर्च कर अगले साल जाने वाले चंद्रयान तीन की तैयारी कर रहे थे और अब कहां सांसदों के वेतन भत्ते में तीस फीसदी की कटौती के साथ एपीलेडफंड में दो साल तक पैसा नहीं देने की बात कर पीएम राहत कोष के लिये धन जुटाने में लग गये है। वजह कोविड 19 नाम का वाइरस। अब यदि दुनिया है तो ये दुनिया में रहने वालों के दुश्मन भी कम नहीं है। ऐसा ही ये दुश्मन आया है चीन से और फैल गया है पूरी दुनिया पर।
पिछले दो महीने में इसने दुनिया के बाइस लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर डेढ लाख लोगों की जान ली है। वाइरस तो पहले भी आये हैं और हर सीजन में हमें होने वाला वाइरल फीवर भी ऐसे ही वाइरसों से आता है मगर ये वाइरस इतना मारक और भयावह क्यों है तो इसकी वजह यही है कि अभी इसकी दवा टीका नहीं बन पायी है। इलाज क्या होगा ये भी डाक्टर तय नहीं कर पा रहे हैं। इसलिये बैक टू बेसिक्स अपनाते हुये बचाव ही इलाज है के सिदघांत पर दुनिया चल पडी है। वाइरस से बचाव में ऐसे ऐसे शब्द सामने आ रहे हैं जो हमारी पीढी ने कभी सुने नहीं थे। लाकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और क्वेंरेटाइन।
हम सब भूल गये हैं कि हमारे देश के मुकुट मणि कश्मीर घाटी में पिछले आठ महीने यानिकी 253 दिनों से लाकडाउन चल रहा है, बाकी देश के लिये ये अब खबर नहीं है मगर ऐसे ही लाकडाउन की चपेट में अब जब हम सब आये हैं तो समझ रहे हैं कि लाकडाउन क्या होता है और उसकी तकलीफें क्या हैं। अपने आपको सीमित साधनों के दम पर घरों में बंद रखना ही लाकडाउन हैं। लाकडाउन करने का मकसद अलग अलग है मगर पीडा एक सी होती है। छुटटी है पर निकलना मना है। अपार वक्त है मगर बिताना घर पर ही है। घर में खाना नहीं है मगर बाहर जाना मना है। लाकडाउन किसी सजा से कम नहीं हैं मगर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के शब्दों में कहें तो इस चीनी वाइरस ने दुनिया के कई देशों के नागरिकों को लाकडाउन में डाल दिया है। ये वाइरस जानलेवा कम मगर आसानी से फैलने वाला बहुत है। वाइरस की लोंग़ों को मारने की क्षमता नये ब्रिटिश अध्ययन के मुताबिक दो प्रतिशत ही है यही वजह है कि शनिवार के आंकडों को देखें तो दुनिया भर में साढे बाइस लाख संक्रमितों में से डेढ लाख लोग मरे हैं तो छह लाख से ज्यादा ठीक होकर घर भी लौटे हैं। मगर ये वाइरस ऐसे फैलता है कि जाने अंजाने में लोग एक दूसरे को बीमारी बांटते रहते हैं और बीमारी भी ऐसी कि अधिकतर लोगों में इस बीमारी के संकेत नहीं आते। ना सर्दी ना खांसी और ना ही बुखार। ऐसे में बीमार व्यक्ति को तो अलग थलग रखा ही जाता है उसके घर परिवार पडोसी और जिससे मिला है उसको भी जिस अमानवीय तरीके से अलग थलग रखा जाता है या क्यूरेंटीन किया जाता है उससे ये फलू की बीमारी किसी आतंकी गतिविधी में लिप्त होने से कम नहीं लगती।
जब भोपाल में बीस तारीख को हुयी पत्रकार वार्ता में शामिल होने पर शहर के पत्रकारों को जिनमें मैं भी शामिल था क्यूरेंटीन करने की कोशिश हुयी तो उनके घर स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम और कैमरे लेकर पुलिस टीम पहुंची। मोहल्ले के लोगों ने सोचा कोई अपराध कर बैठे हैं आज हमारे पत्रकार महोदय।
एबीपी न्यूज़
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यही हाल इंदौर में हुआ शहर के जिन इलाकों से कोरोना संक्रमित लोग पाये गये उनको और उनके परिजनों को इस तरीके से ले जाने की कोशिश हुयी कि टकराव की नौबत आ गयी। मोहल्ले के लोगों ने विरोध किया और ऐसी खबरें बनीं कि एक शांतिप्रिय शहर को बदनामी मिली। बेहतर होता दलबल के साथ घरों से ले जाने से पहले उन सबकी काउंसलिंग की जाती उन सबको बीमारी के तेजी से फैलने के कारण समझाये जाते। वो तो छोटे इलाके के कम पढे लिखे लोग थे भला कैसे इस नयी बिना संकेतों वाली बीमारी और उसकी भयावहता को जानते जब भोपाल के सतपुडा से लेकर वल्लभ भवन में बैठने वाले स्वास्थ्य विभाग के बेहद पढे लिखे अफसर इस बीमारी की गंभीरता नहीं समझ सके। भोपाल में स्वास्थ्य विभाग के चार आईएएस अफसर सहित नब्बे से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हुये मगर उनको उस तरीके से नहीं अस्पताल या क्यूरेंटीन किया गया जैसे इंदौर से लेकर दूसरी जगहों पर कार्रवाई हो रही है। पत्थरबाजी कर विरोध करने वालों पर रासुका लगाकर दूसरे जिलों में भेजा जा रहा है बिना ये समझे कि ये सब जहाँ जायेगे बीमारी फैलायेगे। जब ये बात एसपी कलेक्टर और मजिस्ट्रेट नहीं समझे तो टाटपटटी बाखल वालों से क्यों बडी उम्मीद करते हैं हम। कमजोरी हमारे प्रशासन की है जो हर मर्ज की दवा अपने डंडा में देखती है। इन दिनों बीमारी छिपाने पर भी पुलिस केस दर्ज उस व्यक्ति पर केस कर रही है जिसे खुद नहीं मालूम की उसे बीमारी है.
एक और अजीब रवायत चल पडी है ।
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आइसोलेशन यानिकि अलग थलग रहने को कोरोना से बचाव बताया जा रहा है मगर यहां आइसोलेशन की नहीं कोआपरेशन की जरूरत है। हम आपस में सहयोग करें, टेस्टिंग करवाये और बीमार होने वाले को अस्पताल पहुंचवायें। बीमार व्यक्ति के परिजनों का ख्याल भी आसपास रहने वाले को रखना है। वरना वो कहां जायेगे। इस आइसोलेशन के मंत्र के कारण बीमार व्यक्ति के परिवार से अमानवीयता वाली छुआछुत बरती जा रही है घरों में दूध सब्जी तक नहीं जाने दी जा रही है। इस बीमारी से ऐसे नहीं जीतेगे। वाइरस जो आयेगा चला जायेगा मगर बीमारी के दौरान लगे ये जख्म जिंदगी भर नही भरेंगे।
ब्रजेश राजपूत, एबीपी न्यूज, भोपाल
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