मातृशक्तियों ने पर्यावरण संरक्षण हेतु होली में कंडे जलाने का लिया संकल्प
सागर।भारतीय शिक्षण मंडल महिला प्रकल्प की मातृशक्तियों द्वारा होली के अवसर पर कंडों की होली जलाने का संकल्प लिया।ताकि जंगलों को बचाया जा सके। पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया जा सके। इस अवसर पर महिला प्रकल्प की बहिनों ने एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं दी।डॉ ऊषा मिश्रा, डॉ ज्योति चौहान, डॉ संगीता सुहाने, श्रीमती संध्या दरे, डॉ सरोज गुप्ता, श्रीमती जयंती सिंह, सुश्री मनोरमा गौर, श्रीमती स्मिता गोडबोले, श्रीमती शैलबाला सुनरया, श्रीमती राजश्री दवे, श्रीमती पुष्पलता पांडे, श्रीमती दिव्या मेहता, श्रीमती नन्दिनी चौधरी, श्रीमती शशि दीक्षित आदि मातृशक्तियों ने अपने बचपन के होली मनाने के संस्मरण सुनाए तथा होली पर्व पर अपने विचार व्यक्त किए।
बसंत ऋतु में मनाया जाने वाला होली का त्यौहार ऐसा रंगबिरंगा पर्व है जो हमें मिलजुल उत्साह और मस्ती के साथ जी भरकर जीने तथा खुश रहनासिखाता है।इस त्यौहार को हर धर्म के लोग मनाते हैं। प्यार भरे रंगों से सजा यह पर्व हर धर्म, संप्रदाय, जाति के बंधन खोलकर भाई-चारे का संदेश देता है। इस दिन सारे लोग अपने पुराने राग द्वेष,गिले-शिकवे भूल कर आपस में एक-दूसरे के गले मिलते हैं और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। बच्चे, बूढ़े और युवा रंगों से खेलते हैं। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाले इस त्यौहार के साथ अनेक किंवदंतियां कथाएं जुड़ीं हैं। बुराई पर अच्छाई की विजय इस पर्व की विशेषता व उद्देश्य है। एक लोकप्रिय पौराणिक कथा है कि भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप नास्तिक व स्वयं को भगवान मानते थे। जबकि प्रह्लाद आस्तिक व विष्णु भक्त था। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति करने से रोका जब वह नहीं माना तो उन्होंने प्रह्लाद को मारने का प्रयास किया।हर बार प्रह्लाद की ईश्वर ने रक्षा की।प्रह्लाद की बुआ होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। पिता ने आखिर अपनी बहिन होलिका से मदद मांगी। होलिका अपने भाई की सहायता करने के लिए तैयार हो गई। होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता में जा बैठी परन्तु विष्णु भगवान की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहे और होलिका जल कर भस्म हो गई ,बस इसी दिन से होली मनायी जाने लगी। होली के आठ दिन पहले से इस की तैयारी शुरू हो जाती है । होलिकाष्टक से गोबर के गोल बरबूले - कण्डे छेद करके सुखाते हैं फिर माला बनाकर सामूहिक होली जलाने के बाद घर पर होली जलाने की परंपरा है। रंग की होली मनाने के एक रात पहले होलिका को जलाया जाता है। अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं। यह त्योहार मदनोत्सव के रुप में रंगों का त्यौहार है।बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठाते हैं। ब्रज की होली, मथुरा की होली, वृंदावन की होली, बरसाने की होली, काशी की होली पूरे भारत में मशहूर है।एक-दूसरे के घर जाकर शुभकामनाएं देते हैं।आपसी बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते हैं। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुझिया आदि बनाती हैं व खिलाती हैं। कई लोग होली की टोली बनाकर निकलते हैं उन्हें हुरियारे कहते हैं।पद्माकर और ईसुरी बुन्देलखण्ड के उत्सवधर्मिता के कवि हैं जिन्होंने होली का अद्भुत वर्णन किया है। बसन्त व होली का त्यौहार इनकी रचनाओं के बिना अधूरा है।
'फाग के भीतर अभीरन तें गहि गोविंद ले गई भीतर गोरी।
नैन नचाय कहयो मुस्काय लला फिर आइयो खेलन होरी।'
बुन्देलखण्ड के कवि ईसुरी की फागें भी प्रसिद्ध हैं।पर्व व त्यौहार हमारी सभ्यता व संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग हैं इनका संरक्षण व पवित्रता बनाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।
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