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संसदीय कार्यशाला-वर्तमान में चौथा स्तम्भ मीडिया मजबूती से उभरा

संसदीय कार्यशाला-वर्तमान में चौथा स्तम्भ मीडिया मजबूती से उभरा
सागर।  शासकीय स्वशासी कन्या स्नातकोत्तर उत्कृष्टता महाविद्यालय, सागर में आज पं. कुंजीलाल दुबे प्रथम विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा प्रदान की गई राशि से संसदीय प्रक्रिया एवं पद्धति कार्यक्रम आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि पूर्व विधायक  सुनील जैन विषय विशेषज्ञ डाॅ. बी.डी. अहिरवार प्राचार्य शासकीय महावि. जबेरा विशिष्ट अतिथि श्रीमती विधि सक्सेना अपरात्र न्यायधीश जिला सागर विधिक सेवा प्राधिकरण सागर विषय विशेषज्ञ सर्वेश्वर उपाध्याय प्राध्यापक डाॅ. हरीसिंह गौर महावि. सागर उपस्थित हुए। कार्यशाला के उद्धेश्य एवं प्रारूप बताते हुए डाॅ. सुनीता त्रिपाठी ने कहा कि कुंजीलाल दुबे विद्यापीठ 24 मार्च 1998 में विद्यार्थी को विद्यापीठ की स्थापना की गई। संसदीय जानकारी प्रदान करने के उद्धेश्य से की गई ताकि भविष्य में जो बच्चे राजनीति में जाए वे समस्त जानकारी के साथ वहाॅ प्रतिनिधित्व करे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि  सुनील जैन पूर्व विधायक एवं उद्योगपति ने छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा वर्तमान में चैथा स्तंभ मीडिया के रूप  में बहुत मजबूती से उभरा है। दिनभर चलने वाली न्यूज को न्यायपालिका, विधायिका या कार्यपालिका नजर अंदाज नहीं कर पाती एवं कार्यवाही आवश्यक हो जाती है। विशिष्ठ अतिथि श्रीमति विधी सक्सेना विधिक सेवा प्राधिकरण जिला न्यायालय ने संबोधित करते हुए कहा कि यह आयोजन न्यायपालिका से भी संबंधित है। संविधान का अनुछेद 32 एवं 226 को तहत यह उत्तरदायित्व दिया गया है कि मौलिक अधिकारों की रक्षा करें। संविधान एक ऐसी मातृ पुस्तक है, वह सभी धर्मों को समदृष्टा की भांति देखती है। संविधान 39। कहता हैकि उन लोगों तक न्याय पहुँचाएँ जिन तक कोई नहीं पहुँचता। उनके लिए सुलभ न्याय हेतु 1987 में कानून बनाया गया। न्यायालय की समाज में फिल्मों से एक अलग इमेज बनाई है। वास्तव में न्यायालय आपकी समाज का अंग है एवं सामान्य रूप से कार्य करता है। एक लाख से कम वार्षिक आय प्राप्त करने वाले लोगों को न्याय हेतु संविधान के भा 3-51। से प्राप्त होती है। कतव्र्य की पूर्ति इमानदारी से करने पर अधिकार स्वतः प्राप्त होते हैं। 2012 में निर्भया कानून बना जो बच्चियों की सुरक्षा कर सके। इसके साथ  इसकी खामी को पूरा करने के लिए 2018 में म.प्र. शासन ने और कानून बनाया तथा दो कोर्ट ऐसे ही मामलों के लिए बनाए गए।
डाॅ. सर्वेश्वर उपाध्याय विषय विशेषज्ञ ने कहा संसदीय व्यवस्था का मूल मंत्र जागरूकता में निहित है। डाॅ. अंबेडकर जी के अनुसार इसमें जवाबदेहिता की अधिकता के कारण अपनाई गई। लोकतंत्र में दो प्रकार की शासन व्यवस्था है। संसदीय एवं अध्यक्षीय व्यवस्था अफ्रीका, फ्रांस एवं अमेरिका में अध्यक्षीय एवं लगभग शेष भारत में संसदीय व्यवस्था है। जो सरकारें निर्वाचित हो एवं बहुमत प्राप्त करें, उन्हें सत्ता के मद में अपना मेनीफेस्टो भूलना नहंी चाहिए। अपना दायित्व हेतु जवाबदेही अवश्य होना चाहिए। दिल्ली की हिंसा पर चर्चा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के तहत की जा रही है। ध्यानाकर्षण में आपातकालीन मुद्दों पर चर्चा की जानी है। डाॅ. बी.डी. अहिरवार 1996 के बाद भारत का राजनीतिक परिदृश्य बदला है। अब सरकारें बहुमत में आकर अपना कार्यकाल पूर्ण कर रही है। यह प्रजातंत्र का शुभ संकेत है। इसलिए व्यवस्था ही सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है। सभी चार सत्रों के प्रश्न लगवाने हेतु 22 दिन पूर्व प्रश्न लगाना होता है एवं लाटरी प्रक्रिया से प्रश्न लगाया जाता है। 1862 में ही हमारे देश में संसदीय प्रक्रिया का प्रारंभ हो चुका था। कार्यक्रम की अध्यक्ष एवं संरक्षक डाॅ. इला तिवारी ने कहा कि विषय विशेषज्ञ ने आपको विस्तृत जानकारी प्रदान की। यह विषय प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ा एवं संवेदनशील है तथा भविष्य की राजनीतिक पीढ़ि को यह व्यवहारिक ज्ञान उन्हें दिशा देगा एवं भविष्य के लिए तैयार करेगा। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. रजनी दुबे, प्राध्यापक राजनीति शास्त्र ने किया एवं आभार राजनीति शास्त्र. की विभागाध्यक्ष डाॅ. सुनीता त्रिपाठी ने माना।
डाॅ. आशा पाराशर, डाॅ. रेखा बख्शी, डाॅ. पद्मा आचार्य, डाॅ. मोनिका हर्डिकर, डाॅ. सुनीता सिंह, डाॅ. निशा इन्द्र गुरू, डाॅ. अंजना नेमा, डाॅ. रश्मि दुबे, डाॅ. प्रतिमा खरे, डाॅ. डी.के. गुप्ता, डाॅ. नरेन्द्र सिंह ठाकुर, डाॅ. सुनील श्रीवास्तव, डाॅ. भावना यादव, डाॅ. अंशु सोनी, डाॅ. अपर्णा चाचैंदिया, डाॅ. शक्ति जैन, डाॅ. रश्मि मलैया, डाॅ. भावना रमैया, डाॅ. अरविन्द बोहरे, डाॅ. दीपा खटीक, डाॅ. नीतेश ओबेराइन, डाॅ. कुलदीप यादव मौजूद थे।

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