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वर्तमान परिप्रेक्ष्य और राष्ट्रीय विकास में सामाजिक सदभाव की प्रासंगिकता

वर्तमान परिप्रेक्ष्य और राष्ट्रीय विकास में सामाजिक सदभाव की प्रासंगिकता

सागर।भारतीय शिक्षण मंडल - महिला प्रकल्प की "कस्तूरी मंडल " की संयोजक श्रीमती दिव्या मेहता के निवास पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसका विषय --वर्तमान परिप्रेक्ष्य और राष्ट्रीय विकास में सामाजिक सदभाव की प्रासंगिकता रखा गया। श्रीमती पुष्पलता पांडे ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि शांति, धैर्य और सहिष्णुता ही सही मायने में आपसी सद्भावना को परिभाषित करते हैं । जो हमारे देश के संस्कारो में शामिल है। हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक वैमनस्य : आखिर कब तक और क्यों??यह प्रश्न आज हम सबके सामने है।हम और हमारे भाई-बंधु इस समस्या से सदियों से पीड़ित रहे हैं। डॉ सरोज गुप्ता ने कहा कि फूट डालो और शासन करो की नीति दर्शाया धर्म के आधार पर भारत पाक विभाजन हमारे सामने है।पन्द्रहवी शताब्दी से ही संतों, सूफियों जैसे कबीर , गुरुनानक,जायसी रहीम,रसखान आदि ने साम्प्रदायिक समस्या हेतु सेतुबंध का कार्य किया है।"अरे इन दोऊन राह न पायी"कह कबीर ने दोनों को फटकारा है। आज समस्या वहीं के वहीं है।इस समस्या का सबसे कारगर उपाय है कि हम-सब मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर धर्म निरपेक्षता की सच्ची भावना जागृत करें। एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का आदर करते हुए सद्भावना को सार्वजनिक जीवन में स्थान दें। श्रीमती कृष्णा गुप्ता जी ने कहा कि भारत देश  बसुधैवकुटुम्बकं के लिए सारे विश्व मे जाना जाता है । यहाँ तो सद्भावना जन जन की प्रकृति में व्याप्त है । श्रीमती सुनीता जड़िया ने कहा भारत में हम वर्षो से आपसी सद्भावना  के साथ एवं सभी धर्मों के लोग प्रेम पूर्वक रहते आ रहे हैं ।श्रीमती स्मिता गोडबोले जी ने कहा कि हमें आंख कान खोलकर रखना चाहिए एवं शब्द शक्ति का बहुत विवेक पूर्ण तरीके से इम्तेमाल में लाना चाहिए । हमें अपनी तर्कशक्ति को धार दार बनाना चाहिए । श्रीमती मीनाक्षी ठाकुर ने अपने विचारों को रखते हए कि कहा जब हम  प्रगतिशील देश के नागरिक हैं ,तो हमें सद्भावना का माहौल पहले स्वयं से ही निर्मित करके चलना पड़ेगा। श्रीमती आराधना रावत जी ने कहा कि जिस भावना से माँ अपने बेटे की ,डॉ- एक मरीज की ,शिक्षक- अपने शिष्य की निःस्वार्थ भावना से सेवा करते है देखा जाए तो उसमें सद्भावना ही व्याप्त है। श्रीमती इंदु चौधरी जी ने कहा कि देश ज्वलंत समस्या से जूझ रहा है। कोई भी शुरूआत हम स्वयं से ही करें न कि दूसरों से अपेक्षा करें। श्रीमती पूनम साहू ने कहा कि जिस तरह हम अपने परिवार में सद्भावना के साथ रहते हैं हमें अपने समाज और देश के प्रति उसी भावना को लेकर ही चलना पड़ेगा । श्रीमती संध्या दरे ने कहा कि हम सभी को जमीनी स्तर पर इस प्रयास में जुटना पड़ेगा कि हमारा कोई भी कदम  समाज और राष्ट्र की शांति एवं सद्भावना में बाधक न बने। श्रीमती प्रतिभा नेमा जी ने कहा की भारत देश की सारे विश्व में आपसी भाईचारे की भावना की मिसाल दी जाती है इसे अक्षुण्ण बनाये रखने का दायित्व अब हम सबका  है। श्रीमती अनिता चौधरी जी ने कहा कि भारत देश में सभी धर्मों का सम्मान होता है इसमें आपसी सद्भावना के दर्शन होते हैं। श्रीमती दिव्या मेहता जी ने कहा कि हमें अंधानुकरण से बचना चाहिए कि कोई सामने वाला गलत करता है तो हम भी गलत करें। विवेक से जन धन की हानि को देखते हुए गलत कार्य बिल्कुल भी न करें । बल्कि आपसी प्रेम भाव से संभव हो तो सामने वाले को समझाएं । परिचर्चा में श्रीमती आरती तिवारी, श्रीमती वंदना ठाकुर , श्रीमती गायत्री पाठक आदि बहिनों ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किये ।संगठन मंत्र के साथ परिचर्चा का समापन हुआ। श्रीमती दिव्या मेहता जी ने सभी का आभार व्यक्त किया 
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