वो आपकी चाय में छुपी चाह.....अलविदा राजूभाई गर्ग
@प्रवीण पांडे
राजू भाई गर्ग तीन बत्ती पर खड़े हों और मित्र मंडली (पत्रकार) चाय की चुस्कियां न लें, ऐसा कभी नहीं हुआ। जब भी एकत्र हुए (अधिकांश रोज़ शाम को) राजू भाई खुद ही मोहन या राकेश (चाय वाले) को आवाज देते और चाय हाजिर हो जाती। यहां तक कि जिस किसी मित्र की इच्छा होती वह चाय का आर्डर खुद कर देता लेकिन यह अंडरस्टुड रहता कि बाद में चाय का पेमेंट राजू भाई ही करेंगे। दरअसल राजू भाई पर मित्र यह अधिकार समझते थे कि वह बड़े भाई समान है और उन पर हमारा भी कुछ हक है। राजू भाई ने भी मित्रों को यह अधिकार दे रखा था। कुछ लोगों को यह बात हल्की लग सकती है, पर इस चाय के पीछे छुपी चाह का एहसास केवल मित्र ही कर सकते हैं। उनकी चाय और चाह दोनों से अब हम सभी वंचित हो गए। वास्तव में चाय तो बहाना था मित्रों के बीच मेल मिलाप, गपशप और आपसी सुख-दुख के अलावा शहर हित की चर्चा ही मुख्य उद्देश्य होता था। अब जब भी चाय के दौर चलेंगे राजू भाई आपकी चाह बहुत याद आएगी। राजू भाई एक रफ टफ किस्म के इंसान थे। जिंदगी का हर तरह से आनंद लेने में यकीन रखते थे।
एक साधारण चाट व्यवसाई के यहां जन्मे राजू भाई के जीवन में संघर्ष भी बहुत रहा। सुबह 5:00 बजे उठकर अपने व्यवसाय की सारी तैयारियां 9:00 बजे तक कंप्लीट करके दिन भर के लिए दूसरे कामों के लिए फुर्सत हो जाते थे। अमर टॉकीज के सामने सजा धजा चाट का ठेला सबसे पहले उन्हीं ने शुरू किया था। उनके हाथ से बनी शुद्ध घी की चाप जिन लोगों ने खाई है वे आज भी उसका स्वाद बता सकते हैं। बहुत कम लोग जानते होंगे कि विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति में खूब सक्रिय रहने वाले राजू भाई को हमेशा यह मलाल रहा कि वे विश्वविद्यालय के विद्यार्थी कभी नहीं रहे। डॉ हरिसिंह गौर के प्रति उनकी अटूट श्रद्धा थी। डॉ गौर जयंती अथवा पुण्यतिथि के कार्यक्रम की चिंता उसी तरह करते थे जिस तरह कोई अपने घर के कार्यक्रम के लिए चिंतित होता है। छात्र राजनीति के साथ ही वे कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने कोई पद नहीं लिया पर वह स्व. विट्ठल भाई पटेल के साथ जुड़ गए। स्व. पटेल द्वारा चलाए गए जन जागरण सफाई अभियान में राजू भाई गर्ग की महती भूमिका रही। बाद में विट्ठल भाई से उनके मतभेद हो गए तो दोबारा उनकी चौखट पर नहीं गए। यहां तक कि स्पूतनिक अखबार में छपे उनके बयान को लेकर विट्ठलभाई ने उनके ऊपर मानहानि का केस कर दिया था। तब भी उन्होंने माफी नहीं मांगी और अंत तक केस लड़ते रहे। स्व श्री माधवराव सिंधिया ने जब विकास कांग्रेस बनाई तो सिंधिया के सागर दौरे के समय राजू भाई ने तीन बत्ती पर उनका भव्य स्वागत किया था। बाद में गोविंद राजपूत ने उन्हें पद की पेशकश की थी लेकिन उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। पूर्व सांसद आनंद अहिरवार के चुनाव में राजू भाई ने किस तरह मदद की थी वह आज भी आनंद भाई बताते हैं। कांग्रेस से मन भर गया तो कुछ साल पहले तत्कालीन मंत्री भूपेंद्र सिंह की पहल पर उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली थी। पर वे भाजपा में सक्रिय कभी नहीं रहे। राजनीति से मोहभंग हुआ तो नेताओं के जन्मदिन पर लगने वाले पोस्टरों से इतने चिड़ गए कि एक कुत्ते का जन्मदिन मनाने का पोस्टर लगवा दिया। आस्था संस्था बनाई और उसके बैनर तले डॉक्टर जी.एस. चौबे के साथ मिलकर स्वास्थ्य शिविर लगवाए। इन शिविरों में मरीजों की सेवा में ऐसे लग जाते थे कि कोई घर का बीमार हो गया हो। नवरात्रि आती तो एकता काली कमेटी के सदस्यों के साथ मां की सेवा में जुट कर बाकी सब भूल जाते। उन्होंने बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा भी चलाया। 1984-85 में जब सागर में सूखा पड़ा तो लाखा बंजारा झील का बड़ा भाग सूख गया था। झील की दुर्दशा पर सरकार और लोगों का ध्यान आकृष्ट कराने के लिए राजू भाई ने सूखे तालाब में क्रिकेट मैच और राई नृत्य जैसे आयोजन करवा कर अपनी अलग सोच और सामाजिक सरोकार के प्रति जबरदस्त प्रतिबद्धता जाहिर की थी। वे शौकीन भी बहुत थे। आशिक मिजाजी के बारे में मित्र अच्छी तरह जानते हैं। यार बाजी में उनकी होली पार्टी तो मशहूर थी ही।
उनकी स्मृति को नमन।
विनम्र श्रद्धांजलि
प्रवीण पाण्डेय की फेसबुक वाल से
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