भारतीय वैदिक परम्पराओ ने मानव समाज को एक जीवन शैली दिया:प्रो सुरेंद्र पाठक

भारतीय वैदिक परम्पराओ ने मानव समाज को एक जीवन शैली दिया:प्रो सुरेंद्र पाठक

#वैदिक प्रबुुद्धता एवं समकालीन समाज पर व्याख्यान

सागर। स्वदेशी ज्ञान अनुसंधान केन्द्र एवं मानव विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वाधान में जवाहरलाल नेहरू पुस्तकालय, डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर में वैदिक प्रबुद्धता एवं समकालीन समाज विषय पर केन्द्रित विशेष व्याख्यान का शुभारम्भ प्रमुख वक्ता प्रो. सुरेन्द्र पाठक, प्रोफेसर, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, गुजरात, अध्यक्षता प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी, कुलपति, डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, प्रो. आर. पी. मिश्रा, अधिष्ठाता, व्यावहारिक विज्ञान अध्ययनशाला एवं प्रो. के. के. एन. शर्मा, प्रभारी, स्वदेशी ज्ञान अनुसंधान केन्द्र, विभागाध्यक्ष, मानव विज्ञान ने माँ सरस्वति एवं डाॅ. गौर की प्रतिमा पर माल्यार्पण दीप प्रज्वलन करके किया। 
मुख्य वक्ता प्रो. सुरेन्द्र पाठक ने वैदिक प्रबुद्धता एवं समकालीन समाज विषय पर केन्द्रित व्याख्यान में कहा कि वैदिक संस्कृति चार वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, श्रुतियाँ, नीतिशास्त्र, दर्शन, षष्ठ दर्शन, सांख्य, मीमांसा तत्व, मीमांसा आदि यह ऋषियों के अनुसंधान करके निकाला, जिन्हें स्मृति कहते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय वैदिक परम्पराओं में ऐसे अनेक विराट खण्ड जिन्होंने मानव समाज को एक जीवन शैली दिया है। उन्होंने सम्बोधित करते हुए कहा कि योग आयुर्वेद की आवश्यकता तब महसूस हुई जब मानव समाज असंतुलित एवं नियंत्रित हो गया। आज हम भौतिकता की दौड़ में सुखी समझते है, उसे अपनी सम्पत्ति मानने लगते हैं, जबकि यह सब क्षणिक है। जीवन में भौतिक सुख है परन्तु शान्ति नहीं है। इसका मुख्य कारण है हमने अपने मूल्यों, नैतिकता, आचरण, संस्कार जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को छोड़ दिया। 
उन्होंने कहा कि मानव समाज ने भौतिकता की दौड़ में प्रकृति को असंतुलित कर दिया। हमने प्रकृति को असंतुलित करके अपनी जीवन शैली को संतुलित नहीं रखा तो हम विज्ञान विहीन हो जायेंगे। जैसे खाद्यान्न, हवा, पानी शुद्ध नहीं है। उत्पादन को महत्व देकर अव्यवस्था को पैदा कर दिया। मानव के क्रियाकलाप से व्यवस्था टूटती हो और अव्यवस्था बने, यह विवेक नहीं है और विज्ञान नहीं है। आज अमेरिका, स्विटजरलैंड में परिवार व्यवस्था टूट गई है। अमेरिका में एकल परिवार 50 प्रतिशत हो गये। प्राचीनकालीन परिवार व्यवस्था वैदिक व्यवस्था थी, जो मनुवाद पर आधारित रहा है, परन्तु समकालीन समाज बनाने की व्यवस्था में भ्रम उत्पन्न हुआ, जिसे समझ नहीं पाये। उन्होंने कहा कि आज सभी को किसी पर विश्वास नहीं रहा। परिवार में आस्था नहीं, तो संविधान पर आस्था कैसे होगा। संविधान विश्वास का दस्तावेज है, जिससे सामाजिक, आर्थिक न्याय पाने की स्वतंत्रता पाना चाहते थे, क्या प्राप्त कर पाये। उन्होंने वैदिक शोधार्थियों एवं अध्यापकों से कहा कि हमारी कहाँ त्रुटि हुई। इस पर शोध की आवश्यकता है। हमें मानवीय ध्रुव को पहचानने की आवश्यकता है। वैदिक प्रबुद्धता केवल हिन्दुओं के लिए नहीं था। उन्होंने कहा कि ऋषि कपिल, गौतम, कणाद, पतंजलि, शंकराचार्य ने सर्व मानव समाज के विकास के लिए किया। पश्चिम का भौतिकवाद का अनुसंधान तो हुआ तथा निष्कर्ष निकले। भौतिकवाद के कारण मानव का आचरण एवं सभ्यता क्यों परिवर्तित एवं अनियंत्रित हो गई। उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे, पक्षियों के आचरण निश्चित हैं, परन्तु मानव एक ऐसा प्राणी है जिसका आचरण अनिश्चित हो गया। वेद विज्ञान के रूप में आचरण के अनुसार चल रहा है। शरीर का एक ताप है। यदि हम अपने दिनचर्या को बिगाड़ते हैं तो रोगी हो जाते हैं। आधुनिकता ने प्रकृति से छेड़छाड़ किया है। इससे असंतुलन पैदा हो गया है। इससे पृथ्वी तबाह हो सकती है। अभी परिवार को तबाह किया है। व्यक्तिवाद बढ़ रहा है। अनैतिकता प्रतिष्ठित हो रही है। वैचारिक प्रतिबद्धता होनी चाहिए। समाज अव्यवस्था की ओर जा रहा है। क्या यह ज्ञान या अज्ञानता है। ज्ञान का विस्तार हो रहा है, परन्तु जीना कठिन हो रहा है। अध्यापकों को शिक्षा के मूल्यों, चरित्र, आचरण जैसे विषयों पर पुनः विचार कर समकालीन समाजा की चुनौतियों को उनकी समस्या का समाधान करना पडे़गा। उन्होंने कहा कि वह व्यवस्था समाधान है, जिसमें सुख है। अव्यवस्था दुख है। लाहुमान्दी, भोगोन्मादी अस्थिरता है। प्रेम वासनाओं में उजागर हो रहा है। जबकि वैदिक दर्शन में ऐसा नहीं था। व्यक्ति, परिवार, समाज एवं राष्ट्र को एक व्यवस्था में जीना चाहते हैं, परन्तु हमारी समझ लोकव्यापीकरण, शिक्षा में नहीं कर पा रहे हैं। शिक्षाविदों को चाहिए कि बौद्धिक प्रबुद्धता से प्राप्त ज्ञान को समकालीन समाज के समस्याओं के समाधान दे सकें। ऐसा निदान करना चाहिए। 
अध्यक्षता कर रहे प्रो. राघवेन्द्र प्रसाद तिवारी, कुलपति ने कहा कि आज तक विश्वविद्यालय में ऐसे विशेष विषयों से जुड़े मनीषियों को आमंत्रित करके उनके द्वारा किये गए शोध को अनुभवों को विशेष व्याख्यानों के माध्यम से छात्रों, शोधार्थियों और शिक्षकों को शोध की ओर प्रेरित करना है। उन्होंने बताया कि गणित विभाग में, संस्कृत विभाग में प्रमुख व्याख्यानों को संग्रहीत करके उन पर वैज्ञानिक पक्षों का भी अध्ययन कराया जा रहा है जिस पर यू.जी.सी. के द्वारा पदों की भी स्वीकृति दी गई है। इसके लिए स्वदेशी ज्ञान अनुसंधान केन्द्र की भी स्थापना की गई है। जो कि वैदिक भारतीय ज्ञान के वैज्ञानिक पक्ष को उजागर करेगए।
प्रो. के. के. एन. शर्मा ने विशेष व्याख्यान की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए कहा कि भारत के वैदिक ज्ञान से जुड़ा विषय है जो कि ऋषियों ने अपने ऊपर प्रयोग करके तप से प्राप्त करके मानव समाज को दिया था, परन्तु आज के समकालीन समाज में वह विस्मृत हुआ है। ऐसे महत्वपूर्ण विषयों पर विशेष व्याख्यानों के आयोजन से तात्पर्य विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, शिक्षकों एवं शोधार्थियों को शोध के प्रति अनुसंधान करके उन्हें पुनः प्रतिष्ठित कराना है। 
अधिष्ठाता प्रो. आर. पी. मिश्रा, व्यावहारिक विज्ञान अध्ययनशाला ने कहा कि प्रो. सुरेन्द्र पाठक विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हैं जो कि आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महान् मनीषी सिद्ध हुए हैं जिन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया है। आज उनके व्याख्यान से शिक्षक, शोधार्थी तथा समाज के गणमान्य नागरिकों के मन में जिज्ञासाओं का समाधान से यह सिद्ध होता है कि यह व्याख्यान उपयोगी सिद्ध हुआ है। अन्त में, उन्होंने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर उनका प्रो. पाठक को स्मृति चिन्ह के रूप में डाॅ. गौर की प्रतिमा भेंट करके सम्मानित किया गया। इस व्याख्यान में प्रमुख रूप से रीवा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. उदय कुमार जैन, प्रो. के. एस. पित्रे, प्रो. ए. एन. शर्मा, प्रो. पी. पी. सिंह, प्रो. दिवाकर सिंह राजपूत, प्रो. जी. एल. पुनताम्बेकर, प्रो. चन्दाबेन, प्रो. अशोक अहिरवार, डाॅ. अरूण पलनेटकर, डाॅ. वर्षा सिंह, डाॅ. शरद सिंह, डाॅ. आर. के. शिवात्रे, एडव्होकेट बीनू राना, डाॅ. रजनीश जैन, शैलेन्द्र ठाकुर, मधुसूधन सिलाकारी, डाॅ. पंकज तिवारी, डाॅ. सर्वेन्द्र यादव, डाॅ. सोनिया कौशल, डाॅ. अरिबम बिजयासुन्दरी देवी, डाॅ. आर. व्ही. अनुरागी सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्याथीगण उपस्थित थे।   

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