देवलचौरी में सबसे पुरानी रामलीला का शानदार मंचन
सागर।सागर जिले के जैसीनगर में देवलचोरी में बुन्देलखंड के लोक आंचल की सबसे पुरानी रामलीला इतिहास परम्परा विरासत तथा सांस्कृतिक अनुश्ठान बसंत पंचमी से सात दिवसीय आयोजन के अवसर पर आयोजित पुश्पवाटिका प्रसंग में महामुनि विष्वामित्र के यज्ञ सम्पन्न होने के बाद ज्ञात हुआ कि राजा जनक द्वारा धनुश यज्ञ मेंआमंत्रित किया गया है। जनक ने दोनों राजकुमारों को अमराई में ठहराया। इस अवसर पर राम कहतेहैं कि ''नाथ लखन पुर देखन चहही प्रभु सकोचबष प्रकट न करहीं'' यदि आपकी आज्ञा हो तो नगरदिखाकर वापस आ जाऊँ। मुनिवर ने कहा ''देख आवहु नगर सुख निधान दोऊ भाय, सुफल करहु सबके नयन सुन्दर बदन दिखाय'' नगर घूमते हुए पुश्प वाटिका में फूल तोड़ते हुए लताओं की ओर सेसीता को देखकर राम का मन चकित हुआ वहीं सीता ने भी लताओं की ओट से राम के व्यक्तित्वको निहारते हुए अपने नेत्र बंद कर लिये और उन्हें हृदय में स्थापित कर लिया। ''लोचन मगु रामहि उरआनी मूंदही आँख कपाट सयानी'' सीता और उनकी सखियाँ चिन्तित हो गई कि जिन्हें फूल तोड़ने मेंपसीना आ रहा है वे धनुश कैसे तोड़ पायेगें। सीता अपनी प्रार्थना माँ पार्वती के पास लेकर गई औरकहा कि ''मोर मनोरथ जानहु सब नीके बसहु सदा उर पुर सब हीके'' आप सबके मनोरथ को जानतीहों माँ पार्वती ने उन्हें आषीर्वाद दिया। उधर राम-लक्ष्मण विष्वामित्र के पास पहुंचे उन्होंने कहा कि''सुफल मनोरथ होय तुम्हारे राम-लखन सुनी भये सुखारे'' ।
इस प्रसंग को देखकर राम-लखन की
मनोरम झांकी और अभिनय देखकर प्रांगण में उपस्थित जनसमूह अभीभूत हुआ और करतल ध्वनिसे स्वागत वंदन किया। आसपास के गांव के नागरिकों की उपस्थिति ने रामलीला के इस प्रसंग कीसराहना कर आयोजन को सार्थकता प्रदान की।
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