विश्व पैंगोलिन दिवस: विश्व में पहली बार मध्यप्रदेश में हुई पैंगोलिन की रेडियो टेगिंग,तस्करों से बचाने की कोशिश
सागर ।मध्यप्रदेश ने अति लुप्तप्राय प्रजाति में शामिल भारतीय पैंगोलिन के संरक्षण के लिए विशेष पहल की है। वन विभाग और वाईल्ड लाईफ कजंर्वेशन ट्रस्ट ने भारतीय पैंगोलिन की पारिस्थितिकी को समझने और उसके प्रभावी संरक्षण के लिए एक संयुक्त परियोजना शुरू की है। इस परियोजना में कुछ पैंगोलिन की रेडियों टेंगिग कर उनके क्रियाकलापों, आवास स्थलों, दिनचर्या आदि का गहन अघ्ययन किया जा रहा है। दो भारतीय पैंगोलिन का जंगल में सफल पुर्नवास किया गया है। रेडियो टेगिंग की मदद से इन लुप्तप्राय प्रजाति के पैंगोलिन की टेलिमेट्री के माध्यम से सतत निगरानी की जा रही हैं। इस प्रयोग से पैंगोलिन के संरक्षण और आबादी बढ़ाने में मदद मिलेगी। पूरे विश्व में चिंताजनक रूप से पैंगोलिन की संख्या में 50 से 80 प्रतिशत की कमी आई है।पैंगोलिन की खाल की दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में भारी डिमांड है। दुनिया मे सर्वाधिक तस्करी इसी जानवर की होती है।इसकी परतदार खाल का इस्तेमाल शक्ति वर्धक दवाइयों, ड्रग्स, बुलट प्रूफ जैकेट, कपड़े और सजावट के सामान के लिए किया जाता है।इसकी अच्छी खासी कीमत बाजार में तस्करों को मिलती है। रुपयों के लालच में पैंगोलिन की तस्करी भी बढ़ गई है। जंगलों में इनका दिखना भी लगभग दुर्लभ ही है।
एस.टी.एस.एफ. ने किया 11 राज्यों में शिकार और तस्करी का भांड़ा फोड़
मध्यप्रदेश की पहचान हमेशा से ही वन्य जीव प्रबंधन में अनूठे और नये प्रयासों के लिए रही है। वन्य प्राणी सुरक्षा के लिए प्रदेश में गठित विशिष्ट इकाई एस.टी.एस.एफ ने सभी वन्यप्राणी विशेषकर पैंगोलिन के अवैध शिकार पर और व्यापार को नियंत्रित करने के कारगर प्रयास किये हैं। एस.टी.एस.एफ. ने पिछले कुछ सालों में 11 से अधिक राज्यों के पैंगोलिन के शिकार और तस्करी में शामिल गुटों का सफलता पूर्वक भांडा फोड़ किया है।
चीन और दक्षिण एशियाई देशों में कवच और मांस की भारी मांग
पैंगोलिन विश्व में सर्वाधिक तस्करी की जाने वाली प्रजाति है। सामान्यतरू परतदार चींटी खोर के नाम जाने वाले ऐसे दंतहीन प्राणी हैं जो वन्यप्राणी जगत में अद्वितीय होने के साथ लाखों वर्षों के विकास का परिणाम हैं। पैंगोलिन अपने बचाव के रूप में इस परतदार कवच का उपयोग करता है। यही सुरक्षा कवच आज उसके विलुप्ति का कारण बन गया है। परम्परागत चीनी दवाईयों में इनके कवच की भारी मांग इनके शिकार का मुख्य कारण है। चीन और दक्षिण एशियाई देशों में इनके कवच और मांस की भारी मांग है। इससे वैश्विक रूप से पैंगोलिन प्रजाति की संख्या में तीव्र कमी आई है।
पैंगोलिन की 8 प्रजातियों मे से 2 भारत में
पैंगोलिन की आठ प्रजातियों में से एक भारतीय एवं चीनी पैंगोलिन भारत में पाए जाते हैं। चीनी पैंगोलिन उत्तर पूर्वी भारत और भारतीय पैंगोलिन अत्यधिक शुष्क क्षेत्र, हिमालय ओर उत्तर पूर्वी भारत के अलावा सम्पूर्ण भारत में पाया जाता है। भारतीय पैंगोलिन भारत के अलावा श्रीलंका, बाँग्लादेश और पाकिस्तान में भी पाया जाता है। दोनों प्रजातियों को वन्यजीव (संरक्षण)अधिनियम की अनुसूची- एक में संरक्षण प्राप्त है।
निशाचर प्रजाति होने के कारण भारतीय पैंगोलिन के व्यवहार और पारिस्थितिकी के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। लुप्तप्राय प्रजातियों के प्रभावशील संरक्षण योजना और विकास के लिए उनकी पारिस्थितिकी जानना अति महत्वपूर्ण है। मध्यप्रदेश वन विभाग और वाइल्ड लाईफ कंजर्वेशन ट्रस्ट रेस्क्यू किये गये पैंगोलिन में से 6 की रेडियों टेगिंग कर अध्ययन करेगा। इससे लुप्तप्राय प्रजाति की जनसंख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी।
विश्व पैंगोलिंन दिवस फरवरी माह के तीसरे शनिवार को मनाया जाता है। इस अंतर्राष्ट्रीय प्रयास से पैंगोलिन प्रजाति के बारे मेंजागरूकता बढ़ती है और विभिन्न स्टाफ होल्डरों को एकत्र कर संरक्षण प्रयासों को गति दी जाती है।
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