मध्यप्रदेश में अलग से महिला शराब दुकान खोलने के मायने

मध्यप्रदेश में अलग से महिला शराब दुकान खोलने के मायने

@अजय बोकिल 

बेशक मध्यप्रदेश में वक्त 'बदलाव' का है, लेकिन वह इतना खुमारी भरा होगा, यह अंदाज कम ही लोगों को होगा। मध्यप्रदेश सरकार की नई शराब नीति से राज्य  के शराबियों तो 'हर्ष' है ही, अब उन महिलाअों में भी 'सुलभ संदेश' गया है। ताजा खबर यह है कि राज्य सरकार महिलाअों की जरूरत के मद्देनजर प्रदेश में महिलाअों के ‍िलए अलग से शराब दुकाने खोलने जा रही है। एक प्रति‍ष्ठित अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक सरकार की कोशिश यही है कि महिलाअों को शराब खरीदने में कोई दिक्कत न हो। शुरु में भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में एक-एक दुकानें खोली जाएंगी। इन पर वाइन और विस्की के वे सभी ब्रैंड्स उपलब्ध होंगे, जो महिलाएं पसंद करती हैं। ये दुकानें मुंबई, दिल्ली और अन्य मेट्रो सिटी की तर्ज पर  खुलेंगी। क्वालिटी बनाए रखने विदेशी शराबों को ही बेचने की इजाजत होगी। जरूरी नहीं कि सारे ब्रांड मप्र में रजिस्टर्ड ही हों। उन पर कोई अतिरिक्त ड्यूटी भी नहीं वसूली जाएगी। उम्मीद यह है कि इससे महंगी शराब का कारोबार बढ़ेगा। लोगों की जिंदगी में सुरूर आएगा और सरकारी खजाना तेजी से भरेगा। खबर में  प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य  सचिव आईसीपी केशरी के हवाले से कहा गया है ‍िक यह सब करने का नेक मकसद सरकार के खाली खजाने को भरना है। इस के लिए सरकार  भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में वाइन फेस्टिवल भी आयोजित करेगी। वाइन ( अंगूरी) के 15 नए आउट लेट भी खुलेंगे। बता दें कि इसके पहले जारी अपनी नई शराब नीति में कमलनाथ सरकार ने सुराप्रेमियों को शराब की 'आॅन लाइन'  उपलब्धता का तोहफा दिया था। हालांकि ये अंगरेजी पीने वालो के लिए ही है। देशी वाले यहां भी पीछे रह गए हैं। 

शराबबंदी पर सरकारों के चोचले ही रहे है

शराबबंदी से शराब के मामले मध्यप्रदेश की सरकारें ( शिवराज के टाइम आंशिक शराबबंदी को छोड़ दें) तो शराबबंदी जैसे राजनीतिक चोचलों में नहीं उलझी। वर्तमान कांग्रेस सरकार भी खाली खजाने को भरने की शराब की ताकत को बखूबी समझती है। शायद इसीलिए उसने शराब जगत में हाशिए पर समझे जाने वाले महिला वर्ग के लिए भी अलग से प्रावधान करने का साहसिक और  दूरदर्शी निर्णय लिया है। क्योंकि सूचनाएं ये हैं कि देश में महिलाअों में शराब, बीयर आदि का शौक बढ़ता जा रहा है। वे अब इस मामले में भी पुरूषों को चुनौती दे रही हैं।  
क्या है आंकड़ा महिलाओं के शराब पीने का
हालां‍कि  मध्यप्रदेश जैसे विकासशील राज्य में कितनी महिलाएं शराब पीती हैं, इसका कोई अलग से आंकड़ा उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन समूचे भारत में महिलाअों में शराब खोरी की लत बढ़ रही है, यह सच है। 'इंडिया टुडे' में पिछले साल छपी एक रिपोर्ट में एक सरकारी सर्वे के हवाले से बताया  गया था कि भारत में 16 करोड़ लोग शराब  के शौकीन हैं। इनमे 10 साल के बच्चों से लेकर 75 साल के बुजुर्ग तक शामिल हैं। अगर राज्यवार तस्वीर देखें  तो मप्र इस मामले में  दूसरे राज्यों से अभी पीछे है। वित्तीय वर्ष 2016 के आंकड़ों को देखें तो मप्र का नंबर  शराब खपत में आठवां था। इस मामले में दक्षिण के राज्य हमसे काफी आगे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक सर्वे रिपोर्ट बताती है कि भारत में शराब की खपत पिछले तीन साल में 38 फीसदी बढ़ी है। 'बिजनेस वायर' पर शाया  इंडियन अल्कोहल कंजंम्पशन रिपोर्ट 2018' के अनुसार देश में मदिरा का बाजार हर साल 8.8 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। 2022 तक देश में तमाम तरह की शराब की खपत 16.8 अरब लीटर हो जाने  की उम्मीद है। 
जहां तक मप्र की बात है कि तो दो साल पहले बिहार में शराबबंदी के हो हल्ले के बीच मध्यप्रदेश में भी शराबबंदी लागू करने का दबाव तत्कालीन शिवराजसिंह सरकार पर बढ़ा था। तब शिवराज सरकार ने नर्मदा और हाइवे के किनारे से शराब की दुकानों को हटाने का नियम भी बनाया था। यानी आंशिक शराबबंदी लागू की थी। लेकिन इसने इससे जाम छलकाने वालों का हौसला घटने के बजाए बढ़ा ही। एक साल में ही राज्य में शराब की बिक्री 27 फीसदी बढ़ गई। सरकारी खजाना भी तेजी से भरने लगा। शराब से वर्ष 2018 में जहां सरकार को शराब बिक्री से  8233 करोड़ रू. मिले थे, वही 2019 में यह कमाई बढ़कर 9600 करोड़ रू. हो गई। कमलनाथ सरकार ने आबकारी से चालू वित्तीय वर्ष में 13 हजार करोड़ रू. का टारगेट रखा है। सरकार को जनता पर भरोसा है। 
हकीकत यही है कि शौकीनो और ‍लतियलों के साथ साथ ‍सरकार भी आमदनी के लिए काफी कुछ शराब के भरोसे है। जितनी बिकेगी, उतनी खनकेगी भी। शराब की लत या शौक समाज और खासकर महिलाअों में क्यों बढ़ रहा है, इस पर अब शोध होने लगा है, क्योंकि महिलाअों का सार्वजनिक रूप से शराब पीना तो भारतीय संस्कृति में वर्जित माना जाता रहा है। लेकिन अब सोच और जीवन शैली तेजी से बदल रही है। महिलाएं बेझिझक शराब खरीदने और पीने लगी है। इसके पीछे आर्थिक-सामाजिक कारण हैं। डब्ल्यूएचअो के सर्वे में देश के कुछ राज्यों में महिलाअोंकी शराबखोरी की जानकारी एकत्रित की गई थी। इसके मुताबिक दिल्ली में जहां 40 पुरूष शराब पीते हैं, वहीं महिलाअों में यह प्रतिशत 20 है यानी‍ कि आधा। कुछ अर्सा पहले बीबीसी की एक रिपोर्ट में  बताया गया था कि पिछली सदी में महिलाएं अपेक्षाकृत कम शराब पीती थीं,  लेकिन 1991 से 2000 के बीच  जन्मी महिलाएं उतनी ही शराब पी रही हैं जितना उनके पुरुष साथी। 21 सदी में यह प्रमाण और बढ़ गया है। इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।  हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की एडिक्शन साइकोलॉजिस्ट डॉन सुगरमैन का कहना था कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं देरी से शराब पीना शुरू करती हैं लेकिन जल्दी ही उसकी चपेट में आ जाती हैं। इसे टेलीस्कोपिंग कहते हैं। महिलाअोंमें शराब के बढ़ते चलन के पीछे सामाजिक दबाव, मानसिक तनाव, कुछ अलग तरह से जीने की चाहत, मौज मस्ती, आर्थिक स्वावलंबन और इस क्षेत्र में भी पुरूषों से बराबरी करने की तमन्ना है। 
लगता है कि मध्यप्रदेश सरकार ने महिलाअों के बदलते मानस और शराब के प्रति आकर्षण को ध्यान में रखते हुए राज्य में उनके लिए अलग से दुकान खोलने की पहल की है। एक अध्ययन के मुताबिक इस मामले में महिलाअोंकी पसंद देशी के बजाए विदेशी दारू है। जैसे कि वाइन, जिन, रम आदि। महिलाअों  का बीयर पीना तो अब चर्चा का विषय भी नहीं रहा।
वैसे लोग शराब कई कारणों से पीते हैं। कुछ लोगों के लिए यह 'दवा' है तो समाज के लिए यह बड़ा 'दर्द'है। इसका विस्तार अब महिलाअोंतक होने से समस्या और जटिल होगी। शराब नीति राजनीति के लिए भी मुफीद होती है। विपक्ष सत्ता पक्ष पर प्रदेश को मदिरा प्रदेश बनाने के आरोप लगाता रहता है तो सरकारें खुद को 'दारू की धुली' साबित करने की कोशिश करती हैं। वैसे भी मप्र सरकार की माली हालत इतनी पतली है कि उसे शराब पर भरोसा रह गया है। सरकार की मजबूरी यह है कि केन्द्र से मिलने वाले साढ़े 14 हजार करोड़ रू. के नुकसान की भरपाई कहां करे। 
हो सकता है सरकार के इस फैसले से सांस्कृतिक शुद्धतावादियों को गहरी ठेस लगे, लेकिन वक्त का  बदलाव जीवन के हर क्षेत्र में है। ऐसे में सरकारों ने सुरापान को हतोत्साहित करने की जगह उसे 'घर घर पहुंचाने'का तय कर लिया है। ऐसे में महिलाअों को अलग दुकानों के ‍जरिए शराब मुहैया कराना महिला सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया कदम है या फिर सरकार महिलाअों में शराबखोरी के बढ़ते ट्रेंड और हवा देना चाहती है, समझना मुश्किल है। शायराना तबीयत में तो यह शराब को शबाब के और करीब लाना है। किसी ने कहा भी है-
न हो शबाब तो कैफियत-ए-शराब कहां
न हो शबाब तो कैफियत-ए-शबाब कहां
अजय बोकिल ,वरिष्ठ संपादक  'राइट क्लिक' ,( 'सुबह सवेरे' में प्रकाशित)
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