देवलचौरी की रामलीला,115 साल से चल रही परम्परा में इसी गांव के बनते है पात्र
सागर।रामलीला के मंचन के कई रूप देखने मिलते है ।हालांकि गांवों में अब कम ही देखने मिलती है। सागर के जैसीनगर के देवलचौरी ग्राम की रामलीला सौ साल से ज्यादा 115 वर्ष पुरानी है । इस गांव के लोगो मे रामलीला आत्मसात कर चुकी है । क्योंकि इस गांव के लोग रामलीला के पात्रों की भूमिका निभाहते चले आ रहे है। आसपास के गांवों और शहरों से लोग पहुचते है।
जयश्रीराम के घोष से गुंजा गांव देवलचौरी
व्यासगादी से चौपाई निकली रामलीला देखने बैठी हजारों लोगों की भीड़ खड़ी हो गई। पूरा माहौल श्रीराम के जयकारों के घोष से गूंज उठा। वहां राम धीरे-धीरे स्वयंबर में रखे शिव के विशाल धनुष 'पिनाकÓ की ओर बढ़ रहे थे, यहां जनता का उत्साहित देखते ही बन रहा था। राम धनुष के पास पहुंचे और एक ही झटके में धनुष को उठा लिया और जैसे ही व्यास ने तीखी ध्वनि के साथ चौपाई बोली 'तेही क्षण मध्य राम धनू तोरा, हरेहु भुवन धुनि भोर कठोराÓ तो राम ने एक ही झटके में धनुष उठया और जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाई तो धनुष के दो टुकड़े हो गए। धनुष के टूटते ही जयकारों की ध्वनि जोरों से शुरू हो गई, लोग श्रीराम पर फूल बरसाने लगे। यह नजारा था देवलचौरी में चल रही रामलीला का। गांव के तिवारी परिवार द्वारा यहां पर पिछले ११५ सालों से रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। रामलीला देखने आसपास के गांव के अलावा शहर से भी हजारों लोग पहुंच रहे हैं।
रावण वाणासुर रहे आकर्षण का केंद्र
जनक द्वारा सीता स्वयंवर में जैसे ही रावण-वाणासुर आए महौल में जान में आ गई। दस सिर, विशाल काया और बुलंद आवाज के साथ जैसे ही रावण ने तांडव स्त्रोत का उच्चारण शुरू किया लोगों के रोंगटे खड़ हो गए। रावण का किरदार निभा रहे गांव के चौकीदार (कोटवार) वीरन चढ़ार अशिक्षित हैं फिर भी बिना रुके एक स्वर में संस्कृत में तांडव का उच्चारण करते हैं। इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर सभी किरदार गांव के लोग निभाते हैं।
जनक और लक्ष्मण सवांद ने बांधा समा
रामलीला की शुरूआत में स्वयंवर में आए राजाओं ने भरपूर कोशिश की लेकिन धनुष उठाना तो दूर वह उसे तिल भर हिला भी नहीं सके। यह देख जनक ने गुस्से में धरती को वीर विहीन कह दिया। जनक का किरदार निभा रहे इंजी. भारत भूषण तिवारी अपने किरदार में इतने डूब चुके थे कि उनकी आखों से हकीकत में आसूं आ गए। जनक की यह बात सुनकर लक्ष्मण गुस्से से लाल हो गए और तीखे स्वर में जनक को यह एहसास करा दिया कि धरती पर अभी भी वीर हैं।
यह रहे मुख्य किरदार
राम- जयदीप तिवारी, लक्ष्मण ऋषभ गौतम, सीता प्रशांत गौतम, विश्वामित्र रवींद्र तिवारी, वाणासुर प्रभु तिवारी, व्यासगादी पर मुकुल तिवारी और चंद्रेश तिवारी, इसके अलावा स्वयंबर में राजाओं का किरदार निभाने वालों में नीरज तिवारी, मनहरण तिवारी, हरिराम विश्वकर्मा, दयाराम सेन, मुरारी पटेल, नरेश पटेल, सरवन चढ़ार, हीरा पटेल आदि।
इनका रहा विशेष योगदान
मनमोहन तिवारी, डॉ. महेश तिवारी, मनोज तिवारी, सरपंच मयंक तिवारी सहित तिवारी परिवार के अन्य लोग व गांव के लोगों का सहयोग रहा।
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