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मूर्तियाभजन की लड़ाई में क्या मिलेगा.. ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट


मूर्तियाभजन की लड़ाई में क्या मिलेगा..
ब्रजेश राजपूत/सुबह सवेरे में ग्राउंड रिपोर्ट 
भोपाल के बाहर बैरागढ से जब इंदौर रोड पर जाते हैं तो थोडी दूर पर ही आता है आकाश मेरिज गार्डन। आमतौर पर यहां पर शादियों की धूमधाम होती हैं मगर इन दिनों यहां पर जो हो रहा है उसकी गूंज शादियों के मौके पर बजने वाले जबलपुर के मशहूर श्याम बैंड से भी ज्यादा है और आवाज भोपाल से सात सौ किलोमीटर दूर दिल्ली तक जा रही है। पहेलियां बुझाना छोड कर अब आपको बताता हूं कि यहंा पर कांग्रेस के सेवादल का दस दिन का राप्टीय प्रशिक्षण शिविर चल रहा हैं जिनमें देश के विभिन्न हिससों से करीब साढे तीन सौ कार्यकर्ता आये हैं। आमतौर पर देश भर में पार्टियों के ऐसे शिविर चलते रहते हैं जिनकी कभी कोई खबर नहीं बनती और उस पर शहर के बाहरी इलाके में हो तो मीडिया वाले वहां पर कम ही जाते हैं। मगर प्रदेश में सरकार कांग्रेस की है और कांग्रेस की गतिविधियों पर नजर रखना भोपाल की प्रेस का काम है तो पहले ही दिन हमारे टीवी मीडिया के मित्र पहुंचे और खबरें तलाशनी शुरू कर दी। जहां चाह वहां राह। एक युवा पत्रकार के हाथों वो साहित्य लग गया जो वहां आये कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को बांटा जा रहा था। किताब थी वीर सावरकर कितने वीर सेवादल की तरफ से छापी गयी इस किताब में वीरता के बहाने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी विनायक दामोदर सावरकर की विवादित कमजोरियों को उजागर कर उनको पथभ्रप्ट नेता साबित करने की कोशिश की गयी है। उनकी कार्यप्रणाली उनके कोर्ट में दिये गये बयान तत्कालीन नेताओं से वेचारिक विरोध को किताब में इतिहास के दस्तावेजों के हवाले से सामने लाया गया है। इस किताब में सर्वाधिक आपत्तिजनक टिप्पणी वो थी जिसमें दो विदेशी लेखकों की किताब के हवाले से सावरकर और गोडसे के समलैंगिक संबंधों का आरोप लगाया गया। बस फिर क्या था हमारे युवा पत्रकार को इस किताब के तौर पर बडी खबर मिल गयी और फिर तो शाम होते सेवादल का ये शिविर देश भर की मीडिया की सुर्खियां बन रहा था और मीडिया के इस शिविर में आकर खबर बनाने जो सिलसिला शुरू हुआ तो वो अगले दिन शाम होते होते चलता ही रहा। कांग्रेसी नेता जहां इस शिविर को देश भर में चर्चित होता देख गदगद हो रहे थे तो बीजेपी के वो नेता मन मसोसकर रह जा रहे थे जो ये देख रहे थे कि इस एक साल में कितना कुछ बदल गया। यदि कांग्रेस सरकार यहां पर ना होती तो उस शादी घर में ऐसे शिविर लगने की ना तो इजाजत मिलती और यदि मिलती और फिर ऐसी किताब बंटती तो अब तक तो शिविर के बाहर बडा सा उग्र प्रदर्शन होकर वैसी ही धमकी दी जा चुकी होती जैसी कैलाश विजयवर्गीय ने इंदौर में अधिकारियों को आग लगाने की दी इसके अलावा भोपाल के किसी थाने में एफआईआर हो चुकी होती मगर सरकार जाने से बहुत कुछ बदल जाता है ये बीजेपी वाले समझ गये इसलिये बीजेपी की तरफ से इस किताब का विरोध स्टूडियो डिस्कशन तक ही सीमित होकर रह गया। सावरकर को लेकर इस किताब में कितनी हकीकत ओर कितना फसाना है वो यहंा मुददा नहीं है। मगर ये दुखद है कि पिछले कुछ सालों से आजादी की लडाई में शामिल हमारे प्रतीकों और महापुरूपों के महिमामंडन की जगह अब उनकी छवि खंडन का दौर शुरू हो गया है जिसकी कडी है ये और ऐसी ढेर सारी पुस्तिकाएं जो ऐसे आयोजनों में बेधडक बांटी जाती हैं। पहले गांधी फिर नेहरू फिर आंबेडकर और अब सावरकर इन सारी हस्तियों को जिनको हमने स्कूली पाठयक्रम में आजादी के नायकों के तौर पर पढा और जाना मगर अब जब बडे हुये हैं तो इन सत्तर सालों में इनको नायक के इतर खलनायक बताने का दौर चल पडा है और इसकी शुरूआत हुयी है 2014 के चुनावों से जब बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने नरेन्द्र मोदी ने देश की हर नाकामी के लिये कांग्रेस के नेताओं और पुरानी सरकारों को कोसना शुरू कर दिया। बस फिर क्या था जब मोदी प्रधानमंत्री बने तो उनकी बातें और विचारों को मजबूती देने के लिये इतिहास के पन्नों से वो सारी मुददे छांटे और तलाशे गये जिनमें विवाद और बहस की गंुजाइश थी। वो सारे बडे नेता जो अब इस दुनिया में अपनी बातों और विचार को बचाने के लिये नहीं हैं उनके लंबे राजनीतिक जीवन के कुछ चुनिंदा विचारों भापणों के अंश को उठा उठाकर कुछ उनके जीवन की तस्वीरों को लेकर सस्ते डाटा के दम पर वाटस अप से जो फैलाना शुरू किया तो बस फिर क्या था हर आदमी इतिहास का जानकार बन गया और सवाल उठाने लग गया। मैं उस दिन हैरान रह गया जब दसवीं में पढने वाले मेरे भांजे ने सवाल किया कि आप ये बताइये कांग्रेस ने सत्तर सालों में क्या कर दिया। मैं हैरान था कि इस किशोर को कैसे समझाउं कि सरकार किसी दल की नहीं देश की होती हैं और ये जो सवाल उठा रहे हो वही पुरानी सरकारों की सबसे बडी देन है कि तुम सवाल उठा पा रहे हो वरना हमारेे साथ आजाद हुये पाकिस्तान में शायर फैज अहमद फैज सरीखे अनेक साहित्यकारों को शायरी करने और सवाल उठाने पर ही जेल में कई सालांे के लिये डाल दिया गया था। तो सवाल उठाने की आजादी देश की सबसे बडी उपलब्धि है विकास के रास्तों पर तो देश चलता ही रहता है चीन और रूस जैसा विकास हमारे देश के लोग नहीं चाहंेगे जहां सडकें और मकान तो खूबसूरत हों मगर हर विचार पर पहरा हो। इसलिये मूर्तिभंजन की इस लडाई में ना तो बीजेपी को कुछ मिला है और ना अब कांग्रेस को कुछ मिलेगा। ये दोनों पार्टियां समझें। किसी ने सही लिखा है जिसको भूलना था वो अब तक याद है यही तो विवाद है।

ब्रजेश राजपूत,एबीपी न्यूज़,भोपाल
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