परसुराम साहू।
देव खंडेराव मेला। मन्नते पूरी होने पर अंगारों पर निकलते श्रद्वालु, ग्यारह दिनों तक चलेगा अग्नि मेला
सागर । सागर जिले के देवरी का श्री खंडेराव का अग्नि मेला शुरू हो गया । अगहन माह की चंपा-षष्टि से शुरु होता है ।जो इस वर्ष 2 दिसंबर से शुरु हुआ। इस मेले में लोग अपनी मनोकामनाये पूरी होने पर अग्नि कुंड से दहकते अंगारों पर से निकलते हैं। ग्यारह दिन चलने वाले इस मेले में हजारों महिला पुरुष बच्चे अंगारों पर से निकलेंगे।
देवरी नगर में श्रीदेवखंडेराव जी का मंदिर पर भव्य मेला लगा हैं। मेले के पहले दिन 138 श्रद्धालु आग के अंगारों में से निकले। वहीं इस मेले को देखने के लिए क्षेत्र के आसपास के साथ साथ प्रदेश भर सेश्रध्दालु इस मेले को देखने आते हैं।।देवरी के पूर्व विधायक सुनील जैन पिछले तीस सालों से आग के अंगारों पर से निकलते आ रहे हैं ।उन्होंने कहा कि नगर में अमन चैन बना रहे सभी लोग भाई चारे के साथ रहे इसी भावना के साथ हम अग्नि कुंड में से निकलते हैं ।हर वर्ष निकलते रहेगे। आज उनकी पत्नी निधि जैन भी साथ थी।
वहीं इस मेले में दूर दूर से दुकानदार एवं बडे बडे झूले भी आते हैं जो लोगों को आकर्षित करते हैं।वहीं इस कार्यक्रम को लेकर मंदिर समिति के लोग एवं स्थानीय प्रशासन करीब एक हफ्ते पहले से तैयारियों में जुट जाता है।इस मेले में स्थानीय प्रशासन मे नगरपालिका के लोग ,एवं एसडीएम देवरी सहित देवरी थाने के टीआई सहित पूरा प्रशासन मेले के ग्यारह दिन तक सहयोग करता है।वही सुरक्षा की दृष्टि से मेले के हर कोने पर पुलिस प्रशासन का पहरा लगा रहता है।
खंडेराव मेला का इतिहास
देव श्री खंडेराव का विश्व प्रसिद्ध अग्नि मेला अगहन माह की चंपा-षष्टि से शुरु होता है ।
श्री खंडेराव जी के मंदिर का निर्माण 15 से 16 वीं सदी के बीच हुआ था जब बुंदेलखंड के राजा छत्रसाल हुआ करते थे। उस समय मुगलों से युद्ध में अपनी हार की स्थिति देख कर उन्होंने बाजीराव पेशवा को पत्र लिखकर मदद मांगी उस समय बाजीराव द्वारा छत्रसाल को युद्ध में मदद कि गई और बुंदेलखंड को मुगलों से बचाया तब छत्रसाल द्वारा बुंदेलखंड का कुछ राज्य बतौर नजराने के तौर पर बाजीराव के हक में दिया। जिसमें पंच मेहला में देवपुरी अर्थात देवरी बाजीराव के अधीन हो गई और उनके द्वारा यहां पर यशवंतराव को राजा नियुक्त किया गया। यशवंतराव के कुलदेवता खंडेराव मार्तंड भैरव थे जो मात्र एक जगह महाराष्ट्र के जेजोरी में हैं। राजा यशवंतराव हर वर्ष महाराष्ट्र की जेजोरी में देव खंडेराव के दर्शन के लिए जाया करते थे। जेजोरी जाते समय यशवंत राव देवरी में बाबूराव वैद्य के यहां रात्रि विश्राम किया करते थे। जब राजा यशवंतराव वृद्ध हो गए और उन्होंने देव खंडेराव से प्रार्थना की और कहा अब मैं आपके दर्शन हेतु जेजोरी नहीं आ पाऊंगा तब देव खंडेराव ने उनको स्वप्न में दर्शन दिए और एक जलती हुई जोत दिखी और एक खास जगह दिखी जो देवरी में है और बताया कि मैं यहां पांच पिंडों के रूप में बाईस हाथ की गहराई पर हूं। जब राजा यशवंत ने उस जगह पर खुदाई करवाई तो पांच पिंडों के रूप में मय चरण के प्राप्त हुई। जिसके बाद उसी जगह पर उन की प्राण प्रतिष्ठा की गई और 15 से 16 वीं सदी के बीच श्रीदेव खंडेराव का मंदिर निर्माण कराया गया।
ये है किवदंती
एक बार राजा यशवंतराव के पुत्र बीमार हो गए तब देव खंडेराव ने दर्शन देकर कहा कि हल्दी के उल्टे हाथ लगाएं और भट्टियां खोदकर अंगारे डाल कर हाथ से हल्दी भंडार डालकर अग्नि के ऊपर से हल्दी छोड़कर निकलें तो उनका पुत्र स्वस्थ हो जाएगा। तब से यह प्रथा शुरू हो गई और लोग अपनी मन्नत पूरी होने पर देव श्री खंडेराव के अग्नि मेले में से नंगे पांव आग पर से चलते हैं। प्राचीन मंदिर वास्तु कला की एक अद्भुत मिसाल है। मंदिर में एक विशेष छिद्र है जिसमें साल में एक बार अगहन माह की षष्टि के दिन सूर्य की किरणें उस छिद्र के माध्यम से शिवलिंग की पांच पिंडों पर ठीक 12 बजे पड़ती हैं तब लोग अग्निकुंड में से निकलते हैं।
पंडित श्री नारायण राव वैध ने बताया कि जब नवंबर माह में चंपा षष्टि पड़ती है तब सूर्य की किरणें शिव की पांच पिंडों पर पड़ती हैं और इस वर्ष ऐसा संयोग है की सूर्य की रोशनी शिवजी के पांच पिंडी पर पड़ेगी। अगर दिसंबर माह में चंपा-षष्ठी पड़ती है तो कई बार यह सूर्य की रोशनी पिंडों पर नहीं पड़ती। उन्होंने बताया कि पहले यह मेला 3 दिन लगता था लेकिन लोगों की आस्था को देखते हुए इसको 10 दिन के लिए किया गया। करीब 450 सौ साल पुरानी परम्परा है।
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