नौ दिन तक मौन रहकर 25 साधकों ने पूरी की विपश्यना साधना
सागर। नौ दिन तक आर्य मौन व्रत रखते हुए एवं कठोर ध्यान अभ्यास के साथ 25 साधकों ने साल के अंतिम दिन मंगलवार को अपनी साधना पूरी की। विपश्यना समिति सागर की ओर से शहर में पहली बार मकरोनिया के एक निजी स्कूल में दस दिवसीय निशुल्क विपश्यना शिविर का आयोजन किया गया था। 21 दिसंबर से शिविर की शुरुआत हुई। प्रदेश भर से पहुंचे नए एवं पुराने साधकों ने 22 दिसंबर से विपश्यना कोर्स शुरू किया। 31 दिसंबर को मौन तोड़ने के बाद शिविर का समापन हो गया।
समिति के सदस्य अभिनेष अग्रवाल ने बताया कि हालांकि शिविर का समापन हो चुका है, लेकिन ये सभी 25 साधक बुधवार सुबह 7.30 बजे अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना होंगे। विपश्यी साधक एवं समिति के सदस्य इंजी. अभय चौरसिया ने शिविर की सफलता के बारे में बताया कि समिति की ओर से सागर में लगा यह शिविर पूरी तरह सार्थक साबित हुआ है। शिविर के दौरान 16 पुरूष साधक एवं 9 महिला साधकों ने सफलतापूर्वक विपश्यना ध्यान अभ्यास किया और दस दिन तक बिना कुछ बोले इस कठिन साधना के जरिए अपनी ऊर्जा में वृद्धि की।
क्या है विपश्यना
विपश्यना समिति सागर के सदस्य अनुराग सिंह राजपूत ने बताया कि महात्मा बुद्ध जो तप किया करते थे उसी का सबसे परिष्कृत रूप है विपश्यना साधना। विपश्यना यानि फिर से देखना..। इस साधना के जरिए साधक अपने मन को किसी एक स्थान पर एकाग्र करने के बाद एक-एक कर शरीर के हर हिस्से पर इसे ले जाता है, जिससे उसके विकार बाहर निकलते हैं। धीरे-धीरे कर साधक अपने कर्म बंधनों से मुक्त होता जाता है।
शिविर के दौरान बोलना, एक दूसरे को देखना तक मना है
विपश्यना का दस दिवसीय आवासीय शिविर पूरी तरह निशुल्क होता है। नए साधकों से इस दौरान न तो किसी तरह का दान लिया जाता है और न ही किसी तरह का शुल्क। रहने और खाने-पीेने की सभी व्यवस्थाएं समिति की ओर से निशुल्क की जाती हैं। शिविर के दौरान साधकों को पूरे 9 दिन तक मौन का पालन अनिवार्य होता है। साथ में रहने के बाद भी एक-दूसरे से बोलने की मनाही है। इतना ही नहीं एक-दूसरे की आंख से आंख मिलाकर देखना भी नहीं है। ऐसा माना जाता है कि बोलने, एक दूसरे को छूने या आंख से आंख मिलाकर देखने से ऊर्जा का ह्रास होता है। शिविर पूरा करने के बाद साधक ऊर्जा से लबरेज हो जाता है।
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